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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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कालसंचर्याददं द्रव्यतः प्रमाणमरियल्पडुगुमदें तें दोडे ई मूरुमशुभलेश्येगळ कालं कूडि सामान्यदिदमंतर्मुहूर्त मात्रमक्कु || २१ | मिदनावल्यसंख्यातदिदं भागिसि बहुभागमं समभागं माडि मूर्रारदं भागिसि कृष्णनीलकपोतंगळगे कोट्टु मिक्केक कालभागमं मत्तमावलिय संख्यातदिदं भागिति बहुभागमं कृष्ण लेश्येगे कोट्टु शेषैकभागमं मत्तमावल्यसंख्यातभार्गादिदं खंड बहुभागमं नीललेयेगे कोट्टु शेषैकभागमं कपोतले श्येगे कोट्टोडा मूरुं कालंगळितिवु । ५ नी कपोत प्रक्षेपयोगोद्धृतमिश्रपिंड इत्यादियि २१६७२ २१६५१ ९।९।९।३ ९।९।९।३
I
मूरुं राशिगळं कूडिदोड २ २१८७ इदर भाज्यभागहारंगळं सरिये दर्पात्तसिदोडिदु २१ इंतु
९।९।९।३
कृ
२१ । ८६४
१।९।९।३
त्रैराशिकं माडल्पडुगुं प्र २१ फ१३ । इ २१८६४ बंद लब्धं कृष्णलेश्याजीवंगळ प्रमाणमवकुं ९।९।९।३
१३-८६४ इदनपर्वात्तसिदोडे किंचिदूनत्रिभागमक्कुं कृ १३ - | नी १३-कपो १३ इंतु काल
९९९।३
३
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कालमाश्रित्य द्रव्याणि भक्तव्यानि । तद्यथा —— कृष्णनीलकपोत लेश्याः संस्थाप्य तासां कालो मिलित्वापि १० अन्तर्मुहूर्त्तः २ १ आवल्यसंख्यातेन भक्ते बहुभागः त्रिभिर्भक्त्वा प्रत्येकं देयः । शेषैकभागे पुनरावल्यसंख्यातेन भक्ते बहुभागः कृष्णलेश्यायां देयः । शेषैकभागे पुनः आवल्यसंख्यातेन भक्ते बहुभागो नीललेश्याया देयः । शेष भागे कपोत लेश्यायां दत्ते त्रयो राशय एवं कृ २ ८६४, नी २ । ६७२, ९।९।९।३,
९ । ९ । ९ । ३,
अधुना शिकं प्र २१ । फ १३
क २ । ६५१, एषां योगः २ ३ २१८७ अपवर्तितः २ १ । ९ । ९ । ९ । ३, ९ । ९ । ९ । ३
इ २१ । ८६४ लब्धं कृष्णलेश्याजीवप्रमाणं १३ - ८६४ अपवर्तिते किंचिदूनत्रिभागो भवति एवं नील- १५ ९।९।९।३ ९।९।९३
समान भागों में इन भागोंको जोड़नेपर कृष्ण आदि लेश्यावाले जीवोंकी संख्या होती है । यह क्रम से कुछ-कुछ कम होती है । इस प्रकार कृष्ण आदि तीन लेश्यावाले जीवोंका द्रव्यकी अपेक्षा प्रमाण कहा । अथवा कालका आश्रय लेकर द्रव्योंका विभाग करना चाहिए । वह इस प्रकार है- -कृष्ण, नील और कापोतलेश्याको स्थापित करो। उनका काल मिलकर भी अन्तर्मुहूर्त है । उस कालको आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देकर बहुभागको तीनसे २० विभाजित करके प्रत्येक लेश्यामें एक-एक भाग दो । शेष एक भागमें पुनः आवली के असंख्यातवें भागसे भाग देकर बहुभाग कृष्णलेश्या में दो । पुनः शेष एक भाग में आवली के असंख्यातवें भागसे भाग दो । बहुभाग नीललेश्या में दो । शेष एक भाग कापोत लेश्याको दो। तीनों को मिले दोनों भागोंको जोड़नेपर प्रत्येक लेश्याका अपना-अपना कालका प्रमाण होता है । अब त्रैराशिक करो। तीनों लेश्याओंका सम्मिलित काल तो प्रमाण राशि । अशुभ लेश्या - २५ वाले जीवोंका प्रमाण कुछ कम संसारी जीवराशि मात्र फलराशि । कृष्णलेश्याके कालका प्रमाण इच्छाराशि । फलराशिसे इच्छाराशिको गुणा करके प्रमाणराशिसे भाग देनेपर लब्धराशि प्रमाण कृष्णलेश्यावालोंकी राशि जानना । सो कुछ कम तीनका भाग अशुभ लेश्यावाले
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