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________________ ८२३ कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका विशतिभेदंगळप्पुवु । इल्लिगुपयोगिश्लोकमिदु : "मूतिमत्सु पदार्थेषु संसारिण्यपि पुद्गलाः। अकर्मकम्मनोकमजातिभेदेषु वर्गणाः॥" [ ] __ मूत्तिमंतंगळप्प पदार्थगळोळं संसारिजीवनोळं पुद्गलशब्दं, अकर्मजातिगळोळं कर्मजातिगळोळं नोकर्मजातिगळोळं वर्गण' यब शब्दं वत्तिसुगुं। इल्लियणुवर्गणेगळ सुगमंगळु । संख्याताणुसमूह वर्गणेगळु द्वयणुक व्यणुकं मोदलादसदृश धनिकंगळु मेले मेलेकैक परमाणुविदधिकंगळु नडदु चरमोळु संख्यातोत्कृष्टप्रमितपरमाणुस्कंधंगळु सशनिकंगळु तद्योग्यंगळप्पुवु उ १५ । १५ । १५ । असंख्यातवर्गणेगळोछु जघन्यवर्गणेगळु सदृशधनिकंगळु । परि M ३।३।३।३।३।३ ज २।२।२।२।२ अणु १।१।१।१।१।१ मितासंख्यातजघन्याराशिप्रमितपरमाणुस्कंधंगळप्पषु । मेलेकैकपरमाणुचयक्रमदिवं पोगि चरमदोलु द्विकवारासंख्यातोत्कृष्टराशिप्रमितपरमाणुगळ स्कंधंगळु सदृशधनिकंगळप्पुव मूर्तिमत्सु पदार्थेषु संसारिण्यपि पुद्गलः । अकर्मकर्मनोकमंजातिभेदेषु वर्गणाः ॥१॥ मूर्तिमत्सु पदार्थेषु संसारिजीवे च पुद्गलशब्दो वर्तते । अकर्मजातिषु कर्मजातिषु नोकर्मजातिषु च वर्गणाशब्दो वर्तते । अत्राणुवर्गणा ( सुगमा) एकैकपरमाणुरूपा स्यात् १।१।१ । १।१ । अणुवर्गणा । संख्याताणुवर्गणा द्वयणुकादयः एकैकाण्वधिकाः, उत्कृष्टसंख्याताणुकस्कन्धपर्यन्ताः उ १५ । १५ । ०० १५ म ३ ३ ००३ ज २ २ ०० २ असंख्याताणुवर्गणा जघन्यपरिमितासंख्याताणुकादयः एकैकाण्वधिका उत्कृष्टद्विकवारासंख्याताणुस्कन्धपर्यन्ताःहैं-पुद्गल शब्द मूर्तिमान पदार्थोंका और संसारी जीवोंका वाचक है। और वर्गणाशब्द अकर्मजातिके, कर्म जातिके और नोकर्मजातिके पुद्गलोंको कहता है। ___इनमें-से अणुवर्गणा सुगम है । एक-एक परमाणुको अणुवर्गणा कहते हैं। अन्य बाईस २० वर्गणाओंमें भेद हैं सो उनमें जघन्य और उत्कृष्ट भेद कहते हैं। द्वथणुकसे लेकर एक-एक परमाणु बढ़ते-बढ़ते उत्कृष्ट संख्यात परमाणुओंके स्कन्ध पर्यन्त संख्याताणुवर्गणा है। उसमें जघन्य दो अणुओंका स्कन्ध है और उत्कृष्ट-उत्कृष्ट संख्यात अगुओंका स्कन्ध है। जघन्य परिमितासंख्यात परमाणुओंसे लेकर एक-एक अणु बढ़ते-बढ़ते उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात परमाणुओंके स्कन्ध पर्यन्त असंख्याताणुवर्गणा है । यहाँ जघन्य परीतासंख्यात परमाणुओंका स्कन्ध है और उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात परमाणुओंका स्कन्ध है। संख्याताणुवर्गणा और २५ असंख्याताणुवर्गणामें विवक्षितवर्गणाको लाने के लिए गुणकार नीचेकी वर्गणासे विवक्षित१. म पुद्गलंगलु । २. मणेगलेबुवप्पुवु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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