SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 444
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३८६ गो० जीवकाण्डे उत्कृष्टयोगादिस्वसामग्रिसहितंगळप्प जीवंगळ्गौदारिकादिपंचशरीरंगळ स्वस्वोत्कृष्टस्थिति चरमसमयदोळ स्वस्वोत्कृष्टकर्मनोकर्मपरमाणु संचयमक्कुं। तत्तत् स्थितिप्रथमसमयादारभ्य प्रतिसमयमेकैकसमयप्रबद्धदोळु गळितैकनिषेकावशेषमात्रंगळनितु संचीयमानमागुत्तिरलु तत् स्थितिचरमसमयदोळायुजितकर्मनोकर्मशरीरंगळग गलितावशेषोत्कृष्टसंचयं किंचिदून द्वयद्धगुण५ हानिगुणितसमयप्रबद्धमानं सत्वमक्कुं। स a १२। अअंतरं श्रीमाधवचंद्रविद्यदेवरुगळुत्कृष्टसंचयसामग्रिविशेषमं पेल्दपरु । आवासया हु भव अद्धाउस्सं जोगसंकिलेसो य । ओकटुक्कट्टणयं छच्चेदे गुणिदकम्मंसे । २५१।। आवश्यकानि खलु भवाद्धा आयुष्यं योगः संक्लेशश्चापकर्षणमुत्कर्षणकं षट् चैतानि गुणित१० काशेि॥ ___भवाद्धा भवाद्धेयुमायुष्यमं योगमु संक्लेशमुमपकर्षणमुमुत्कर्षणमुमेंदितु षद्चैतान्यावश्यकानि ईयारुमावश्यकंगळवश्यं भवान्यावश्यकानि एंबी निरुक्तिसिद्धंगळु मुत्कृष्टसंचयकारणंगळुमिवु गुणितकाशनप्पुत्कृष्टकर्मसंचयमनुळ्ळ जीवनोळप्पुविवू मुंद विस्तारदिदं पेलल्पट्टप्पुवु। खलु स्फुटमागि। अनंतरमौदारिकादिपंचशरीरंगळुत्कृष्टस्थिति प्रमाणमं पेळ्दपं । उत्कृष्टयोगादिस्वस्वसामग्रीसहितानां जीवानाम् औदारिकादिपञ्चशरीराणां स्वस्वोत्कृष्टस्थितिचरमसमये स्वस्वोत्कृष्टकर्मनोकर्मपरमाणसंचयो भवति । तत्तत्स्थितिप्रथमसमयादारभ्य प्रतिसमयम् एकैकसमयप्रबद्ध गलितकैकनिषेकावशेषमात्रेषु तावत्सु संचीयमानेषु सत्सु तत्स्थितिचरमसमये आयुर्वजितकर्मनोकर्मशरीराणां गलिताव शेषोत्कृष्टसंचयः किञ्चिदूनद्वयर्धगुणहानिगुणितसमयप्रबद्धमात्रः सत्त्वं भवति स ० १२-१॥२५०॥ अथ श्रीमाधव२० चन्द्रत्रविद्यदेवाः उत्कृष्टसंचयसामग्रीविशेष कथयन्ति भवाद्धा आयुष्यं योगः संक्लेशः अपकर्षणमत्कर्षणं चेति षट् उत्कृष्टकर्मसंचयकर्तुजीवस्य आवश्यकानि इत्युच्यन्ते । गुणितकर्माशे उत्कृष्टकर्मसंचययुते जीवे तेषामवश्यम्भावात् अग्रे तानि विस्तरेण वक्ष्यन्ति खलु स्फुटम् ॥२५१॥ अथौदारिकादिपञ्चशरीराणामुत्कृष्टस्थितिप्रमाणमाह २५ आगे कर्म-नोकमके उत्कृष्ट संचयका स्वरूप, स्थान और लक्षण कहते हैं - ___उत्कृष्ट योग आदि अपनी-अपनी उत्कृष्ट बन्धकी सामग्रीसे सहित जीवोंके औदारिक आदि पाँच शरीरोंका अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थितिके अन्तिम समयमें अपने-अपने कर्म-नोकर्म परमाणुओंका उत्कृष्ट संचय होता है। अपनी-अपनी स्थिति के प्रथम समयसे लेकर प्रतिसमय एक-एक समयप्रबद्ध बँधता है और उसमें से एक-एक निषेक प्रतिसमय निरित होकर शेष संचित होता जाता है। तब अपनी-अपनी स्थितिके अन्तिम समयमें आयुकर्मको छोड़ शेष ३० कर्म और नोकर्मरूप शरीरोंका निर्जरासे शेष रहा उत्कृष्ट संचय कुछ कम डेढ़ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध मात्र सत्तामें होता है ।।२५०॥ आगे श्री माधवचन्द्र विद्यदेव उत्कृष्ट संचयकी सामग्री कहते हैं भवाद्धा, आयुष्य, योग, संक्लेश, अपकर्षण और उत्कर्षण ये छह उत्कृष्ट कर्मसंचय करनेवाले जीवके आवश्यक कहे जाते हैं। गुणितकांश अर्थात् उत्कृष्ट कर्म संचयसे युक्त ३५ जीवमें ये अवश्य होते हैं । आगे इन्हें विस्तारसे कहेंगे ॥२५१॥ आगे औदारिक आदि पाँच शरीरोंकी उत्कृष्ट स्थितिका प्रमाण कहते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy