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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ३३७ विरलनराशियं विरलिसि देयराशियं रूपं प्रति कोट्ट, वग्गितसंवर्ग माडि समंतात वर्गः संवर्गः ग्गितस्य संवर्गो वग्गितसंवर्गस्तं कृत्वा शलाकाराशियोळोंदु रूपं कळेदु तत्रोत्पन्नराशियं विरलिसि देयमनदनित्तु वगितसंवर्ग माडि शलाकाराशियोळ मनों दुरूपं कळेदितु लोकप्रमितशलाकाराशि परिसमाप्तियप्पन्नवरं विरलनदेयकदिदं वग्गितसंवर्ग माडि माडि शलाकाराशियोकोदोंदु रूपं कळयुत्तं बंदु पुट्टिद चरम तत्रोत्पन्नराशियं शलाकाविरलन देयमेंदु त्रिप्रतीक माडि ५ श वि दे विरलनमं विरलिसि देयमं रूपं प्रति कोटु वरिंगतसंवगं माडि द्वितीयवारं * aa za स्थापिसिद शलाकाराशियोळोदो दु रूपं कळेदु तत्रोत्पन्नराशियं विरलिसि देयमनदने कोटु वगितसंवर्ग माडि शलाकाराशियोळ मत्तों दुरूपं कळेदितु द्वितीयवारमुं स्थापिसि शलाकाराशियं निष्ठापिसि चरमतत्रोत्पन्नमहाराशियं मुन्निनंत त्रिप्रतीक माडि श वि दे विरलनमं Ba Ba Ea विरलिसि देयमनित्तु वग्गितसंवर्ग माडि तृतीयवारं स्थापिसिद शलाकाराशियोलो दु रूप १० विरलनराशि विरलयित्वा रूपं रूपं प्रति देयराशि दत्त्वा वगितसंवर्ग कृत्वा, समन्तात वर्गः संवर्गः वगितस्य संवर्गः वगितसंवर्गः तं विधायेत्यर्थः शलाकाराशितः एक रूपमपनयेत् । पुनः तत्रोत्पन्नराशि विरलयित्वा रूपं रूपं प्रति तमेव राशि दत्त्वा वगितसंवर्ग कृत्वा तच्छलाकाराशितः अपरं रूपमपनयेत् । एवं लोकप्रमितशलाकाराशिपरिसमाप्तिपर्यन्तं कृत्वा तं च समुत्पन्नराशि शलाकाविरलनदेयरूपेण त्रिःप्रतिकं कृत्वा श वि दे विरलनराशि विरलयित्वा रूपं रूपं प्रति देयराशि दत्त्वा वगितसंवर्ग कृत्वा द्वितीयवार- १५ = a = a = a स्थापितशलाकाराशितः एक रूपमपनयेत् । तत्रोत्पन्नराशि विरलयित्वा रूपं रूपं प्रति तमेव राशि दत्त्वा वगितसंवर्ग कृत्वा शलाकाराशितः अपरं रूपमपनयेत् । एवं द्वितीयवारस्थापितशलाकाराशि निष्ठाप्य तत्रतनचरमसमत्पन्नराशि प्राग्वत त्रिप्रतिकं कृत्वा श वि दे विरलनराशिं विरलयित्वा रूपं रूपं प्रति Da = aॐe देयराशि दत्त्वा वगितसंवर्ग कृत्वा तृतीयवारस्थापितशलाकाराशितः एक 'रूपमपनयेत् । तत्रोत्पन्नराशि और शलाका राशि स्थापित करके विरलन राशिका एक-एकके रूपमें विरलन करो और देय- . २० राशिको प्रत्येकपर देकर परस्परमें वगित संवर्ग करो। समन्तरूपसे वर्ग करनेको संवर्ग कहते हैं और वर्गितके संवर्गको अर्थात् परस्परमें गुणा करनेको वर्गित संवर्ग कहते हैं। वह करके शलाका राशिमें-से एक कम करो। पुनः उससे उत्पन्नराशिका विरलन करके एक-एकपर उसी राशिको देकर वर्गित संवर्ग करके शलाका राशिमें से एक कम करो। इसी तरह लोक प्रमाण शलाका राशिकी समाप्ति तक करो। ऐसा करनेपर जो राशि उत्पन्न हो उसको शलाका विरलन और देयके रूपमें तीन जगह स्थापित करके विरलन राशिको विरलित करके एक-एकके ऊपर देयराशिको स्थापित करके परस्परमें गुणा करो और द्वितीय बार स्थापित शलाका राशिमें-से एक कम करो। उससे उत्पन्न राशिका विरलन करके और एक-एकके ऊपर देयराशिको देकर परस्परमें गुणा करके शलाका राशिमें-से एक कम करो। इस तरह दूसरी बार स्थापित शलाका राशिके समाप्त होनेपर अन्तमें जो महाराशि उत्पन्न हो, पहलेकी तरह उसे शलाका विरलन और देयके रूपमें स्थापित करके विरलन राशिका विरलन करो और एक-एकपर देयराशिको देकर परस्परमें गुणा करो और तीसरी बार स्थापित शलाका राशिसे एक कम करो। उससे उत्पन्न राशिका विरलन करके और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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