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________________ ३८० गो० जीवकाण्डे अनंतैः द्विकवारानंतमध्यपतितसिद्धानंतैकभागमात्रमुमभव्यराशियं नोडलनंतगुणप्रमाणंगाप्प परमाणुर्गाळदमोंदु वर्गणय बुदक्कुं। खलु स्फुटं संख्यातपरमाणुगदिमु मेषसंख्यालपरमाणुळिदं वर्गणय बुदल्तु । मत्तदेते दोडे अनंतपरमाणुर्गाळदमे वर्गणेयें बुदु निश्चयिसल्पडुमुजुर । पुद्गलद्रव्यक्के संख्यातासंख्यातपरमाणुस्कंधरूपवर्गणासद्भावमादोडमिल्लियौदारिकाशिरीरप्रकरणदोळौदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणवर्गणेगळ्गये ग्रहणमक्कुं । सिद्धानंतभाहमुलभव्यानंतगुणप्रमितंगळुमप्पा वर्गणगळनंतानंतंळिदं नियमदिदमोंदु समयप्रबद्धमक्कुं। समये समये समयेन वा प्रबध्यते स्म-कर्मनोकर्मरूपतया आत्मना संबध्यते स्म यः पुद्गलस्कंधः सः समयप्रबद्धः एंदितु निरुक्तिसिद्धमक्कुं। __ आत्मन मिथ्यादर्शनादिसंक्लेशपरिणामंर्गाळदं प्रतिसमयं कर्मनोकर्मरूपतयिदं परिणमि१० सुतिर्प तत्तद्योग्यपुइगलस्कंधं समयप्रबद्ध में दितु स्याद्वादसिद्धांतप्रसिद्धमप्पुरिनरियल्पडुगुं । नियम शब्ददिद वर्गणासमयप्रबद्धशब्दात्थंगळेरडु मी प्रकारदिदं पेळल्पट्ट स्वरूपमनुकवु द्वादिगळ्गये गोचरंगळिद सर्वथैकांतवादिगळ्गे गोचरंगळल्लवुम बी विभागं व्यवस्थापिसल्पदुदु । अनन्तैः द्विकवारानन्तमध्यपतितसिद्धानन्तकभागमात्राभव्यराश्यनन्तगुणप्रमाणैरेव परमाणुभिरेका वर्गणा भवति खलु स्फुटं, न संख्यातैर्वा असंख्यातैर्वा परमाणुभिरित्यर्थः । यद्यपि पुद्गलद्रव्यस्याणुसंख्यातासंख्यात१५ परमाणस्कन्धरूपवर्गणाः सन्ति तथाप्यत्रौदारिकादिशरीरप्रकरणे औदारिकवैक्रियिकाहारकर नामेव ग्रहणात् । ताभिश्च सिद्धानन्तकभागाभव्यराश्यनन्तगुणप्रमितानन्तवर्गणाभिनियमेनैकः समयप्रबद्धो भवति । समय समयेन वा प्रबध्यते स्म कर्मनोकर्मरूपतया आत्मना सम्बध्यते स्म यः पद्गलस्कन्धः स समयप्रबद्ध इति निर्वचनात् । आत्मनो मिथ्यादर्शनादिसंक्लेशपरिणामैः प्रतिसमयं कर्मनोकर्मरूपतया परिणममानः तद्योग्य पुद्गलस्कन्धः समयप्रबद्ध इति स्याद्वादसिद्धान्तप्रसिद्धो बोद्धव्यः । नियमशब्देन वर्गणासमयप्रबद्ध शब्दार्थों २० द्वावप्येवमक्तस्वरूपी स्याद्वादिनामेव गोचरो, न सर्वथैकान्तवादिनामित्ययं विभागो व्यवस्थापितः ( व्यवस्थाप्यते ) ॥२४५।। अनन्त अर्थात् अनन्तानन्तके मध्यमें पतित सिद्धराशिके अनन्तवें भाग और अभव्य राशिसे अनन्तगणे परमाणओंकी एक वर्गणा होती है, संख्यात या असंख्यात परमाणुओंकी गणा नहीं होती। यद्यपि पदगल द्रव्यकी अणवर्गणा, संख्यात परमाणरूप असंख्यात२५ परमाणुस्कन्धरूप वर्गणा भी होती है। तथापि इस औदारिक शरीरके प्रकरणमें औदारिक, वैक्रियिक, आहारक, तैजस और कार्मण वर्गणाका ही ग्रहण किया है। और सिद्धराशिके अनन्तवें भाग तथा अभव्यराशिसे अनन्तगुणी वर्गणाओंका नियमसे एक समयप्रबद्ध होता है । समयमें या समयसे जो पुद्गल स्कन्ध कर्म-नोकर्म रूपसे आत्मासे सम्बद्ध होता है , वह समय प्रबद्ध है;ऐसी व्युत्पत्ति है । आत्माके मिथ्यादर्शन आदि संक्लेश परिणामोंसे प्रतिसमय कर्म-नोकर्म रूपसे परिणमन करनेवाला उसके योग्य पुद्गल स्कन्ध समयप्रबद्ध है। यह प्रसिद्ध स्याद्वाद सिद्धान्त जानना। 'नियम'शब्दसे यह व्यवस्थापित किया है कि वर्गणा और समयप्रबद्ध शब्दोंका जो स्वरूप ऊपर कहा है , वह स्याद्वादियोंके ही यहाँ है, एकान्तवादियोंके यहाँ नहीं है ॥२४५॥ १. म रंगलिंदं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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