SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका सट्टाणसमुग्धादे उववादे सव्वलोयमसुहाणं । लोयस्सा संखेज्जदिभागं खेत्तं तु तेउतिये ॥ ५४३ ॥ ७३५ स्वस्थाने समुद्घाते उपपादे सर्व्वलोकोऽशुभानां । लोकस्यासंख्येयभागं क्षेत्रं तु तेजस्त्रितये ॥ अशुभानां कृष्णनील कापोताशुभलेश्यात्रयद स्वस्थानदोळं समुद्घातदोळं उपपाददोळमितु त्रिस्थानकदोळ क्षेत्रं सव्वलोकमेय कु । तेजस्त्रितयं तेजःपद्मशुक्ल शुभलेश्यात्रयद स्वस्थानदोळं ५ समुद्घातदलं उपपाददोळमिती त्रिस्थानदोळं तु मत्ते क्षेत्रं क्षेत्रवु लोकस्यासंख्येयभागः सव्वलोकद असंख्यातैकभागमक्कुमिंतु सामान्यदिदमशुभलेश्येगळां शुभलेश्यगळगं त्रिस्थानक बोलु क्षेत्रं पेळपट्टुवु । विशेषदिदं षड्लेश्यगळगे दशस्थानंगळोळ क्षेत्रं पेळल्पडुगुमल्लि क्षेत्र में बुदेने दोर्ड विवक्षित लेश्याजीवंगळ्दिं वर्तमानकालदोलु विवक्षितपदविशिष्टत्वदिदमवष्टब्धाकाशप्रदेशंगळं क्षेत्रमेंबुदर्थमें बुद्विल्लि सामान्यदिदं स्वस्थानमुं समुद्घातमुमुपपादमुमेंदु त्रिपदंगळोळु लेश्येगळ क्षेत्रं १० पेळल्पदुदु । विशेषददं दशस्थानंगळोळु षट्लेयेगळ क्षेत्रं पेल्प गुमल्लि स्वस्थानं सामान्यदिदमों डदं भेदिसिदोडे स्वस्थानस्वस्थानमें दुं विहारवत्स्वस्थानमें दु द्विविधमक्कुं । सामान्यदिदं समुद्रघातमो ददं भेदिसिदोर्ड वेदनासमुद्घात में दुं कषायसमुद्घात में दुं वैक्रियिकसमुद्घात में दुं मारणांतिक समुद्घातर्म ढुं तेजः समुद्घात में दुमाहारकसमुद्घात में दु केवलसमुद्घात में दितु समुद्घातं सप्तविधमक्कुमुपपादमेकप्रकारमेयक्कुं । १५ विवक्षितलेश्याजीवैर्वर्तमानकाले विवक्षितपदविशिष्टत्वेनावष्टब्धाकाशः क्षेत्रम् । तच्च स्वस्थाने समुद्घाते उपपादे च यशुभलेश्यानां सर्वलोकः । तेजोलेश्यादित्रयस्य तु पुनः लोकस्यासंख्यातैकभागः सामान्येन भवति विशेषेण तु तत्र दशपदेषूच्यते । तत्र तावत् उत्पन्नपुरग्रामादिक्षेत्रं तत् स्वस्थानस्वस्थानं, विवक्षितपर्यायपरिणतेन परिभ्रमितुमुचितक्षेत्रं तद्विहारवत्स्वस्थानमिति स्वस्थानं द्वेषा | वेदनादिवशेन निजशरी राज्जीव प्रदेशानां बहिः प्रदेशे तत्प्रायोग्यविसर्पणं समुद्घातः । स च वेदनाकषायवैक्रियिकमारणान्तिकतैजसाहारक केवलिभेदात् २० सप्तधा । परित्यक्त पूर्वभवस्य उत्तरभवप्रथमसमये प्रवर्तनमुपपाद इति दशपदानि । तेषु स्वस्थानस्वस्थाने वेदनासमुद्घाते कषायसमुद्घाते मारणान्तिकसमुद्घाते उपपादे चेति पञ्चपदेषु कृष्णलेश्याजीवक्षेत्रं सर्वलोकः। विवक्षित लेश्यावाले जीव वर्तमान कालमें विवक्षित स्वस्थानादि पद से विशिष्ट होते हुए जितने आकाश में पाये जाते हैं, उसका नाम क्षेत्र है । वह क्षेत्र स्वस्थान, समुद्घात और उपपाद में तीन अशुभ लेश्यावालोंका सर्वलोक है । तेजोलेश्या आदि तीनका क्षेत्र सामान्य से २५ लोकका असंख्यातवाँ भाग है । विशेष रूपसे दस स्थानोंमें कहते हैं - स्वस्थानके दो भेद हैं - स्वस्थानस्वस्थान और विहारवत्स्वस्थान । उत्पन्न होनेके ग्राम-नगर आदि क्षेत्रको स्वस्थानस्वस्थान कहते हैं । और विवक्षित पर्यायसे परिणत होते हुए परिभ्रमण करने के उचित क्षेत्रको विहारवत्स्वस्थान कहते हैं । वेदना आदिके कारणसे अपने शरीरसे जीवके प्रदेशोंके उसके योग्य बाह्य प्रदेश में फैलनेको समुद्घात कहते हैं । उसके सात भेद हैं - वेदना, कषाय, वैक्रियिक, मारणान्तिक, तैजस, आहारक और केवली समुद्घात | पूर्वभवको छोड़कर उत्तरभव के प्रथम समय में प्रवर्तनको उपपाद कहते हैं । इस प्रकार ये दस स्थान हैं। उनमें से स्वस्थानस्वस्थान, वेदना समुद्घात, कषाय समुद्घात, मारणान्तिक समुद्घात और उपपाद इन पाँव पदों में कृष्णलेश्यावाले जीवोंका क्षेत्र सर्वलोक है । अब ३० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy