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________________ ७९२ गो० जीवकाण्डे जघन्योत्कृष्टभावमिल्लमें दितवधरिसल्पडुवुदेके वोडेतद्विध परमगुरूपदेशाभावमप्पुरिदं संवृष्टि :ज-घ। ख ख ख उ घख ख ख ख जग ।ख ख ख उ-कृख ख ख ख मिश्रा ख ख मिश्र ख ख ५ अगृ। ख अगृ । ख इल्लि अगृहीतक्के संदृष्टिशून्यं मिश्रक्क हंसपदं गृहीतक्कंकमल्लियं शून्यद्वय, हंसपदद्वयमुं। अंकद्वयमुं क्रमदिंदनंतंगठप्प अगृहीतवारंगळगं मिश्रवारंगळगं गृहीतवारंगळगं संदृष्टियक्कु: ० ०+ ०० + ०० १ ०० + ००+ ००१ ++ ++ ० + + १ ++ + + ++ १ ++१ + + १ + + ० + + १ + + १ + + . ११ + ११ + ११० ११ + ११ + ११० इल्लिगुपयोगियक्कु मी गाथासूत्र : अगहिदमिस्स य गहिदं मिस्समगहिवं तहेव गहिदं च । मिस्सं गहिदागहिवं गहिदं मिस्सं अगहिदं च ॥ १५ विशेषाधिकः । तद्विशेषप्रमाणमिदं ख ख ख ख-, अपवर्त्य निक्षिसे एवं ख ख ख ख । अत्रागृहीतमिश्रग्रहण कालयोर्जघन्योत्कृष्टभावौ न इत्यवधार्यम् । तथाविधपरमगुरूपदेशाभावात् । संदृष्टिः उ गू -ख ख ख ख उ-पु:ख ख ख ज = गृ = ख ख ख ज-पु-ख ख ख मिश्र ख ख अगृहीत अत्रागृहीतस्य संदृष्टिः शून्यं मिश्रस्य हंसपदं, गृहीतस्यांकः, अनन्तवारस्य द्विचारः । तत्संदृष्टिः ० ०+ | ००+ । ००१ । ००+ | ० ०+ | ००१ । + +० ! + +० | + +१ + + + +० | + + १ + +१ + +१ | + + + +१ | + +१ | + + . . २५ अत्रोपयोगिगाथासूत्र अगहिदमिस्सं गहिदं मिस्समगहिदं तहेव गहिदं च । मिस्सं गहिदमगहिदं गहिदं मिस्सं अगहिदं च ॥२॥ है। उससे उत्कृष्ट पुद्गलपरावर्तन काल विशेष अधिक है। उत्कृष्ट गृहीत प्रहणकालमें ३० अनन्तसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे, उतना उत्कृष्ट गृहीत ग्रहणकालमें मिलानेपर उत्कृष्ट पुद्गलपरावर्तन काल होता है। यहाँ अगृहीत ग्रहणकाल और मिश्रग्रहण कालमें जघन्य और उत्कृष्टपना नहीं है, ऐसा जानना क्योंकि उस प्रकारके उपदेशका अभाव है। यहाँ उपयोगी गाथाका अर्थ इस प्रकार है- जो द्रव्य परिवर्तनमें स्पष्ट कर आये हैं कि पहला अगृहीतमिश्र गृहीत, दूसरा मिश्र अगृहीत गृहीत, तीसरा मिश्र गृहीत अगृहीत और चतुर्थ ३५ गृहीत मिश्र अगृहीत है। इस क्रमसे ग्रहण करता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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