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________________ ७५० गो० जीवकाण्डे वेदनासमुद्घातपददोळे दरिवुदु -४ शेपैकभाग संख्यातबहुभागं कषायसमुद्घातपददोळे - १११५।५।५। दरिवुदु - ४ शेषेकभागं वैक्रियिकसमुद्घातपददोळक्कु - १ मा राशि११५ । ५।५।५ १११५ । ५। ५।५ यना जीवंगळु विगुम्विसिद गजादिशरीररावगाहनसंख्यातघनांगुलंगाळ गुणिसुत्तं विरलु वैक्रिषिकसमुद्घातपददोळु क्षेत्रमक्कु - ६१ मी राशियने "मरदि असखेज्जदिमं तस्सासंखाय ११।५ ५ ५ ५ ५ विग्गहे होंति तस्सासंखं दूरे उववादे तस्स खु असंखं ॥" एंदितु पल्यासंख्यातभागादिदं भागिसुत विरलैकभार्ग प्रतिसमयं म्रियमाणजीवप्रमाणमक्कु = १ मत्त पल्यासंख्यातदिदं भागिसिद बहु ११प भागं विग्रहगतिय जीवप्रमाणमक्कुं - प मत्तमिदं पल्यासंख्यातदिदं भागिसिद बहुभागं मारणां. ११ पप aa वेदनासमुद्घाते ११ । ५ । ५ । ५ कषायसमुद्घाते च पतितोऽस्तीति ज्ञात्वा ११ । ५। ५ । ५ । ५ शेषैकभागो वैक्रियिकसमुद्घाते देयः ११ । ५ ५ ५ ५ अस्मिन् तज्जीवविकुर्वितगजादिशरीरावगाहनसंख्यातघनामुलैर्गुणिते १० तत्समुद्घातक्षेत्रं भवति ११ । ५ ५ ५ ५ पुनस्तस्मिन्नेव सनत्कुमारमाहेन्द्रदेवराशीमरदि असंखेज्जदिमं तस्सासंखा य विग्गहे होंति । तस्सासंखं दूरे उववादे तस्स खु असंखं ॥ -१ इति पल्यासंख्यातभक्तकभागः प्रतिसमयं म्रियमाणजीवप्रमाणं भवति ११ । प । पुनः पल्यासंख्यातभक्त बहुभागो विग्रहगतिजीवप्रमाणं भवति -प पुनः पल्यासंख्यातभक्तबहुभागो मारणान्तिकसमुद्घातजीवप्रमाणं ११।। पप aa ग्यारहवें वर्गमूलसे जगतश्रेणिको भाग देनेपर जो प्रमाण आवे , उतनी है। इस राशिमें संख्यातसे भाग देकर बहुभाग प्रमाण स्वस्थानस्वस्थानमें जीव जानना। शेष रहे एक भागमें पुनः संख्यातसे भाग देकर बहुभाग विहारवत्स्वस्थानमें जीव जानने । शेष रहे एक भागमें पुनः संख्यातसे भाग देकर बहुभाग वेदना समुद्घातमें जानना। शेष रहे एक भागमें पुनः संख्यातसे भाग देकर बहभाग कषाय समदघातमें जानना। शेष रहे एक भा क भाग प्रमाण वैक्रियिक समुद्घातमें जीव जानना। इतने-इतने जीव इनमें होते हैं। इन वैक्रियिक समुद्घातवाले जीवोंके प्रमाणको एक जीव सम्बन्धी हाथी-घोड़ेरूप विक्रियाकी अवगाहना संख्यात घनांगुलसे गुणा करनेपर वैक्रियिक समुद्घातका क्षेत्र आता है। मारणान्तिक समुद्घात और उपपादमें भी क्षेत्र सानत्कुमार-माहेन्द्रकी अपेक्षासे बहुत है, अतः इनका कथन भी उनकी ही अपेक्षा करते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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