SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७५ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अनंतरमा चतुर्दशमारणेगळ्गे नामोद्देश मं माडिदपं । गइइ दिएसु काये जोगे वेदे कसायणाणे य । संजमदंसणलेस्सा भविया सम्मत्तसण्णि आहारे ॥१४२।। गतींद्रिययोः काये योगे वेदे कषायज्ञानयोश्च । संयमदर्शनलेश्या भव्यसम्यक्त्वसंज्ञाहारे। इनितुं गत्यादिपदंगळु तृतीयांतंगळुमेणु सप्तम्यांतंगळुमागलिवरणिदमी प्रकारदिद ५ व्याख्यानिसल्पडुगुं । गत्यागत्यां । इंद्रियेणेंद्रिये । कायेन काये। योगेन योगे । वेदेन वेदे। कषायेण कषाये। ज्ञानेन ज्ञाने । संयमेन संयमे । दर्शनेन दर्शने। लेश्यया लेश्यायां । भव्येन भव्ये । सम्यक्त्वेन सम्यक्त्वे। संजिना संजिनि। आहारणाहारे। जीवाः माग्यंते एंदित । ई गत्यादिचतुर्दश मागर्गणेगळितु नामोद्देशदिदं पेळल्पटुवु । अनंतरमी मार्गणेगळोळु सांतरमाणेगळ स्वरूपसंख्याविधाननिरूपणात्थं ई गाथात्रयमं १० पेन्दपं। सप्तमीविभक्तिः । विवक्षावशात्कारकप्रवृत्तिरिति न्यायस्य सद्भावात् ॥१४१॥ अथ तासां चतुर्दशमार्गणानां नामोद्देशं करोति एतानि गत्यादिपदानि तृतीयान्तानि वा सप्तम्यन्तानि तदा एवं व्याख्येयानि गत्या गत्यां, इन्द्रियेण इन्द्रिये, कायेन काये, योगेन योगे, वेदेन वेदे, कषायेण कषाये, ज्ञानेन ज्ञाने, संयमेन संयमे, दर्शनेन दर्शने, १५ लेश्यया लेश्यायां, भव्येन भव्य, सम्यक्त्वेन सम्यक्त्वे, संज्ञिना संज्ञिनि, आहारेण आहारे च जीवाः मार्ग्यन्त इति ता मार्गणा यथानामोद्देशं कथयिष्यन्ते ॥१४२॥ अथ तासु सान्तरमार्गणानां स्वरूपसंख्यातदनन्तरकालप्रमाणं व्यवधाननिरूपणार्थं च गाथात्रयमाह द्रव्यश्रुत गुरु-शिष्य-प्रशिष्य परम्परासे अविच्छिन्न प्रवाहरूपसे चला आता है । 'उसमें जैसा देखा है, वैसा जानो' इस कथनसे काल, दोष और प्रमादसे शास्त्रकारके द्वारा जो त्रुटि हुई हो, २० उसे छोड़कर परमागमके अनुसार व्याख्यान अथवा अध्ययन करनेवाले वस्तुस्वरूपको विरोधरहित ही ग्रहण करते हैं । ऐसा आचार्यने बतलाया है। आगे उन चौदह मार्गणाओंका नाम निर्देश करते हैं ये गति आदि पद तृतीया अथवा सप्तमी विभक्तिको लिये हुए हैं। अतः इनकी व्याख्या इस प्रकार करनी चाहिए-गतिके द्वारा अथवा गतिमें, इन्द्रियके द्वारा अथवा इन्द्रियमें, २५ कायके द्वारा या कायमें, योगके द्वारा या योगमें, वेदके द्वारा या वेदमें, ज्ञानके द्वारा या ज्ञानमें, संयमके द्वारा या संयममें, दर्शनके द्वारा या दर्शनमें, लेश्याके द्वारा या लेश्यामें, भव्यके द्वारा या भव्यमें, सम्यक्त्वके द्वारा या सम्यक्त्वमें, संजीके द्वारा या संज्ञीमें तथा आहारके द्वारा या आहारमार्गणामें जीव 'माय॑न्ते' जाने जाते हैं,वे मार्गणा हैं । नामनिर्देशके अनुसार आगे उनका कथन करेंगे ॥१४२॥ इन चौदह मार्गणाओंमें आठ सान्तर मार्गणा हैं। आगे उनकी संख्या, स्वरूप, अन्तरकाल और निरन्तर प्रवृत्तिकाल तीन गाथाओंसे कहते हैं १. "स्वरूपसंख्याविधाननिरूपणार्थ गाथात्रयमाह" इति घ पुस्तके पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy