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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ६५३ सर्वावधिज्ञानविषयकालदोळ परमावधिज्ञानविषयोत्कृष्टकालगुण्यक्कयुमसंख्यातलोकं । = a गुणकारमक्कुमा परमावधिज्ञानविषयसर्वोत्कृष्टक्षेत्रकालंगळ प्रमाणंगळता मनितेंदोडे तदानयनविधानकरणसूत्रद्वयमं पेन्दपं । इच्छिदरासिच्छेदं दिण्णच्छेदेहि भाजिदे तत्थ । लद्धमिददिण्णरासीणब्भासे इच्छिदो रासी ।।४२०।। ईप्सितराशिच्छेदं देयच्छेदै जिते तत्र । लब्धमितदेयराशीनामभ्यासे ईप्सितो राशिः। इदु साधारणसूत्रमप्पुरिदमिल्लियंकसंदृष्टि मुन्नं तोरिसल्पडुगुमदेते दोर्ड परमावधिज्ञानविषयक्षेत्रकालंगळोळावल्यसंख्यातभागगुणकारंगळु पूर्वोक्तकदिदं विवक्षितगच्छधनप्रमितंगळेब व्याप्तियंटप्पुरिदं परमावधिज्ञान तृतीयविकल्पमं विवक्षितं माडिकोंडु ईप्सितराशियुमं बेसदछप्पण्णनं माडि २५६ अदक्के गुणकारभूतावल्यसंख्यातक्के चतुःषष्टि चतुर्थाशमं ६४ संदृष्टियं १० माडिदीयावलियऽसंख्यातगुणकारंगळा तृतीयविकल्पदोळु गच्छधनप्रमितंगळ्प्पुवु ३।४ लब्ध २।१ धिविषयक्षेत्रानयने गुणकारो भवति = a = a अनेन परमावधिज्ञानविषयसर्वोत्कृष्टक्षेत्रे गुणिते सर्वावधिज्ञानविषयक्षेत्रं स्यात इत्यर्थः । तु–पुनः सर्वावधिविषयकालानयने परमावधिविषयसर्ऋत्कृष्टकालस्य प-१ Zamaa असंख्यातलोकः = गुणकारो भवति ॥४१९॥ तत्परमावधिविषयोत्कृष्टक्षेत्रकालप्रमाणानयनविधाने करणसूत्रद्वयमाह अस्य साधारणसूत्रत्वात् ईप्सितराशेः वेसदछप्पण्णस्य अर्धच्छेदाः अष्टौ ८ । एषु देयस्य आवल्यसंख्येयभागसंदृष्टिचतुःषष्टिचतुर्थाशस्य ६४ अर्धच्छेदैः. भागहारार्धच्छेदन्यूनभाज्यार्धच्छेदमात्रः ६-२ भाजितेषु सत्सु ८ तत्र यावल्लब्धं २ तावन्मात्रदेयराशीनां ६४ ६४ अभ्यासे परस्परगणने कृते सति ईप्सितराशिरुत्पद्यते । २५६ एवं पल्यसूच्यङ्गुलजगच्छ्रे णिलोकानामपीप्सितराशीनामर्धच्छेदेषु देयस्यावल्यसंख्येयभागल्यार्धच्छेविषयभूत कालका परिमाण लाने के लिए असंख्यात लोक गुणकार है। इस असंख्यात लोक २. प्रमाण गुणकारसे परमावधिके विषयभूत सर्वोत्कृष्ट कालको गुणा करनेपर सर्वावधिज्ञानके विषयभूत कालका परिमाण होता है ।।४१५॥ . __ अब परमावधिके विषयभूत उत्कृष्ट क्षेत्र और उत्कृष्ट कालका प्रमाण लानेके लिए दो करणसूत्र कहते हैं .. यह करणसूत्र होनेसे सब जगह लग सकता है। इसका अर्थ-इच्छित राशिके २५ अर्धच्छेदोंको देयराशिके अर्धच्छेदोंसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे, उसको एक-एक करके पृथक्-पृथक् स्थापित करे । और उस एक-एकके ऊपर जिस देयराशिके अर्धच्छेदोंसे भाग दिया था,उसी देयराशिको रखकर परस्परमें गुणा करनेपर इच्छितराशिका प्रमाण आता है। जैसे इच्छित राशि दो सौ छप्पन २५६ के अर्धच्छेद आठ ८। देयराशि चौंसठका चौथा भाग-2 सोलह । उसके अर्धच्छेद चार। क्योंकि भाज्यराशि चौंसठके अर्धच्छेद छह है। ३. उसमें-से भागहार चारके अर्धच्छेद दो घटानेसे शेष चार अर्धच्छेद बचते हैं। इन चार । अधच्छेदोंका भाग आठ अर्धच्छेदोंमें देनेसे दो लब्ध आया। सो दोका विरलन करके एकएकपर देयराशि चौंसठके चतुर्थ भाग सोलह रखकर परस्परमें गुणा करनेसे इच्छितराशि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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