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गो. जीवकाण्डे प्रमितमेककाययोगिसंख्ययं भागिसि स्वस्वकालमात्रगुणकारदि गुणिसुत्तिरलु लब्धं स्वस्वयोगिसंख्ययक्कुमल्लि कार्मणकाययोगिजीवरा शिप्रमाणं सर्वतः स्तोकमिदु १३ =। ३ इदं
२११५ नोडलौदारिकमिश्रकाययोगिजीवराशि असंख्यातगुणितमक्कु १३ = २१ मिदं नोडलो
दारिककाययोगिजोवराशिसंख्यातगुणमक्कु १३ = २ ३।४ मो राशिगळुमिनितु काल.
३१५ दोलिनितु जीवराशिगळु संचिसल्पडुवुवागळिनितु कालदोळे नितु जीवंगळु मिनितु कालदोलेनितु जीवराशिगळु संचिसल्पडुवुवागळिनितु कालदोळे नितु जीवंगळु संचिसल्पडुवुर्वेदितु त्रैराशिकसिद्धलब्धराशिFळदरिवुदु।
कालानां न्यासः-स ३ । २१।२१। ४ । एषां युतिः २१।५ । अनया द्वियोगित्रियोगिसंख्याविहीन
संसारिराशिप्रमितैककाययोगिसंख्यां भक्त्वा स्वस्वकालमात्रगुणकारेण गुणिते सति लब्धं स्वस्वयोगिसंख्या १. भवति । अत्र कार्मणकाययोगिनः सर्वतः स्तोका १३ = ३ एभ्यः औदारिकमिश्रकाययोगिनः असंख्यात
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गुणाः- १३ = २१। एभ्य औदारिककाययोगिनः संख्यातगुणाः- १३ = । २१ । ४ । एते त्रयोऽपि २१ । ५
२१ । ५ राशयः । एतावति काले यद्यतावन्तो जीवा संचीयन्ते तदा एतावति काले कियंतो जीवाः संचीयन्ते ? इति राशिकसिद्धा ज्ञातव्याः ।
औदारिक काययोगका काल उससे संख्यातगुणा है, क्योंकि उन दोनों कालोसे हीन सब काल १५ ही औदारिक काययोगका काल है। इन तीनों कालोंको जोड़नेसे जो प्रमाण हुआ, उससे दो
योगी और तीन योगियोंकी संख्यासे हीन संसारी जीवराशि प्रमाण एक काययोगियोंकी संख्याको भाग देनेपर जो लब्ध आवे,उसे अपने-अपने काल प्रमाण गुणाकारसे गुणा करनेपर अपने-अपने योगवालोंकी संख्या होती है ! यहाँ कामणकाययोगी सबसे थोड़े हैं। इनसे
औदारिक मिश्रकाययोगी असंख्यातगुणे हैं । इनसे औदारिक काययोगी संख्यातगुणे हैं। यहाँ २० भी जो तीनों काययोगोंके कालमें इतने सब एक योगी जीव पाये जाते हैं, तो विवक्षित
कामणकाययोग आदिके कालमें कितने जीव पाये जायेंगे,इस प्रकार त्रैराशिक होता है। सो तीनों काययोगोंका काल तो प्रमाणराशि है, एक योगी जीवोंका परिमाण फलराशि है और विवक्षित कामणकाय आदिका काल इच्छाराशि है। फलराशिको इच्छाराशिसे गुणा करके
प्रमाणराशिका भाग देनेपर जो-जो प्रमाण आवे, उतना-उतना विवक्षित योगके धारक २५ जीव जानना।
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