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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका कालविसेसेणावहिदखेत्तविसेसो धुवा हवे वड्ढी । अधुववड्ढी वि पुणो अविरुद्धं इट्ठकंडम्मि ॥४०८॥ कालविशेषेणापहृतक्षेत्रविशेषो भवेत् ध्रुवा वृद्धिः । अध्रुववृद्धिरपि पुनरविरुद्ध मिष्टकांडके। कालविशेशेणापहृतः क्षेत्रविशेषो ध्रुवा वृद्धिर्भवेत् । प्रथमकांडकदोळ जघन्यकालमं ८ तन्नुत्कृष्टकालदोळ ८ विशेषिसि ८० - १ अरिवं भागिसल्पट्ट क्षेत्रविशेष जघन्यक्षेत्रमं ६ तन्नुत्कृष्टक्षेत्रदोळु ६ शेषिसिदुनिंद ६ -३ भागिसिद लब्ध ६ ०-१ मपत्तितमिदु ६ orD ५ V ध्रुवा भवेत् वृद्धि ः। प्रथमकांडकदोळु ध्रुवरूपक्षेत्रवृद्धिप्रमाणमक्कुं । सूच्यंगुलासंख्यातभागमात्रद्रव्यविकल्पंगळवस्थितरूपदिवं नडदोंदु प्रदेश क्षेत्रदोळ पेर्चुगुमो क्रमदिदमीयावलि भक्तघनांगुलप्रमितप्रदेशंगळु जघन्यक्षेत्रदोळु पेच्चि कालदोळोंदु समयं जघन्यकालद मेले पेर्चुगुमितु तत्कांडक चरमपयंतं घंवरूपदिदं जघन्यकालद मेले पेच्चिद समयंगळि नितप्पुवु ८०१ इवं जघन्य- १० कालोळ ८ समच्छेदं माडि कूडिदोडे प्रथमकांडक चरमदोळ आवलि संख्येयभागमक्कुम बुदर्थ ८ जघन्य क्षेत्रद मेले ६ पेच्चिद प्रदेशंगळुमिनितप्पुवु ६३१ विवं जघन्यक्षेत्रदोळु कूडिदोडे प्रथमकांडकचरमदोळु घनांगुलसंख्येयभागमात्रमक्कुं ६ इंतल्ला कांडकंगोळं ध्रुववृद्धियं विवक्षितकाण्डके जघन्यत्रं स्वोत्कृष्टक्षेत्रे जघन्यकालं च स्वोत्कृष्टकाले विशोध्य शेषराशी क्षेत्रकालविशेषौ स्याताम् । तत्र प्रथमकाण्डके कालविशेषेण ८ -१क्षेत्रविशेषः ६ । -भक्त्वा ६ -2 १ra १०८३-१ १५ १० अपवर्तितः ६ ध्रु वावृद्धिर्भवेत् । सूच्यमुलासंख्येयभागमात्रद्रव्यविकल्पेषु अवस्थितरूपेण गतेषु एकप्रदेशः क्षेत्रे ८ वर्धते । अनेकक्रमेण आवलिभक्तधनाङ्गुलप्रमितप्रदेशाः जघन्यक्षे त्रस्योपरि वर्धन्ते । तदा जघन्यकालस्योपरि एकः समयो वर्धते । एवं तत्काण्डकचरमपर्यन्तं ध्रुवरूपेण जघन्यकालस्योपरि वर्धितसमयप्रमाणमिदम् । ८ -१ विवक्षित काण्डकके अपने उत्कृष्ट क्षेत्र में जघन्य क्षेत्रको और अपने उत्कृष्ट कालमें। जघन्य कालको घटानेपर जो शेष राशि रहती है,उसको क्षेत्र विशेष और काल विशेष कहते २० हैं। प्रथम काण्डकके कालविशेषसे क्षेत्रविशेषमें भाग देनेपर ध्रुववृद्धिका प्रमाण होता है। । सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागमात्र द्रव्यके विकल्पोंके बीतनेपर क्षेत्रमें एक प्रदेश बढ़ता है। इस क्रससे जघन्य क्षेत्रके ऊपर आवलीसे भाजित घनांगुल प्रमाणप्रदेश जघन्य क्षेत्रके ऊपर बढ़ते हैं। इतने प्रदेश जघन्य क्षेत्रके ऊपर बढ़नेपर जघन्यकालके ऊपर एक समय बढ़ता है। इस प्रकार प्रथम काण्डकके अन्त पर्यन्त ध्रुववृद्धिसे जितने समय बढ़े, उन्हें जघन्यकालमें । मिलानेपर आवलीका संख्यातवाँ भाग प्रथम काण्डकका उत्कृष्ट काल होता है। इसी तरह जितने जघन्य क्षेत्रके ऊपर प्रदेश बढ़ें, उन्हें जघन्य क्षेत्रमें मिलानेपर घनांगुलका संख्याता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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