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गो० जीवकाण्डे द्रव्यविकल्पंगळल्तु द्विरूपहीनद्रव्यविकल्पमात्रध्रुवहारसंवर्गमे वर्गणागुणकारमें बल्लि येळ मादेंटक्क प्रसंगमक्कुमंतुमल्लदेयं रूपयुतमल्लद क्षेत्रविकल्पमं। ४ । कांडकदिदं गुणिसि लब्धदोळेकरूपं कूडिदोडे । ४।२। अदु देशावधिद्रव्यविकल्पप्रमाणमल्तु । द्विरूपोनद्रव्यविकल्पमात्र ध्रुवहारसंवर्गमे वर्गणागुणकारमें बल्लि एलुमादारक प्रसंगमक्कुंमप्पुरिदमन्तुमल्तु दृष्टविरोधमुमागमविरोधमुमप्पुरिदं रूपयुतमल्लद क्षेत्रविकल्पमं कांडकदिदं गुणिसि लब्धदोळोदु रूपं कूडिदोडे देशावधिद्रव्यविकल्पमों भत्तेयप्पुविदुनिबर्बाधबोधविषयमक्कुं। अंतादोडा जघन्योत्कृष्टदेशावधिज्ञानविषयजघन्योत्कृष्टक्षेत्रविकल्पंगळावुवेदोडे पेन्दपं ।
अंगुलअसंखभागं अवरं उक्कस्सयं हवे लोगो ।
इदि वग्गणगुणगारो असंख धुवहारसंवग्गो ॥३९१।। अंगुलासंख्यातभागोऽवरः उत्कृष्टो भवेल्लोकः। इतिवर्गणागुणकारोऽसंख्यध्रुवहारसंवर्गः। अंगुलासंख्यातभागः मुंपेळ्द घनांगुलासंख्यातेकभागमप्प लब्ध्यपर्याप्तकजघन्यावगाहप्रमाणमे अवरः जघन्यक्षेत्रविकल्पप्रमाणमक्कुमुत्कृष्टो भवेल्लोकः । उत्कृष्टक्षेत्रविकल्पं संपूर्णलोकप्रमाणमक्कु- मितु वर्गणागुणकारमसंख्य ध्र वहारसंवर्गप्रमितमक्कुं। द्विरूपोनदेशावधिज्ञानविषयसर्व
द्रव्यविकल्प प्रमित ध्र वहारसंवार्गजनितलब्धप्रमितं वर्गणागुणकारप्रमाणमें बुदत्यं । १५ वर्धते अनेन क्रमेण लोकमात्रक्षेत्रोत्पत्तिपर्यन्तं गमनिकासद्भावात् अवशिष्टप्रथमद्रव्यविकल्पस्य पश्चाग्निक्षेपात् ॥३९०॥ ते जघन्योत्कृष्टक्षेत्र संख्याति
अवरं जघन्यदेशावधिविषयक्षेत्र सुक्ष्म निगोदलब्ध्यपर्याप्तकजधन्यावगाहप्रमाणमिदं६। ८ । २२
व १प१९।८।९।८। २२ । । ९ aaa अपतितं घनागलासंख्यातभागमानं भवति ६ उत्कृष्टं लोकः जगच्छेणिघनो भवति इत्येवं द्विरूपोनदेशावधि
२० सर्वद्रव्यविकल्पमात्रासंख्यध्र वहारसंवर्ग एव कार्मणवर्गणागुणकारः स्यात् ॥३९१॥ अथ क्रमप्राप्तं वर्गणा
प्रमाणमाह
भाग द्रव्य के विकल्प होने तक क्षेत्र एक प्रदेश अधिक उतना ही रहता है। उसके पश्चात् क्षेत्रमें पुनः एक प्रदेश बढ़ता है। इस तरह प्रत्येक सूच्यंगुलके असंख्यातवें भाग द्रव्यके
विकल्प होनेपर क्षेत्रमें एक-एक प्रदेशकी वृद्धि उत्कृष्ट क्षेत्र लोक पर्यन्त प्राप्त होने तक होती २५ है । इसीसे क्षेत्रकी अपेक्षा विकल्पोंको सूच्यंगुलके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर द्रव्यकी
अपेक्षा विकल्प कहे हैं। इनमें पहला द्रव्यका भेद पीछेसे मिलाया,वह अवशेष था,अतः एकको मिलाना कहा ॥३९०॥
अब देशावधिके उन जघन्य और उत्कृष्ट क्षेत्रोंको कहते हैं
जघन्य देशावधिका विषयभूत क्षेत्र सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना ३० प्रमाण धनांगुलका असंख्यातवें भाग मात्र होता है। उत्कृष्ट क्षेत्र जगत् श्रेणिका घनरूप
लोक-प्रमाण है। इस प्रकार देशावधिके समस्त द्रव्यकी अपेक्षा विकल्पोंमें दो कम करके
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