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गो. जीवकाण्डे गंभीररचनेगळ परिरंभणेयं बिडिसि निरिसिदुदनेबुद प्रा- रंभिसि गोम्मटवृत्ति सुघांभोलियिनोडिगे मोहवनाचलमं ॥
इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्ररचितायां गोम्मटसारापरनामपञ्चसंग्रहवृत्तौ जीवतत्त्वप्रदीपिकाख्यायां जीवकाण्डे
विंशतिप्ररूपणासु ज्ञानमार्गणाप्ररूपणानाम द्वादशोऽधिकारः ॥१२॥
५ इस प्रकार आचार्य श्री नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी भगवान् अर्हन्त देव
परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु मण्डलाचार्य महावादी श्री अमयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंकी धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटवृत्ति जीवतत्व प्रदीपिकाको अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्डकी बीस प्ररूपणाओं में से ज्ञानमार्गणा प्ररूपणा
नामक बारहवाँ अधिकार सम्पूर्ण हुआ ॥१२॥
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