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________________ ७३६ गो० जीवकाण्डे इंतु विशेषदिदं दशपदंगळप्पुबल्लि स्वस्थानस्वस्थानमें बुदेने दोडे उत्पन्नपुरग्रामादि क्षेत्र स्वस्थानस्वस्थानमें बुदु, विवक्षितपर्यायपरिणनिदं परिभ्रमिसल्कुचितक्षेत्रं विहारवत्स्वस्थानमें - बुदु । वेदनादिवशदिदं निजशरीरदणिदं जीवप्रदेशंगळ्गे बहिःप्रदेशदोळु तत्प्रायोग्यविसर्पणं समुद्घातम बुदु । परित्यक्तपूर्वभवंग उत्तरभवप्रथमसमयदोळु प्रवर्तनमनुपपादमें बुदु । इंती ५ स्वस्थानस्वस्थानाविदशपदंगळोळ स्वस्थानस्वस्थानदोळं वेदनाससुद्घातदोळं कषायसमुद्घातदोळं मारणांतिकसमुद्घातदोळमुपपाददोमिती पंचपदंगळोळं कृष्णलेश्याजीवंगळगे क्षेत्रं सर्वलोकमेयक्कुम्मायय्दु पदंगळोळं मुन्नं सख्याधिकारदोळ्पेळ्द कृष्णलेश्याजीवंगळु सर्वसंसारिजीवराशिय किंचिदूनत्रिभागंगळप्पुववं संख्यादिदं भागिसि बहुभागंगळु स्वस्थानस्वस्थानदोळप्पुर्वेदु कोटु शेषकभागमं मत्तं संख्यातदिदं भागिसि बहुभागमं वेदनासमुद्घातदोळप्पुर्वेदु कोटु शेषकभागमं मत्तं संख्यातदिदं भागिसि बहुभागमं कषायसमुद्घातपददोलित्तु शेषैकभागमं फलराशियं माडि एकनिगोदजीवन एकभवायुःस्थितिप्रमाणमुच्छ्वासाष्टादशैकभागमक्कुमदुवुमंतमहत्तमयवकु २२॥ मा कालमं प्रमाणराशियं माडिवोदु समयमनिच्छाराशियं माडि प्र २२॥ प १३-१। इ स १ बंद लब्धमात्रं कृष्णलेश्याजीवंगळु उपपादपददोळप्पुवु १३ ३-५। ५५ । २१ तत्र कृष्णलेश्याजीवराशि १३- संख्यातेन भक्त्वा बहभागः १३-१४ स्वस्थानस्वस्थाने देयः । शेषैकभागस्य ३१५ संख्यातभक्तबहुभागः १३- । ४ वेदनासमुद्धाते देयः । शेषकभागस्य संख्यातभक्तबहुभागः -१३-। ४ कषा३-५।५ ३-५।५।५। यसमुद्घाते देयः । शेषकभागं फलराशिं कृत्वा, एकनिगोदभवायुरुच्छ्वासाष्टादशकभागान्तर्मुहूर्त २ १ प्रमाणराशि कृत्वा एल समयमिच्छाराशिकृत्वा प्र२१फ १३-१ । इ स १ लब्धमुपपादपदे देयं १३ एतस्मिन्नेव ३-५।५।५।२१ पुनः मारणान्तिकसमुद्घातकालान्तर्मुहूर्तेन गुणिते प्रस १ । फ १३-। इ २१ । लब्धं मूलराशिसंख्यात ३-५१५५२१ कभागं मारणान्तिकसमुद्घाते दद्यात् १३–पुनःकृष्णलेश्यात्रयं सपर्याप्त राशि ४ । ३- संख्यातेन भक्त्वा बहु ३-१ २० इन जीवोंका प्रमाण कहते हैं-कृष्णलेश्यावाले जीवोंकी पूर्वोक्त संख्यामें संख्यातसे भाग देकर बहुभाग प्रमाण स्वस्थानस्वस्थानवाले हैं। शेष एक भागमें संख्यातसे भाग देनेपर जो बहुभाग आवे, उतने वेदना समुद्घातवाले हैं। शेष एक भागमें पुनः संख्यातसे भाग देनेपर जो बहुभाग आवे, उतने कषाय समुद्घातवाले जीव हैं। शेष एक भागको फलराशि बनाकर और एक निगोदियाकी आयु उच्छ्वासके अठारहवें भाग प्रमाण अन्तर्मुहूर्त, उसके २५ समयोंको प्रमाणराशि बनाकर तथा एक समयको इच्छाराशि करके फलको इच्छाराशिसे गुणा कर उसमें प्रमाणराशिका भाग देनेसे जितना प्रमाण आवे,उतने जीव उपपादवाले हैं। उपपादवाले जीवों के इस प्रमाणको मारणान्तिक समुद्घातके काल अन्तर्मुहूर्तसे गुणा करनेपर जो प्रमाण आवे, उतने मूलराशिके संख्यातवें भाग जीव मारणान्तिक समुद्घातवाले हैं। ये जीव सर्वलोकमें पाये जाते हैं, इससे इनका क्षेत्र सर्वलोक है। पुनः कृष्णालेश्यावाले पर्याप्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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