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________________ ८२१ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका धर्माधर्मालोकाकाशकालद्रव्यंगळु प्रफ श १ । इ । लब्ध शलाके 3 । इल्लियु भागहारभूतलोकमुमं अवधिज्ञानविलल्पंगळप्प भाज्यभूतासंख्यातलोकमुमनपत्तिसिदोडिदु ।। मत्तं प्रश a। फ। ओ। इ। श। १। लब्धमवधिज्ञानविकल्पासंख्यातेकभागप्रमितं प्रत्येकमप्पु ओ।ओ।ओ। ओ इंतु संख्याधिकारंतिदुर्दुदु । a a a a सव्वमरूवी दव्वं अवट्ठिदं अचलिया पदेसावि । रूवी जीवा चलिया तिवियप्पा होंति हु पदेसा ॥५९२॥ सर्वमरूपि द्रव्यमवस्थितमचलिताः प्रवेशा अपि। रूपिणो जीवाश्चलिताः त्रिविकल्पा भवंति प्रदेशाः॥ सवमरूपि द्रव्यं मुक्तजीवद्रव्यमुं धर्मद्रव्यमुमधर्मद्रव्यमुमाकाशद्रव्यमुं कालद्रव्यमुमें बी अरूपिद्रव्यंगळनितुं अवस्थितं स्थानचलनमिल्लदुवप्परिदमवस्थितंगळप्पुवु। प्रदेशा अपि अवर १० प्रदेशंगळं अचलिताः अचलितंगळप्पुव । रूपिणो जीवाः रूपिजीवंगळु चलिताः चलितंगळप्पुवु-। मवर प्रदेशंगळु त्रिविकल्पा भवंति खलु । विग्रहगतियोळु चलितंगळु अयोगिकेवलियोळचलितंगळु शेषजीवंगळ अष्टप्रदेशंगळचलितंगळ । __ शेषप्रदेशंगळु चलितंगळप्पवितु चलितमुमचलितमु चलिताचलितमुदितु प्रदेशंगळु त्रिविकल्पंगळप्पुवु। धर्माधर्मलोकाकाशकालद्रव्याणि । प्र= । फ श १। इ3 लब्धशलाका aa भागहारभूतलोकेन भाज्ये अवधिविकल्पासंख्यातलोके अपवर्तिते । । पुनः प्र श फओ। इश १ लब्धोऽवधिविकल्पासंख्यातकभागः प्रत्येकं भवति ओ ओ ओ ओ ॥ इति संख्याधिकारः ॥५९१॥ a a a a अरूपि द्रव्यं मक्तजीवधर्माधर्माकाशकालभेदं सर्व अवस्थितमेव स्थानचलनाभावात । तत्प्रदेशा अपि अचलिताः स्युः । रूपिणो जीवाश्चलिता भवन्ति । तत्प्रदेशाः खलु त्रिविकल्पाः विग्रहगतो चलिताः, अयोग- २० केवलिन्यचलिताः शेषजीवानामष्टप्रदेशाः अचलिताः शेषाः चलिताः ॥५९२॥ उतने ( जीवद्रव्य ) हैं। उनसे अनन्तगुणे पुद्गल हैं। पुद्गलोंसे अनन्तगुणे कालके समय हैं, उनसे अनन्तगुणे अलोकाकाशके प्रदेश हैं। वे भी केवलज्ञानके अनन्तवें भाग ही हैं । धर्मादिका प्रमाण लानेके लिए प्रमाणराशि लोक, फलराशि एक शलाका, इच्छा अवधिज्ञानके विकल्प । लब्धप्रमाण असंख्यात शलाका हुई। पुनः प्रमाणराशि असंख्यात शलाका, फलराशि २५ अवधिज्ञानके विकल्प, इच्छाराशि एक शलाका। ऐसा त्रैराशिक करनेपर अवधिज्ञानके विकल्पोंके असंख्यातवें भाग धर्म, अधर्म, लोकाकाश, कालमें से प्रत्येकके प्रदेशका प्रमाण होता है ।।५९१शा संख्याधिकार समाप्त हुआ। ___ सब अरूपी द्रव्य-मुक्तजीव, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य, आकाश, काल अवस्थित ही हैं, वे अपने स्थानसे चलते नहीं हैं। उनके प्रदेश भी अचल हैं। रूपी जीव चलते हैं। उनके प्रदेश ३० तीन प्रकारके होते हैं-विग्रह गतिमें प्रदेश चल ही होते हैं। ____अयोगकेवली अवस्थामें अचल ही होते हैं। शेष जीवोंके आठ प्रदेश अचल और शेष प्रदेश चल होते हैं ।।५९२।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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