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________________ २३८ ३० प्रमाणराशियक्कु मदक्के संदृष्टि वि छे छे ३ मत्तमो द्वीपसागरंगळ "सब्वे दीवसमुद्दा अड्डाइ - ज्जुद्धा रूवहिमेत्तया होंति” एंदुद्धारसागरोपमंगळे रडुवरेयक्कुमों दुद्धारसागरोपमक्के पत्तु कोटिकोटियुद्धारपत्यंग पुरंदे रडुवर युद्धारसाग रोप मंगपित्त कोटि कोटियुद्धारपत्यंग प्वा उद्धारपत्यंगळिप्पत्तदु कोटि कोटिगगिनितु राशियागलों दुद्धारपल्यक्कनितु राशि प्रमाणमपु ३. ५ देदु त्रैराशिक माडि प्र उप= २५ को २फ । वि-१ छे छे ३ इच्छि ॥ उप १ ॥ बंद लब्ध ३ गो० जीवकाण्डे 1 मोदुद्धारपत्यप्रमाणमक्कुं संदृष्टि वि १ । छे छे ३ इंतुद्धारपत्यप्रमाणं सिद्धमायतु । ३२५ को २ ईयुद्धारपत्यरोमंगळ मो` दो दंऽसंख्यात वर्षसमयसमानमागि खंडिसि तृतीयपत्यमं तुंब प्रतिसमयमो दोदु रोममं तेगेयलेनितुकालक्का पल्यरो मंगळतीगुमनितु समयप्रमाणमद्धापल्यबुदक्कुमदरिंदं नारक तिय्यंग्नरामररुगळ कर्म्मस्थिति पवणिसल्पडुगुं । संदृष्टि । प । उद्धारपल्य१० दोंदु रोममनद्धापल्यनिमित्तमागियसंख्यातवर्षसमय समानमागि खंडिसिकोडेनितु रोमखंडंगळ वेदु ३० प्रश्नेयादोडे त्रैराशिकं माडल्पडुगुं । उद्धारपल्यरोमखंडंगळ नितक्के प्र उ = रो = । विछे छे ३ μ = ३।२५ को २ फफ पल्यमागलों दुद्धारपल्यरोमक्केनितद्धारपल्य रोमखंडंगळप्पुवे । इच्छि उ = =रो=१॥ दु पनयने एकं रूपं फ १ अपनोयते तदा इ छे छे एतावदपनयने कियदपनीयते इति त्रैराशिकेन लब्धं साधिकछे छे ३ । एषा द्वीपसमुद्रसंख्या यतः सार्धद्वयोद्धारसागरोपम त्रिभागं १ गुण्येऽपनयेत् । तत्संदृष्टिः - वि ३ । १. ३ १५ मात्र ततः कारणात् पञ्चविंशतिकोटीकोटयुद्धारपत्यानि भवन्ति । तावतां पल्यानां प्रप २५ को २, यद्ययं ი राशिः फ वि I १ ३ Jain Education International छे छे ३ तदा एकोद्धारपल्यस्य इप १ कियान् राशिरिति त्रैराशिकेन प्रागुक्ता एकोद्धार अर्धच्छेदोंके असंख्यातवें भागको पल्यके अर्धच्छेदोंके वर्गसे तीन गुणे प्रमाणसे गुणा करने पर समस्त द्वीप-समुद्रोंकी संख्या होती है । यतः इतने द्वीपसमुद्र ढाई उद्धार सागर प्रमाण होते हैं। अतः वे पचीस कोड़ाकोड़ी उद्धार पल्य प्रमाण हुए । सो यदि इतने पल्योंकी पूर्वोक्त २० संख्या होती है, तो एक उद्धार पल्यकी कितनी हुई, ऐसा त्रैराशिक करनेपर पूर्वोक्त द्वीपसमुद्रोंकी संख्याको पचीस कोड़ाकोड़ीसे भाग देनेपर जो प्रमाण आवे, उतनी उद्धार पल्यके रोम खण्डोंकी संख्या जानना । इन उद्धार पल्यके रोमखण्डों में से भी प्रत्येक खण्डके असंख्यात वर्ष के जितने समय हैं, उतने खण्ड करो । जो प्रमाण हो, उतने ही अद्धापल्यके रोमखण्ड हैं । इसके समय का प्रमाण भी उतना है, क्योंकि प्रतिसमय एक-एक रोम निकालनेपर जितने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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