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________________ प्रस्तावना ४६ अंश को अन्य के छह और तीन हारों से गुणा करने पर साठ, अड़तालीस और चौवन अंश हुए। और हारों को परस्पर में गुणा करने पर सर्वत्र बहत्तर हार इस प्रकार हुए + + I ६० ५४ ४८ ७२ ७२ ७२ यहाँ अंशों को जोड़ने पर एक सौ बासठ अंश और बहत्तर हार हुए। अंशों को हार का भाग देने पर दो पाये तथा अठारह का बहत्तरवाँ भाग शेष रहा। उसे अठारह से अपवर्तन करने पर एक का चौथा भाग हुआ। इस प्रकार उनका जोड़ सवा दो २ आया । सम्भव प्रमाण का भाग देकर भाज्य या भाजक राशि के महापरिमाण को थोड़ा करने या निःशेष करने को अपवर्तन कहते हैं; जैसे यहाँ अट्ठारह का भाग देने से भाज्य अट्ठारह के स्थान में एक रहा और भागहार बहत्तर के स्थान में चार रहा। इस प्रकार अपवर्तन का स्वरूप जानना । अब व्यवकलन लीजिए। जैसे तीन में से पाँच का चौथा अंश घटाना है । सो जिसका हार नहीं होता, वहाँ एक हार कल्पित करना चाहिए । सो यहाँ तीन का हार नहीं, अतः एक हार कल्पना करके लिखें; जैसे । यहाँ तीन अंशों को अन्य के चार हार से और पाँच अंशों को अन्य के एक हार से गुणा करो और हारों का परस्पर में गुणा करो तब ऐसा हुआ । यहाँ बारह अंशों में ५ । यहाँ बारह अंशों में से पाँच घटाने पर सात अंश रहे और हार चार रहा। सो अंश को हार का भाग देने पर १३ फल आया। १ ४ १२ ४ ३ ४ तथा भिन्न में गुणा करना हो, तो गुण्य और गुणकार के अंश को अंश से और हार को हार से गुणा करो। जैसे दस की चौथाई को चार की तिहाई से गुणा करना हो, तो लिखकर परस्पर में गुण्य और गुणकार के अंशों को और हारों को गुणा करने पर हुए। यहाँ अंश को हार का भाग देने पर तीन पाये और चार का बारहवाँ भाग शेष रहा। उसे चार से अपवर्तन करने पर एक का तीसरा भाग रहा। ४ १२ ऐसे ही अन्यत्र जानना । १२ भिन्न के भागहार में भाजक के अंशों को तो हार करें और हार को अंश करें। इस प्रकार पलटकर भाज्य भाजक का गुण्य-गुणकार की तरह विधान जानना जैसे सैंतीस के आधे को तेरह की थीथाई का भाग देना हो तो लिखें भाजक के अंश और हार को पलटकर लिखें। ३७ १३ ÷ ४ 1 ३७ २ १३ गुणा करने पर एक सौ अड़तालीस अंश और छब्बीस हार हुआ। हार का अंश को भाग देने पर पाँच पाये और अट्ठारह का छब्बीसवाँ भाग शेष रहा। उसे दो से अपवर्तन करने पर नौ का तेरहवाँ भाग रहा। १४८ २६ १३ में भिन्न में वर्ग और घन का विधान गुणकार की तरह ही जानना। क्योंकि समान राशि दो को परस्पर गुणा करने पर वर्ग होता है और तीन को परस्पर में गुणा करने पर घन होता है । जैसे तेरह के चौथे भाग कोदो जगह रखकर x परस्पर में गुणा करने पर उनका वर्ग एक सौ उनहत्तर का सोलहवाँ भाग ४ ४ होता है और तीन जगह रखकर १३ x १३ १३ परस्पर में गुणा करने पर इक्कीस सौ सत्तानवे का चौसठवाँ भाग घन होता है। ४ २१६७ ६४ तथा भिन्न वर्गमूल और घनमूल में अंश और हारों करें जैसे वर्गित राशि एक सौ उनहत्तर का सोलहवाँ भाग | Jain Education International १३ का पूर्वोक्त विधान द्वारा अलग-अलग मूल ग्रहण पूर्वोक्त विधान से एक सी उनहत्तर का वर्गमूल १६६ १६ तेरह और सोलह का चार इस तरह तेरह का चौथा भाग * का चौसठवाँ भाग यहाँ भी पूर्वोक्त विधान अनुसार २१६७ ६४ का चार इस तरह तेरह का चौथा भाग घनमूल आया। इसी प्रकार अन्यत्र जानना । इस प्रकार लौकिक गणित की अपेक्षा परिकर्माष्टक का विधान जानना। अलौकिक गणित का विधान सातिशयज्ञानगम्य है, क्योंकि उसमें अंकादि का अनुक्रम व्यक्त रूप नहीं है । यथा १६६ १६ वर्गमूल आया । तथा घन राशि इक्कीस सौ सत्तानवे इक्कीस सी सत्तानवे का घनमूल तेरह और चौंसठ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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