SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 476
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१८ गो० जीवकाण्डे इंतनादियिदं प्रतिसमयमोंदु समयप्रबद्ध बद्धमुमोंदुमोदु समयप्रबद्धोदयमुमं द्वयर्धगुणहानिमात्रसमयप्रबद्धसत्वमुमं तोरलार्पत्रिकोणरचनासंकलनधन मं तंदु द्वयर्धगुणहानिमात्रसमयप्रबद्धसत्वमं तोरिदपं । त्रिकोणरचनावस्थितद्रव्यक्के होनहीनसंकलनदिदमुमधिकाधिकसंकलनधनदिंदमुमनुलोमविलोमसंकलनदिदमुं किंचिदूनद्वयर्धगुणहानिसमयप्रबद्धसत्वमं सुव्यक्तमाउिदपनल्लि होनहोनसंकलनदिदमे ते दोडे प्रथमसमयप्रथमनिषेकदोळु संपूर्णसमयप्रबद्धमानं । ६३०० । द्वितीयसमयद्वितीयनिष्कदोळु प्रथमनिषेकोनसमयप्रबद्धमात्र । तृतीयसमयतृतीयनिषेकदोळु प्रथमद्वितीयनिषेकोनसमय प्रबद्धभात्रं । चतुर्थसमयचतुर्थनिषेकदोळु प्रथमद्वितीयतृतीयनिषेकोनसमयप्रबद्धमात्रं। पंचमसमयपंचमनिषेकदोळु प्रथमद्वितीयतृतीयचतुर्थनिषेकोनसमयप्रबद्धमामितु षष्ठादिसमयषष्ठादिनिषेकंगळोळु प्रथमनिषेकप्रभृतिरूपोनगच्छमात्रनिषेकंगळिदं परिहीनसमयप्रयद्धमात्रंगळल्लल्लिगप्पुर्वेदितु तदभावद्रव्यमनिक्के नोडुत्तिरलु प्रथमगुणहानियोळु गुणहानिमात्रंगळु समयप्रबधंगळप्पुवु। ६३००। ८। तत्राभावद्रव्यमं निरीक्षिसुवागळु रूपोनगुणहानिमात्रंगळु प्रथमनिषेकंगळप्पुवु । ५१२।८। द्विरूपोनगुणहानिमात्रंगळु द्वितीयनिषेकंगळप्पुवु । ४८० । ८२। १५ तावत्तत्रिकोणरचनावस्थितं सत्त्वद्रव्यं हीनहीनसंकलनेन अधिकाधिकसंकलनेन अनुलोमविलोमसंकलनेन च सुव्यायति । तत्र हीनहीनसंकलनेन यथा-प्रथमसमयप्रथमनिषेके सम्पूर्णसमयप्रबद्धः ६३००, द्वितीयसमयद्वितीयनिषेके प्रथमनिषेकोनसमयप्रबद्धः, तृतीयसमयतृतीयनिषेके प्रथमद्वितीयनिष्कोनसमयप्रबद्धः, चतुर्थसमयचतुर्थनिषेके प्रथमद्वितीयततीयसमयनिषेकोनसमयप्रबद्धः, पञ्चमसमयपञ्चमनिषेके प्रथम द्वितीयततीयचतुर्थनिषेकोनसमयप्रबद्धः । एवं षष्ठादिसमयषष्ठादिनिषेकेषु प्रथमनिषेकादिरूपोनगच्छमात्रनिषेकोनसमयप्रबद्धाः । अतस्तदभावद्रव्ये निक्षिप्ते प्रथमगुणहानौ गुणहानिमात्रसमयप्रबद्धा भवन्ति ६३००४८। तदभावद्रव्यं तु प्रथमनिपेकाः रूपोनगुणहानिमात्राः ५१२४८ । द्वितीयनिषेकाः द्विरूपोनगुणहानिमात्राः ४८० । ८-२। इस तरह त्रिकोण रचनामें स्थित सत्त्व द्रव्यको जोड़नेकी तीन विधियाँ हैं-उत्तरोत्तर हीन संकलनके द्वारा, अधिक-अधिक संकलनके द्वारा और अनुलोम-विलोम संकलन द्वारा। हीन-हीन संकलनके द्वारा यथा-प्रथम समयप्रबद्ध के निषेकमें सम्पूर्ण समयप्रबद्ध ६३०० है। द्वितीय समयके द्वितीय निषेकमें प्रथम निषेक ५१२ से हीन समयप्रबद्ध ५७८८ है। तीसरे समयके तीसरे निषेकमें प्रथम और द्वितीय निषेकसे हीन समयप्रबद्ध ५३०८ है। चतुर्थ २५ समयके चतुर्थ निषेकमें प्रथम, द्वितीय और तृतीय समय सम्बन्धी निषेकसे होन समय प्रबद्ध ४८६० है। पंचम समयके पंचम निषेकमें प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतर्थ निषेव हीन समयप्रबद्ध ४४४४ है । इसी तरह छठे आदि समय सम्बन्धी छठे आदि निषेकोंमें प्रथम निषेकसे लेकर एक कम गच्छ प्रमाण निषेकोंसे हीन समय प्रबद्ध होते हैं। अतः प्रथम गुणहानिमें गुणहानि मात्र समयप्रबद्ध ६३०० ४८ होते हैं। अब इसमें से जो अभावरूप द्रव्य ३० है,वह एक हीन गुणहानि प्रमाण तो प्रथम निषेक ५१२४८-१ है । दूसरा निषेक दो कम गुण हानि प्रमाण है ४८०४८-२ । तीसरा निषेक तीन हीन गुणहानि प्रमाण है ४४८४८-३। इस प्रकार क्रमसे हीन होते-होते अन्तमें अन्तिम निषेक ३२० एक रहता है। १. यिल्लियु मुन्निनंत प्रथमादिपंक्तिगळोळ द्वितीयादिनिषेकंगळोळेकायेकोत्तरक्रमदि स्वविशेषगळं प्रक्षेपिसि को डर बुदत्थं । ऋणद्रव्यनिक्षेपः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy