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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
आवल्यसंख्यात भार्गादिदमुं शुद्धसंख्यातदिदमुं भागिसल्पट्ट प्रतरांगुलंगळ दमव हृतजगत्प्रतरं यथासंख्यं त्रसराशियुं तत्पर्य्याप्तराशियुमक्कुं । पूर्णोनत्र संगळु मपूर्णंगळप्पूवुमिल्लियं पर्याप्तभवंगळगे दुर्लभत्वमे पर्याप्तजीव संख्याल्पत्वक्कं कारणमक्कुं । त्र तत्पर्य्याप्त राशिप्रमाणमिदु
अपर्याप्त राशिप्रमाणमक्कु
पूर्णः ॥
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दृष्टि ।
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अनंतरं बादर तेजस्कायिकादि षट्रराशिगळगे संख्याविशेषनिर्णयात्थं गाथाद्वयमं वेदपरु । आवलि असंखभागेण वहिदपल्लूण सायरद्ध छिदी |
१. त्रैराशिक आदि पाठः म प्रती नास्ति ।
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२. विशदतया तु ४) एवं भवति ।
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बादरतेपणिभूजलबादाणं चरिमसायरं पुण्णं ॥ २१३ ॥ आवल्यसंख्यभागेनावहृतपल्योनसागरार्द्धच्छेदाः । बादरतेपनिभूजलवातानां चरमसागरः
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आवल्यसंख्यातभागभक्तप्रतराङ्गुलेन भाजितजगत्प्रतरमात्रं सामान्यत्रसराशिप्रमाणं भवति । ४ तथा
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'त्रैराशिक विधियिदिदितादरु
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संख्यातभक्तप्रतराङ्गुलेन भक्तजगत्प्रतरमात्र तत्पर्याप्त राशिप्रमाणं भवति ४ । पूर्णत्रसराशिरहितः सामान्य
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त्रसराशिरेव अपूर्णत्रसराशिप्रमाणं भवति ४०–५ अत्रापि पर्याप्तभवानां दुर्लभत्वमेवः पर्याप्तजीवसंख्याल्पत्वकारणम् ॥२१२॥ अथ बादरतेजस्कायिकादिषड्राशीनां संख्याविशेषनिर्णयार्थ गाथाद्वयमाह -
आवलीके असंख्यातवें भागसे भाजित प्रतरांगुलका भाग जगत्प्रतर में देनेसे जो लब्ध १५ आवे, उतना सामान्य त्रसराशिका प्रमाण होता है। तथा संख्यातसे भाजित प्रतांगुलका भाग जगत्प्रतर में देने से पर्याप्त सराशिका प्रमाण होता है । सामान्य त्रसराशि में से पर्याप्त त्रस - राशिको घटा देनेपर जो शेष रहे, उतना अपर्याप्त सराशिका प्रमाण होता है । यहाँ पर्याप्त भवों की दुर्लभता ही पर्याप्त जीवोंकी संख्याके अल्प होनेका कारण है || २१२ ||
आगे बाद तेजस्कायिक आदि छह राशियोंकी संख्याविशेषके निर्णय के लिए दो २० गाथाएँ कहते हैं
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