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________________ ६५७ a a कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका देशावधिज्ञानविषयजघन्यकालमं नोडलु ८ मसंख्यातगुणहोनमात्रंगळप्पुवु ८ स्फुटमागि। सव्वोहित्तिय कमसो आवलियसंखभागगुणिदकमा । दव्वाणं भावाणं पदसंखा सरिसगा होंति ॥४२३॥ सर्वावधिज्ञानपयंतं क्रमशः आवल्यसंख्यभागगुणितक्रमाः। द्रव्याणां भावानां पदसंख्याः सदृशाः भवंति ॥ देशावधिज्ञानविषयजघन्यद्रव्यदपव्यंगळप्प भावंगळू जघन्यदेशावधिज्ञानं मोदल्गोंडु सर्वावधिज्ञानपय्यंतं क्रमदिदं आवल्यसंख्यातगुणितकमंगळप्पुवदु कारणमागि द्रव्यंगळगं भावंगल्गं स्थानसंख्यगळ समानंगळेयप्पुवु । अनंतरं नरकगतियोळ नारकर्गवधिविषयक्षत्रमं पेळ्दपरु सत्तमखिदिम्मि कोसं कोसस्सद्धं पवढदे ताव । जाव य पढमे णिरये जोयणमेक्कं हवे पुण्णं ॥४२४।। सप्तमक्षितौ क्रोशः क्रोशस्याद्धं प्रवर्द्धते तावत् । यावत्प्रथमे नरके योजनमेकं भवेत्पूर्ण ॥ सप्तमक्षितिमाघवियोळु नारकर्गवधिविषयमप्प क्षेत्रमेकक्रोशमात्रमकुं । षष्टक्षितियोळु क्रोशाद्धं पर्चुगं। पंचमक्षितियोळु मत्तमदं नोडे क्रोशालु पेर्चुगं। चतुर्थ क्षितियोलहर मेले क्रोशाळू पेर्चुगुं। तृतीयक्षेत्रदोळदर मेले क्रोशाद्धं पेर्चुगुं। द्वितीयपृथ्वियोळमंत क्रोशाद्धं १५ पेर्चुगु। प्रथमक्षितियोळु क्रोशाद्धं पेच्चि संपूर्ण योजनप्रमाणमक्कुं। मा क्रोश १ । म ३ । अ। क्रोश २। अं क्रोश ५ । मे क्रोश ३ । वं को ७। घ को ४।। १० २ असंख्यातगुणहीनभावाः स्फुटं भवन्ति ८ ॥४२२॥ aa देशावधिजघन्यद्रव्यस्य पर्यायरूपभावाः जघन्यदेशावधितः सर्वावधिज्ञानपर्यन्तं क्रमेण आवल्यसंख्यातगणितक्रमाः स्युः । तेन द्रव्याणां भावानां च स्थानसंख्या समाना एव ॥४२३॥ अथ नरकगताववधिविषय- २० क्षेत्रमाह सप्तमक्षितौ अवधिविषयक्षेत्र एकक्रोशः । तत उपरि प्रतिपृथ्वि तावत् क्रोशस्यार्धाधं प्रवर्धते यावत्प्रथमे हैं; तथापि उसके विषयभूत जघन्य कालसे असंख्यातगुणा हीन हैं ॥४२२।। देशावधिके विषयभूत द्रव्य के पर्यायरूप भाव जघन्य देशावधिसे सर्वावधिज्ञान पर्यन्त क्रमसे आवलीके असंख्यातवें भाग प्रमाणसे गुणित हैं । अर्थात् देशावधिके विषयभूत द्रव्य- . २५ की अपेक्षा जहाँ जघन्य भेद है, वहाँ ही द्रव्यके पर्यायरूप भावकी अपेक्षा आवलीके . असंख्यातवें भाग प्रमाण भावको जाननेरूप जघन्य भेद है। जहाँ द्रव्यकी अपेक्षा दूसरा भेद है, वहीं भावकी अपेक्षा उस प्रथम भेदको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर जो प्रमाण आवे,उस प्रमाण भावको जानने रूप दूसरा भेद है। इसी प्रकार सर्वावधिपयन्त जानना । इस तरह अवधिज्ञानके जितने भेद द्रव्यकी अपेक्षा हैं, उतने ही भावकी अपेक्षा है। अतः द्रव्य और भावकी अपेक्षा स्थान संख्या समान है ।।४२३।। अब नरकगतिमें अवधिज्ञानका विषयक्षेत्र कहते हैंसातवीं पृथ्वीमें अवधिज्ञानका विषयभूत क्षेत्र एक कोस है। उससे ऊपर प्रत्येक ८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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