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________________ ४४४४४ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ७१७ आयुबंधमं माळ्प जघन्याद्धि संख्यातगुणमक्कु २२ । ५ । ४ । ५।४।५।४।५।मदं ४।४।४।४ नोडलदरुत्कृष्टं विशेषाधिकमक्कु २३ । ५ । ४ । ५।४।५।४।५॥ ४५ मदं नोडलं षडपकर्षगळिदमायुब्बंधमं माळ्पन षष्ठापकर्षदोळायुबंधमं माळपंगे जघन्यबंधाद्धि संख्यातगुणमक्कुं २१ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ । ४ मदं नोडलदरुत्कृष्टबंधाद्धि विशेषाधिकमक्कु २१ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ । ४।५ मी प्रकारदिदमेकापकर्षदुत्कृष्टपथ्यंत नडसल्पडुगुमंतु नडसुत्तिरलु आयुबंधाद्धि विकल्पंगळेप्पत्तरडुप्पुवु-७२। मितायुबंधयोग्यंगळु ४।४।४।४।४।४। जघन्यं संख्यातगुणं २ १ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ । ४ ततस्तदुत्कृष्टं विशेषाधिक २११५।४।५।४।५।४।५ । ततः ४। ४ । ४ ४।४।४।४ सप्तापकर्षे रायुर्बघ्नतः षष्टापकर्षे आयुर्बन्धाद्धा जघन्यं संख्यातगुणं २१ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ । ४ ४।४।४। ४ ततस्तदुत्कृष्टं विशेषाधिक-२१ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ । ४ । ५ ततः षडपकरायुर्बघ्नतः षष्ठापकर्षे ४।४।४।४।४ आयुर्बन्धाद्धा जघन्यं संख्यातगण-२१ । ५। ४ । ५।४।५।४।५ । ४ । ५ । ४ ततस्तदुत्कृष्टं विशेषा ४।४।४।४।४ द्वारा आयुबन्ध करनेवाले जीवके छठे अपकर्षमें आयुबन्धका जघन्य काल संख्यातगुणा है। उससे उसका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। उससे सात अपकर्षोंके द्वारा आयुबन्ध करनेवाले जीवके छठे अपकर्ष में आयुबन्धका जघन्य काल संख्यातगुणा है। उससे उसका उत्कृष्ट काल विशेष अधिक है। उससे छह अपकर्षों के द्वारा आयुबन्ध करनेवाले जीवके छठे अपकर्ष में आयुबन्धका जघन्य काल संख्यातगुणा है। उससे उत्कृष्ट काल विशेष १५ अधिक है। इस प्रकार एक अपकर्षके उत्कृष्ट पर्यन्त ले जानेपर बहत्तर ७२ विकल्प होते हैं ।।५१८॥ विशेषार्थ-ऊपर टीकामें इन बहत्तर भेदोंकी रचना दिखायी है। उसमें आठ अपकर्षोंके द्वारा आयुबन्धकी रचनामें पहली पंक्तिके कोठोंमें जो आठ-आठका अंक रखा है, वह यह बतलाता है कि यहाँ आठ अपकर्षों के द्वारा आयु बाँधनेवालोंका ग्रहण जानना । दूसरी• २० तीसरी पंक्तिमें जो आठसे लेकर एक तक अंक लिखे हैं, उनसे यह बतलाया है कि आठ अपकर्षों के द्वारा बन्ध करनेवाले जीवके आठवें आदि अपकर्षोंका प्रहण किया गया है । जिसमें-से दूसरी पंक्तिमें जघन्य कालको लेकर और तीसरी पंक्तिमें उत्कृष्ट कालको लेकर ग्रहण किया है। इसी प्रकार सातसे लेकर एक अपकर्ष तक आयुबन्धकी रचनाका अर्थ जानना। आठों रचनाओंके दूसरी और तीसरी पंक्तिके सब कोठे जिनके ऊपर ज और उ २५ लिखा है. बहत्तर हैं। इन बहत्तर स्थानोंमें आयुबन्धके कालका अल्पबहुत्व इस प्रकार जानना। विवक्षित जघन्यमें संख्यातका भाग देनेपर जो प्राप्त हो, उतना विशेषका प्रमाण जानना । उसको जघन्यमें जोड़नेपर उत्कृष्टका प्रमाण होता है, उत्कृष्टसे आगेका जघन्य संख्यातगुणा जानना । सामान्यसे सबका काल अन्तमुहूत है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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