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गो० जीवकाण्डे चक्रवत्ति श्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्टे श्रीमत्केशवण्णविरचितमप्प गोम्मटसार कर्णाटकवृत्तिजीवतत्त्वप्रदीपिकयोळु जीवकांड विंशतिप्ररूपणंगळोळु द्वितीय जीवसमास प्ररूपणमहाधिकारं प्ररूपितमायतु ॥ शत्सहस्रकोट्यश्च भवति ॥११७॥
विशेषार्थ-जिन पुद्गल स्कन्धोंसे शरीर बनता है उनके भेदका नाम कुल है ।। ११७॥
इस प्रकार आचार्य नेमिचन्द्र विरचित गोम्मटसार अपर नाम पंचसंग्रहकी मगवान् अर्हन्त देव परमेश्वरके सुन्दर चरणकमलोंकी वन्दनासे प्राप्त पुण्यके पुंजस्वरूप राजगुरु भूमण्डलाचार्य महावादी श्री अमयनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीके चरणकमलोंको धूलिसे शोमित ललाटवाले श्री केशववर्णीके द्वारा रचित गोम्मटसार कर्णाटकवृत्ति जीवतत्व प्रदीपिकाकी अनुसारिणी संस्कृतटीका तथा उसकी अनुसारिणी पं. टोडरमलरचित सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका नामक भाषाटीकाकी अनुसारिणी हिन्दी भाषा टीकामें जीवकाण्डकी बीस प्ररूपणाओं में से जीवसमास प्ररूपणा
नामक द्वितीय महा अधिकार सम्पूर्ण हुभा ॥२॥
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