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________________ ७१२ गो. जीवकाण्डे शंगळे दु । ८। अंतु लेश्यांशंगळनितुं ष विंशत्यंशगलप्पुववरोळा मध्यमांशंगळप्पायुबंधयोग्यांशगळे दुमष्टापकर्षकालसंभवंगळप्पुव ते दोडे भुज्यमानायुष्यमनपकर्षिसियपकर्षिसि परायुष्यम कटुवुदनपकर्षम बुदु पूर्वायुरपकृष्यापकृष्यैव परायुर्बध्यत इति अपकर्षः एंदिती निरुक्तिलक्षणसिद्धमप्पुरिदमी येंटुमपकर्षगळ्गे स्वरूप, तेंदोडोव्वं कर्मभूमिजं मनुष्यनागल्मेण्तियंचनागलु ५ भुज्यमानायुष्यं जघन्यमध्यमोत्कृष्टमं विवक्षितमनदं ६५६१ त्रिभागं माडिदेक भागद २१८७ प्रथम. समयं मोदल्गोंडतम्र्मुहुर्त्तकालमायुबंधयोग्यमक्कुमल्लि परभवायुष्यम कटुगुमल्लि कट्टिदोडे अपं त्रिभागं माडिदेकभागद ७२९ प्रथमकालदंतर्मुहूतदोळु बंधमिल्लदोडदं विभागं माडिदेकभागद २४३ प्रथमकालांतर्मुहत्तंदोळ्कट्टदोडदं त्रिभागं माडिदेकभागद ८१ प्रथमकालदोळ्बंधमिल्लिदोडदं त्रिभागं माडिदेकभागद २७ प्रथमसमयदोळु परभवायुष्यम कट्टल्मोदल्गोळळदिदो उदं त्रिभागं माडिदेकभागद ९ प्रथमांतर्मुहूर्त्तक्क परभवायुष्यम कट्टदोडवं त्रिभागं माडिदेकभागवोळु ३। प्रथमकालदोळकट्टदिदोडदं त्रिभागं माडिदेकभागद १ प्रथमकालदोळु परभवायुष्यमं कटुगुमितुंटेयपकषंगळुप्पुवा एंटनेय अपकर्षदोळायुबंधमक्कुमेंब नियममुमिल्लं । मत्तपकर्षमुमिल्लमंतादोडायुबंध तक्कम दोर्ड आ आ संक्षेपार्द्ध भुज्यमानायुष्यदोलुळिदुर्दै बागळपरभवायुष्मंतर्मुहर्त्तमात्रसमय प्रबद्धंगळनियमदिदं कट्टि समाप्तमागले वेळकुम बिदु नियममक्कुम दरिवुदु । आ संक्षेपाद्धि ये बदूं १५ भुज्यमानायुष्यद कडयोळावल्यसंख्यातैकभागमक्कुं। भागद्वयेऽतिक्रान्ते तृतीयभागस्य २१८७ प्रथमान्तर्मुहूर्तः परभवायुर्बन्धयोग्यः, तत्र न बद्धं तदा, तदेकभागतृतीयभागस्य ७२९ प्रथमान्तर्मुहूर्तः । तत्रापि न बद्धं तदा तदेकभागतृतीयभागस्य २४३ प्रथमान्तर्मुहूर्तः । एवमग्रे नेतव्यमष्टवारं यावत् । इत्यष्टैवापकर्षाः । नाष्टमापकर्षेऽप्यायुर्बन्धनियमः, नाप्यन्योऽपकर्षः तहि आयुर्बन्धः कथं ? असंक्षेपाडा भुज्यमानायुषोऽन्त्यावल्यसंख्येयभागः तस्मिन्नवशिष्ट प्रागेव अन्तर्मुहूर्तमात्रसमयप्रबद्धान् परभवायु२० नियमेन बद्ध्वा समाप्नोतीति नियमो ज्ञातव्यः होता है, इसे ही अपकर्ष कहते हैं। अपकर्षोंका स्वरूप कहते हैं-किसी कर्मभूमिके तियंच या मनुष्योंकी भुज्यमान आयु जघन्य अथवा मध्यम अथवा उत्कृष्ट ६५६१ पैसठ सौ इकसठ वर्ष है। इसमें से दो भाग बीतनेपर तृतीय भाग इक्कीस सौ सत्तासी २१८७ का प्रथम अन्तर्मुहूर्त परभवकी आयुबन्धके योग्य है। यदि उसमें बन्ध नहीं हुआ, तो उस इक्कीस सौ २५ सत्तासीके दो भाग बीतनेपर तृतीय भाग सात सौ उनतीस ७२९ का प्रथम अन्तमुहूत पर भवकी आयुबन्धके योग्य होता है। उसमें भी यदि बन्ध नहीं हुआ,तो सात सौ उनतीसमें-से दो भाग बीतनेपर तीसरे भाग दो सौ तैतालीसका प्रथम अन्तर्मुहूर्त आयुबन्धके योग्य है। इसी प्रकार आगे-आगे आठ बार तक ले जाना चाहिए। इस प्रकार आठ ही अपकर्ष होते हैं। आठवें अपकर्ष में भी आयुबन्ध नियमसे नहीं होता और अन्य अपकर्ष भी नहीं होता। ३० तब आयुबन्ध कैसे होता है ? उत्तर है-'आसंक्षेपाद्धा' अर्थात् मुज्यमान आयुके अन्तिम आवलीका असंख्यातवाँ भाग अवशेष रहनेसे पहले ही अन्तर्महर्त मात्र समयप्रबद्धोंको लेकर परभवकी आयु नियमसे बाँधकर समाप्त करता है, यह नियम जानना। यहाँ विशेष १. ब. कर्षणायु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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