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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ८११ दिवसमे दुं पक्षमेढुं मासमेढुं ऋतुमे दुमयनमे ढुं वर्ष में दित्यवमादिगळ स्फुटमागि आवल्यादिभेर्दाददं संख्याता संख्यातानंतपय्र्यंतं यथासंख्यमागि श्रुतावधिकेवलज्ञानविषयतेयिदं विकल्पंगळप्पुववेल्लं व्यवहारकालमक्कुं । ववहारो पुण कालो माणुसखेत्तम्मि जाणिदव्वो दु । जोइसियाणं चारे ववहारो खलु समाणोति ॥ ५७७॥ व्यवहारः पुनः कालो मनुष्यक्षेत्रे ज्ञातव्यस्तु । ज्योतिष्काणां चारे व्यवहारः खलु समान इति ॥ व्यवहारकाल में 'बुदु मत्ते मनुष्यक्षेत्रदोळु ज्ञातव्यमक्कुमेक 'दोडे ज्योतिष्कचारदोळु व्यवहारकालं तु मते खलु स्फुटमागि समानमें दितिदु कारणमागि । ववहारो पुण तिविहो तीो वट्टंतगो भविस्सो दु । तदो संखेज्जावलिहद सिद्धाणं पमाणो दु || ५७८ ॥ व्यवहारः पुनस्त्रिविधोऽतीतो वर्तमानो भविष्यंस्तु । अतीतः संख्यातावलिहत सिद्धानां प्रमाणं तु ॥ व्यवहारकाल में बुदु मत्ते त्रिविधमक्कुं । अतीतकाल में दु वर्त्तमानकालमेंदु भविष्यत्कालमेदितु । अल्लि अतीतकालप्रमाणं तु मत्ते संख्यातावलियिदं गुणिसल्पट्ट सिद्धरुगळ प्रमाणमेनित- १५ नितेयक्कुमेके 'दोडे त्रैराशिक सिद्धमप्पुदरिंदमा त्रैराशिक ते बोडे अस्तूर एंटु जीवंगळु मुक्तिगे सलुत्तिरलु अरुदिगळ मेले टु समयकालमागुत्तिरलु सर्व्वजीवराशिय अनंतैकभागमात्रमप्प जीवंगळु दिवसः पक्षः मासः ऋतुः अयनं वर्ष इत्यादयः स्फुटं आवल्यादिभेदतः संख्याता संख्यातानन्तपर्यन्तं क्रमशः श्रुतावधिकेवलज्ञानविषयविकल्पाः सर्वे व्यवहारकालो भवति ॥५७६ ॥ व्यवहारकालः पुनः मनुष्यक्षेत्रे स्फुटं ज्ञातव्यः । कुतः ? ज्योतिष्काणां चारे स समान इति २० कारणात् ||५७७॥ व्यवहारकालः पुनस्त्रिविधः अतीतोऽनागतो वर्तमानश्चेति । तु-पुनः अत्रातीतः संख्यातावलिगुणितसिद्धराशिर्भवति, कुत: ? अष्टोत्तरषट्छतजीवानां मुक्तिगमनकालोऽष्टसमयाधिकषण्मासाः तदा, सर्वजीवराश्य एक समय अधिक आवली जघन्य अन्तर्मुहूर्त है । एक समय कम मुहूर्त उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त है। दोनोंके मध्यमें असंख्यात भेद हैं, वे सब अन्तर्मुहूर्त जानना । दिवस, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, वर्ष इत्यादि आवली आदिसे लेकर संख्यात, असंख्यात, अनन्तपर्यन्त क्रमसे श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान और केवलज्ञानके विषयभूत सब विकल्प व्यवहार काल है | ५७६ ॥ व्यवहारकाल तीन प्रकारका है-अतीत, अनागत और वर्तमान । अतीतकाल संख्यात आवलीसे गुणित सिद्धराशि प्रमाण है । क्योंकि छह सौ आठ जीवोंके मुक्ति जानेका काल आठ समय अधिक छह मास है । तब समस्त जीव राशिके अनन्तवें भाग मुक्त जीवोंका १० व्यवहारकाल मनुष्यलोक में ही जाना जाता है, क्योंकि ज्योतिषी देवोंके चलने से ही व्यवहारकाल निष्पन्न होता है; अतः ज्योतिषी देवोंके चलनेका काल और व्यवहार काल ३० दोनों समान हैं ।। ५७७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only २५ www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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