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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ३४५ गळ्गिल्लेके दोडे मुंद सुव्यक्तमागि पेळ्दपनप्पुरिदं । इल्लियावळियसंख्यातभागक्कंक संदृष्टि नवांक।९॥ बिंदावलिलोगाणमसंखं संखं च तेउवाऊणं । पज्जत्ताण पमाणं तेहि विहीणा अपज्जत्ता ।।२१०॥ वृंदावलिलोकयोरसंख्यं संख्यं च तेजोवायूनां पर्याप्तानां प्रमाणं तैविहीना अपर्याप्ताः॥ ५ वृंदावलियन लोकवन यथासंख्यमसंख्यातदिदं संख्यातदिदं भागिसि बंद लब्धमात्रं बादरतेजस्कायिकपर्याप्तंगळं बादरवायुकायिकपर्याप्तंगळुमप्पुवु। ते= बाप =८= वा= बा=प= = बादरशब्दक्कप्रयोगमप्पुदरिन्ने तरियल्पजुगुमें बोर्ड पेररो सूक्ष्मंगळ्णे पेन्द कारणदिदमिल्लि बादरंगळगे ग्रहणमक्कुं। तैविहीना अपर्याप्ताः स्युः। तत्सूत्रद्वयोक्तंगळप्प बादरजल भू । नि।प। तेजोवायुपर्याप्तजीवराशिविहीनंगळप्प तंतम्म बादरअप्कायिकादिजीवराशिगळे १० तंतम्मऽपर्याप्मजीवराशिप्रमाणंगळप्पुवु । बादरअप्कायिकापर्याप्तंगळु । १०।१०।२ ॥ बादरपृथ्वीकायिकापर्याप्तजीवंगलु = ३।१० E४ अप्रतिष्ठितप्रत्येकापर्याप्तंगळु = a = a २ A allo o O साधारणाः तेषामग्रे वक्तव्यं कथितत्वात् । अत्र आवल्यसंख्येयभागस्य संदृष्टिनवाङ्कः ९ ॥२०९॥ वन्दावलेरसंख्यातभक्तकभागमात्राः बादरतेजस्कायिकपर्याप्तजीवा भवन्ति तथा लोकस्य संख्यात भक्तकभागप्रमिता बादरवायुकायिकपर्याप्तजीवा भवन्ति ।। सूक्ष्माणां तु प्राक्कथितत्वात् अत्र बादरा एव १५ होता है । गाथामें आये 'नि' अक्षरसे निगोद शब्दसे निगोदोंके आश्रित प्रतिष्ठित प्रत्येक ही ग्रहण किये गये हैं, साधारण जीव नहीं; क्योंकि आगे उनका स्पष्ट कथन किया है ।।२०९॥ घनावलीके असंख्यातवें भागमात्र बादर तेजस्कायिक पर्याप्त जीव है । तथा लोकमें संख्यातका भाग देनेसे लब्ध एक भाग प्रमाण बादर वायुकायिक पर्याप्तजीव होते हैं। सूक्ष्म जीवोंका प्रमाण पहले कहा है इसलिए यहाँ बादर जीवोंका ही ग्रहण किया है। पहले जो दो २. गाथाओंसे बादर जलकायिक, पृथिवीकायिक, सप्रतिष्ठित, अप्रतिष्ठित, तेजस्कायिक और १. व्यक्तं मु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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