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________________ ५ गो० जीवकाण्डे संख्यातसूच्यं गुल विष्कंभोत्सेधद्वयर्द्धरज्वायतक्षेत्र २१ २१ घनफलददं संख्यातप्रतरांगुलगुणित ३ २ ७४८ द्वयर्द्धरज्जुगळदं - ३ | ४१ गुणिसुत्तं विरलु उपपादक्षेत्रमक्कुं ७२ = ४ ४ । ६५ = १ । ६।५ 11 स्वस्थाने देयः लेश्येयोल पद्मलेश्याजीवराशियं संख्यातदिदं भागिति बहुभागमं स्वस्थानस्वस्थानपददोळित्तु शेषैकभागमं मत्तं संख्यातदिदं भागिसि बहुभागमं बिहारवत्स्वस्थानदोलित्तु -४। शेषैकभागमं मत्तं संख्यातदिदं भागिति बहुभागमं वेदनासमुद्घातपद ४ । ६५ = १ । ६।५।५ दोळित्तु =४ शेषैकभागमं कथायसमुद्घातपददोलित -१ ४ । ६।५ = १६।५/५/५ ४ । ६५ - १६।५।५।५ aforमल्लि प्रथमराशियं द्वितीयं द्वितीयराशियुमं क्रोशायाम तन्नवमभाग मुख विष्कंभतिर्य्यग्जीवा १० उपपादक्षेत्रं भवति - ३ प a प प प प प a a a a а 2 - 11 O ४ ४ । ६५ = १६।५।५ ३ प राशिर्भवति ३ प a a प प प प प aaaa a धद्वयर्धरज्ज्वायत क्षेत्रघनफलेन २ १ । २१ संख्यातप्रतराङ्गुलगुणितद्वय र्धरज्जुप्रमितेन – ३ । ४ । १ गुणिते -३ ७।२ ७।२ 9 Jain Education International a ४ ४ । ६५ = १६ ।५ प प प aaa ი प १ १ अस्मिन् समीकरणकृततिर्यग्जीवमुखप्रमा णसंख्यात सूच्यङ्गुलविष्कम्भोत्से प - ३।४१ पद्म a पप । ७२ aa प - ३ । ४ । १ । पद्मलेश्यायां तज्जीवराशे संख्यात भक्तबहुभागः स्वस्थान a ७२ शेषैकभागस्य संख्यातभक्तबहुभागो विहारवत्स्वस्थाने देयः 11 शेषैकभागस्य संख्यात भक्तबहुभागो वेदनासमुद्घाते देयः= ४ ४।६५= १६ । ५।५।५ की मुख्यतासे एक जीव सम्बन्धी प्रदेश फैलनेकी अपेक्षा डेढ़ राजू लम्बा संख्यात सूच्यंगुल प्रमाण चौड़ा ऊँचा क्षेत्र है । इसका घनक्षेत्रफळ संख्यात प्रतरांगुलसे डेढ़ राजूको गुणा करने१५ पर जो प्रमाण है, उतना है। इससे उपपाद जीवोंके प्रमाणको गुणा करनेपर उपपाद सम्बन्धी क्षेत्र आता है । यह पीतलेश्यामें क्षेत्रका कथन किया । अब पद्मलेश्यामें करते हैं पद्मलेश्यावाले जीवोंकी संख्या में संख्यातका भाग देकर बहुभाग स्वस्थानस्वस्थान में जानना । एक भाग में पुनः संख्यातसे भाग देकर बहुभाग विहारवत्स्वस्थान में जानना । शेष एक भागमें संख्यातसे भाग देकर बहुभाग वेदना समुद्घात में जानना । शेष रहा एक For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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