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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका भरहम्मि अद्धमासं साहियमासं च जंबुदीवम्मि । वासं च मणुवलोए वासपुधत्तं च रुजगम्हि ॥४०६॥ भरतेमासः साधिकमासश्च जंबूद्वीपे। वर्षं च मनुजलोके वर्षपृथक्त्वं च रुचके ॥ अष्टमकांडकोळ भरतक्षेत्रमुमर्द्धमासमक्कुं । भर । अर्द्ध मा. । नवमकांडकदोळु जंबूद्वीपमं साधिकमासमुमक्कुं। जं मा. १'। दशमकांडकदोळु मनुष्यलोकमुमेकवर्षमुमक्कुं। म ४५ ल। ५ वर्ष १। एकादशकांडकदोळु रुचकद्वीपमं च वर्षपृथक्त्वमुमक्कुं । रु। व पृ। संखेज्जपमे वासे दीवसप्लुद्दा हवंति संखेज्जा । वासम्मि असंखेज्जे दीवसमुद्दा असंखेज्जा ॥४०७।। संख्येयप्रमे वर्षे द्वीपसमुद्रा भवंति संख्येयाः । वर्षे असंख्येये द्वीपसमुद्रा असंख्येयाः॥ द्वादशकांडकोळु संख्येवमात्र द्वीपसमुद्रंगळु संख्यातवर्षगळुमप्पुवु । द्वी=स=१॥ वर्ष १. १। मेळे त्रयोदशादि कांडकंगळोळु तैजसशरीरादि द्रव्यविकल्पंगळेडयोळु मुं पेन्दऽसंख्यातद्वीपसमुद्रंगळु तत्कालंगळुमसंख्यातवर्षगळुमसंख्यातगुणितक्रमंगळप्पुवु । इंतु देशावधिज्ञानविषयंगळप्प द्रव्यक्षेत्रकालं भावंगळ एकानविंशतिकांडकंगळोळु चरमकांडक चरमद्रव्यक्षेत्रकालभावंगळु मुं पेळ्द ध्र वहारैकवारभक्तकार्मणवर्गणेयुं व संपूर्णकमु=समयोनैकपल्यमुं ॥ ५१७। यथाक्रमदिदमप्पुवुमाद्यदेशावधिज्ञानविषय द्रव्यक्षेत्रकालभावंगळगे संदृष्टि अष्टमकाण्डके क्षेत्रं-भरतक्षेत्र, काल अर्धमासः, भर अर्धमा = । नवमकाण्डके क्षेत्र जम्बूद्वीपः, काल: साधिकमासः, जं = । मा १। दशमकाण्डके क्षेत्रं मनुष्यलोकः कालः एकवर्षः, ४५ ल वर्ष १। एकादशे काण्डके क्षेत्र रुचकद्वीपः, कालः वर्षपृथक्त्वं रु । व पृ॥४०६॥ द्वादशे काण्डके क्षेत्र संख्येयद्वीपसमुद्राः । कालः संख्यातवर्षाणि द्वी = स = १ वर्ष १ । उपरित्रयोदशादिषु काण्डकेषु तैजसशरीरादिद्रव्यविकल्पस्थानेषु क्षेत्राणि असंख्यातद्वीपसमुद्राः कालः असंख्यातवर्षाणि २० उभयेऽपि असंख्यातगुणितक्रमेण भवन्ति । चरमकाण्डकचरमे द्रव्यं ध्र वहारभक्तकार्मणवर्गणा व क्षेत्रं संपूर्ण १५ २५ लोकः कालः समयोनपल्यं प-१॥४०७॥ अष्टमकाण्डकमें क्षेत्र भरतक्षेत्र और काल आधामास है। नौवें काण्डकमें क्षेत्र जम्बूद्वीप काल कुछ अधिक एक मास है। दसवें काण्डकमें क्षेत्र मनुष्य लोक, काल एक वर्ष है । ग्यारहवें काण्डकमें क्षेत्र रुचकद्वीप काल वर्षपृथक्त्व है ॥४०६॥ बारहवें काण्डकमें क्षेत्र संख्यात द्वीप-समुद्र और काल संख्यात वर्ष है। आगे तेरहवें आदि काण्डकोंमें जो तेजस शरीर आदि द्रव्यकी अपेक्षा स्थान कहे हैं, उनमें क्षेत्र असंख्यात द्वीप समुद्र हैं और काल असंख्यात वर्ष है। दोनों ही आगे-आगे क्रमसे असंख्यातगुने असंख्यातगुने होते हैं । अन्तके उन्नीसवें काण्डकमें द्रव्य तो कार्मणावर्गणामें ध्रुवहारका भाग देनेसे जो प्रमाण आवे, उतना है। क्षेत्र सम्पूर्ण लोक है और काल एक समय कम पल्य ३० प्रमाण है ॥४०७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001817
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1997
Total Pages612
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size14 MB
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