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________________ ३९६ गो० जीवकाण्डे इन्नौदारिकादिशरीरस्थितिगळगे निषेकहारमेत दोर्ड दोगुणहाणिय बुदा निषेकहारंगर्छ तंतम्मेकगुणहान्यायामंगळनेररिदं गुणियिसुत्तिरलु तंतम्मौदारिकादिशरीरस्थितिगे निषेकहारंगलप्पुवु औ २ ३ । । वै २ १ । २। आ २ १२। तै प १।२। का प १३ इन्नौदारि छे छे व छ कादिशरीरंगळ द्रव्यस्थितिगुणहानिनानागुणहानिनिषेकहारान्योन्याभ्यस्तराशिप्रमाणंगळ्गंक संदृष्टिगळु द्र ६३००। स्थि ४८ । गु८। ना ६। नि १६ । अ६४। इन्नौदारिकादि शरीरसमयप्रबद्धंगळु प्रकृतिप्रदेशस्थित्यनुभागमें दु चतुर्विधबंधमनुळुवप्पुवल्लि मोदल प्रकृतिप्रदेशबंधमेरडु योगदिदप्पुवु । स्थित्यनुभागबंधंगळेरडं कषायोददिदमप्पुवल्लि विवक्षितसमयदोळ कट्टल्पट्ट कार्मणय समयप्रबद्धक्कुत्कृष्टस्थितिबंध सप्ततिकोटीकोटिसागरोपमप्रमितमक्कुमा स्थितियोळ बंधप्रथमसमयं मोदलुगोंडु सप्तसहस्रवर्षसमयमात्रकालमनावाधेयं कळेदुरिद स्थितिय प्रथमसमयं मोदल्गोंडु चरमसमयपव्यंतं तत्तत्कालप्रमितस्थितिकंगळप्प परमाणुपुंजंगळं निषेकंगळे बुदा निषेकरचनेयं माळप विधानमनंकसंदृष्टियिदमन्नेवरं तोरिदपेमदेतेंदोडे विवक्षितैकसमयदोळ कट्टिद कार्मणसमयप्रबद्धद्रव्यं । स १ । इदक्कंकसंदृष्टि ६३०० । पल्यवर्गशलाकाराशेरित्वकथनात । अथौदारिकादिशरीरस्थितीनां यो यो गणहान्यायामः स स द्वाभ्यां गुणितो निषेकहारापरनामा दोगणहानिर्भवति । औ २ । २। वै २१ । २ । आ २१।२ । तैप १।२ । छे व छे । १५ का प १।२ । तदौदारिकशरीरसमय प्रबद्धानां अङ्कसंदृष्ट्या द्रव्यं ६३०० स्थितिः ४८ गुणहानिः ८ नाना छ व छे २. गुणहानिः ६ निषेकहारः १६ अन्योन्याभ्यस्तराशिः ६४ । औदारिकादिशरीरसमयप्रबद्धाः प्रकृतिस्थित्यनुभागप्रदेशबन्धवन्तः । तत्र प्रकृतिप्रदेशबन्धौ योगतः स्याताम, स्थित्यनुभागबन्धी कषायतः स्याताम् । तत्र विवक्षितसमये बद्धस्य उत्कृष्टस्थितिबन्धस्य सप्ततिकोटीकोटिसागरोपममात्रस्य प्रथमसमयादारभ्य सप्तसहस्रवर्षकालपर्यन्तमाबाधेति त्यक्त्वा शेषस्थितिप्रथमसमयमादिं कृत्वा चरमसमयपर्यन्तं तत्तत्कालप्रमितस्थितिकाः परमाणुपुजाः निषेका भवन्ति । तद्रचनाकरणविधानं तावदङ्गसंदष्ट्या प्रदर्श्यते । तद्यथा-विवक्षितकसमये बद्धकार्मणसमयप्रबद्धद्रव्यमिदम् । स । अङ्कसंदृष्ट्या इदं ६३०० । औदारिक आदि शरीरोंकी स्थितियोंका जो-जो गुणहानि आयाम है, उसे दोसे गुणा करनेपर अपनी-अपनी दो गुणहानि होती है। उसीका दूसरा नाम निषेकहार है । अंक संदृष्टि से औदारिक शरीरके समय प्रबद्धका द्रव्य ६३००। स्थिति ४८ । गुणहानि ८ । नानागुण२५ हानि ६। दो गुणहानि १६ । अन्योन्याभ्यस्त राशि ६४। औदारिक शरीरके समयप्रबद्ध, प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभागबन्ध और प्रदेशबन्धको लिये होते हैं। उनमें से प्रकृति और प्रदेशबन्ध योगसे तथा स्थिति और अनुभागबन्ध कषायसे होते हैं । विवक्षित समयमें बँधे कार्मणके समयप्रबद्धका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सत्तर कोडाकोड़ी सागर प्रमाण होता है। उसमें प्रथम समयसे लेकर सात हजार वर्ष काल पर्यन्त आबाधाकाल है। उसे छोड़कर शेष स्थितिके ३० प्रथम समयसे लेकर अन्तिम समय पर्यन्त परमाणुपुंजरूप निषेक होते हैं। प्रत्येक निषेककी स्थिति अपने-अपने काल प्रमाण होती है। उनकी रचनाका विधान अंक संदृष्टिसे दिखाते हैं-विवक्षित एक समयमें बँधे कामणके समय प्रबद्धका द्रव्य अंकसंदृष्टिसे ६३०० है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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