________________
४०२
गो० जीवकाण्डे इंतु प्रथमादिगुणहानिद्रव्यंगळं तद्विशेषगळं निषेकंगळुमर्धा क्रममेंदु निश्चैसुवुदोंदु विशेषमुंटदावुदेंदोड तंतम्म गुणहानिय चरमनिषेकदोळु तंतम्म चयमनोंदंदं कळयलु मेलण मेलण गुणहानिगळ प्रथम प्रथमनिषकंगळप्पुवु।
इंतौदारिकादितैजसपथ्यंतमाद नोकर्मसमयप्रब द्वंगळगे तंतम्म द्रव्यस्थिति, गुणहानि, ५ नानागुणहानि निषेकहारान्योन्याभ्यस्तराशिप्रमाणनरिदु निषेकरचनेयं माळ्पदुमिल्लियो विशेष
मुंटदावुर्देदोडे नाल्क शरीरसमयप्रबद्धंगळ्गे निषेकरचनयं माळ्पागळाबाधाजिततंतम्मस्थितिप्रथमसमयमोदल्गोंडु निषेकरचनेय बुदिल्ल । औदारिकादिशरीरंगळ्गे मुंद विशेषं पेळल्पडुगुमप्पुरिदं।
___ इन्नौदारिकादिशरीरंगळर्थसंदृष्टिसंक्षेपदिदं तोरल्पडुगुमते दोडे-मुंनं कार्मणशरीर१० स्थितिनिषेकरचनगंकसंदृष्टियोल पेन्दत 'रूऊणण्णोण्णब्भत्थवहिदेत्यादि' विधानदिदं स्वस्थितिय
रूपोनान्योन्याभ्यस्तरार्शाियदं द्रव्यमं भागिसुत्तिरलु चरमगुणहानिद्रव्यमक्कं स ख ख ई द्रव्यमं लघुसंदृष्टिनिमित्तमागि स एंदु बरेवुदु । स । रूपोनान्योन्याभ्यस्तराशियिदं भागिसि २ दु स
अ
१५
एवं प्रथमादिगणहानिद्रव्याणि तद्विशेषाः निषेकाच अर्धार्धक्रमा इति निश्चेतव्याः । अयं तु विशेषः । स्वस्वगणहानिचरमनिषेके स्वस्वैकैकचयेऽपनीते उपरितनोपरितनगुणहानिप्रथमप्रथमनिषेको भवति । एवमौदारिकादितजसान्तानां नोकर्मसमयप्रबद्धानां तु प्रागुक्तं स्वस्वस्थितिगुणहानिनानागुणहानिनिषेकहारान्योन्याभ्यस्तराशिप्रमाणं स्मत्वा स्वस्वस्थितिप्रथमसमयादेव आरम्य निषेकरचना कर्तव्या, औदारिकादिशरीराणां अग्रे तथैव वक्ष्यमाणत्वात् । अधुना अर्थसंदृष्ट्या दयते तद्यथा-कार्मणसमयप्रबधं द्रव्यमिदं
स खख लघसंदष्टिनिमित्तं स इति लिखित्वा ( स ) रूपोनान्योन्याभ्यस्तराशिना भक्ते तच्चरमगणहानिद्रव्यं भवति ।
इस प्रकार प्रथम आदि गुणहानिका द्रव्य, उनका चप और निषेक क्रमसे आधे-आधे २० होते हैं। इतना विशेष है कि अपनी-अपनी गुणहानिके अन्तिम निषेकमें अपना-अपना एक
चय घटानेपर ऊपर-ऊपरकी गुणहानिका प्रथम निषेक होता है । इस प्रकार औदारिकसे तैजस पर्यन्त नोकर्म समयबद्धोंकी तो अपनी-अपनी स्थिति सम्बन्धी गुणहानि, नानागुणहानि, निषेकहार और अन्योन्याभ्यस्तराशिके प्रमाणका स्मरण करके अपनी-अपनी स्थितिके प्रथम
समयसे ही निषेक रचना करनी चाहिए। आये सौदारिक आदि शरीरोंके सम्बन्धमें ऐसा २५ ही कहेंगे । अब अर्थसंदृष्टिसे दिखाते हैं
___ कार्मणके समयप्रबद्धका द्रव्य पूर्वोक्त प्रमाण जानना। उसमें एक कम अन्योन्याभ्यस्त राशिसे भाग देनेपर अन्तिम गुणहानिका द्रव्य होता है। उससे प्रथम गुणहानि पर्यन्त दूनेदूने क्रमसे जाकर प्रथम गुणहानिका द्रव्य अन्तिम गुणहानिके द्रव्यको अन्योन्याभ्यस्त राशिके आधेसे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो, उतना होता है। इसको गुणहानिका भाग देनेपर मध्यमधन होता है। उसमें एक कम गुणहानिके आधेसे हीन दो गुणहानिसे भाग देनेपर प्रथम गुणहानि सम्बन्धी चयका प्रमाण ता है। इसको दो गुणहानिसे गुणा करनेपर प्रथम गणहानिका प्रथम निषेक होता है। उससे अपने अन्तिम निषेक पर्यन्त एक-एक चय हीन क्रमसे जाते हुए अन्तिम निषेकमें एक कम गणहानि आयाम मात्र चयके घटनेपर एक अधिक १. बक्रमात् निश्चेतव्यम् ।
३०
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org