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________________ कर्णावृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका द्विकंगलं कोट्टु वग्गितसंवर्ग माडलु जगच्छ्रेणिय विरलन राशि पुट्टुगुमा राशि प्रमाणमनरिवुपायमं तोप्पे । भज्जमिद दुगगुणुत्थिदरासी मूलाणि हारथिविपमिदं । गंतण चरिममूलं लद्धमिददुगाहदे जणिदं ॥ [ 1 एंदु भाज्यमप्पद्धापल्यवर्गशलाकाराशिय द्विकसंवर्गीदिदं पल्यार्द्धच्छेदराशि पुट्टुगुमा च्छेदराशिय मूलंगळ द्विगुणपरीतासंख्यातजघन्यराशियर्द्धच्छेदमात्रमूलंगळं केळगिळिदु चरमरूपाधिकसंख्यातदनितनय मूलं जगच्छ्रेणिय विरलनराशियप्पुददरर्द्धच्छेदंगळं द्विगुणपरीतासंख्यात जघन्यराशिभाजिताद्धापल्यवर्गशलाकेगळे बुद्ध सिद्धमास्तु ॥ आ रूपाधिकसंख्यातनिर्तनेय मूलं मोदगोंडु च्छेदराशिय प्रथमं मूलपर्यंत इद्द मूलंगळ नडरे गुणियिसिदंतप्पऽसंख्यातं पल्यच्छेदराशिगे पोक्क भागहारप्रमाणमप्पुदुतल्लब्धमुमा रूपाधिक- १० संख्यातदनितेनेय मूलमक्कुं । मू १ ॥ 1 लोकप्रतरेयुं द्विरूपघनधारियोपुट्टिदुददरद्धं च्छेदवर्गशलाकेगळ मन्यत्र पुट्टिदुवर्द्धच्छेदंगळु । 'वग्गादुवरिमवदुगुणा दुगुणा हवंति अद्धच्छिदि' । एंदु जगच्छ्रेणियद्ध च्छेदंगळं नोडल छे म् १ HO o मू २ २ ง व व २ व ू व १६ २ Jain Education International २४७ व २ असंख्यात भक्तपल्यच्छेदमात्रं छे तन्मूलमुत्पद्यते । तदेव जगच्छ्रे विरलन राशि a ५ १५ ज्ञातव्यः । लोकप्रतरस्य द्विरूपधनधारोत्पन्नस्यार्धच्छेदवर्गशलाका: अन्यत्रोत्पद्यन्ते । ते अर्धच्छेदा जगच्छ्रेण्यर्धछेदेभ्यो द्विगुणा भवन्ति छे छे छे ६ । तद्वर्गशलाकास्तु रुवहियेति १६ २० घनलोक द्विरूपघनाघनधारा में उत्पन्न होता है, इसलिए उसके अर्धच्छेद और वर्गशलाका अन्य धाराओंमें उत्पन्न होते है । 'परस्थान में तिगुने-तिगुने अर्धच्छेद होते हैं - इस नियम के अनुसार द्विरूपघनधारा में प्राप्त जगतश्रेणी के अर्धच्छेदोंसे लोकके अर्धच्छेद तिगुने होते हैं । अथवा जगतश्रेणीको तीन जगह रखकर परस्पर में गुणा करनेसे लोक होता है । अतः गुण्य और गुणाकार रूप तीन जगतश्रेणी के अर्धच्छेदोंको जोड़नेपर लोकके अर्धच्छेद होते हैं । उसकी वर्गशलाका तो 'परसम' नियम के अनुसार जगतश्रेणीकी वर्गशलाका जितनी ही होती है । इस विषय में उपयोगी गाथा सूत्र कहते हैं, जिनका अर्थ इस प्रकार है- गुणाकार के अर्धच्छेदों में गुण्यराशिके अर्धच्छेद जोड़नेपर लब्धराशिके अर्धच्छेद होते हैं । जैसे गुणाकार आठ अर्धच्छेद तीन और गुण्य सोलहके अर्धच्छेद चारको जोड़नेपर लब्धराशि एक सौ अट्ठाईस अर्धच्छेद सात होते हैं। इसी प्रकार गुणाकार दश कोड़ाकोड़ी के असंख्यात अर्धच्छेद गुण्यराशिपल्यके अर्धच्छेदों में जोड़नेपर लब्धराशि सागरके अर्धच्छेद होते हैं । किन्तु अधिक २५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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