SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 18
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६ गोम्मटसार जीवकाण्ड 'गोम्मट' कहा है। किन्तु उसकी अनेक उपाधियों के साथ उसके इस नाम का कोई निर्देश देखने में नहीं आया तथा इस नाम का कोई कारण भी प्रतीत नहीं होता। अतः इस शब्द गोम्मट की स्थिति अभी भी विचारणीय है। ऐसा प्रतीत होता है कि 'गोम्मट' शब्द जिस देशी भाषा का है, उसमें उसका कोई अन्य अर्थ अवश्य रहा है। डॉ. उपाध्ये ने अपने लेख में लिखा है कि भारत की आधुनिक भाषाओं में मराठी ही ऐसी भाषा है जिसमें यह शब्द प्रायः व्यवहत हुआ है और अब भी इसका व्यवहार होता है। उन्होंने कुछ उदाहरण भी प्रस्तुत किये हैं। आगे वे लिखते हैं 'गोम्मट' शब्द मराठी में एक विशेषण है और उसका अर्थ है साफ, सुन्दर, आकर्पक, अच्छा आदि। कोंकणी भाषा में भी 'गोम्टो' शब्द है और उसका वही अर्थ है जो मराठी में है।' अन्त में वह लिखते हैं-अक्षरशः गोम्मट शब्द का अर्थ है-उत्तम, आदि। श्रवणवेलगोला के तीन शिलालेखों में जो क्रमशः ई. सन् १११८, ११५६, ११८० के हैं और कन्नड़ भाषा में हैं- 'गोम्मट' शब्द आया है। और वहाँ उनका अध प्रसन्न करनेवाला या उत्तम है। डॉ. उपाध्ये भी ‘गोम्मट' शब्द के और शाब्दिक परिज्ञान के लिए अधिक अध्ययन की आवश्यकता बतलाते हैं। आचार्य नेमिचन्द्र के द्वारा प्रयुक्त 'गोम्मटदेवेण गोम्मटं रइयं', पद से हमें भी उसकी आवश्यकता प्रतीत होती है। क्योंकि उक्त वाक्य में 'गोम्मट' शब्द का प्रयोग न तो चामुण्डराय के लिए है और न उनके द्वारा निर्मित वस्तु के लिए है। उसमें कहा गया है कि गोम्मट देव ने कर्मों की निर्जरा के लिए और तत्त्वार्थ के निर्णय के लिए गोम्मट संग्रह सूत्र की रचना की है। ‘गोम्मट संग्रह सूत्र' का ही विशेषण दूसरा ‘गोम्मट' शब्द है, उसे प्रशंसावाचक विशेषण माना जा सकता है। किन्तु रचना करनेवाला गोम्मटदेव कौन है? जिसने कर्मो की निर्जरा और तत्त्वार्थ के अवधारण के लिए इस ग्रन्थ को रचा? ऐसा तो रचनाकार ही लिख सकता है। और रचना करनेवाले स्वयं आचार्य नेमिचन्द्र हैं? तव क्या उन्होंने अपना उल्लेख भी ‘गोम्मटदेव' शब्द से किया है? आगे उन्होंने कहीं भी ग्रन्थकार के सम्बन्ध में या ग्रन्थरचना के सम्बन्ध में इस प्रकार का कथन नहीं किया है। हाँ, आगे गा. ६६७ में वह इसका संकेत अवश्य करते हैं उन्होंने यह ग्रन्थ चामुण्डराय के लिए ही बनाया था। इसका उल्लेख एक रूपक के रूप में उन्होंने इस प्रकार किया हैवह कहते हैं सिद्धंतुदयतडुग्गय णिम्मलवर णेमिचंदकरकलिया। गुणरयणभूषणंबुहिवेला भरउ भुवणयलं ॥६६७॥ 'सिद्धान्तरूपी उदयाचल के तट पर उदित निर्मल नेमिचन्द्र की किरण से युक्त गणरत्नभूपण अर्थात् चामुण्डराय रूपी समुद्र की मतिरूपी वेला भुवनतल को पूरित करे।' सिद्धान्तरूपी उदयाचल के तट पर उदित नेमिचन्द्र स्वयं ग्रन्थकार हैं, उनके प्रताप से चामुण्डरायरूपी समुद्र की मतिरूपी वेला का प्रसार हुआ है। गुणरत्नभूपण चामुण्डराय की उपाधि थी। आचार्य नेमिचन्द्र ने 'गोम्मटसार' का मंगलाचरण करते हुए भी ‘गुणरयणभूपणुदयंजीवस्स परूवणं वोच्छं' लिखकर प्रकारान्तर से चामुण्डराय का निर्देश किया है। इसी प्रकार उन्होंने 'कर्मकाण्ड' की कई मंगल गाथाओं में द्वयर्थक रूप से चामुण्डराय की उपाधियों का प्रयोग किया है। अतः यह तो स्पष्ट ही है कि गोम्मटसार की रचना चामुण्डराय के लिए नेमिचन्द्राचार्य ने की है। उन्होंने अपनी दूसरी रचना 1. मिऊण णेमिचंद असहायपरक्कम महावार ॥८॥ णमिऊण वढमाणं कणयणिहं देवगयपरिपज्जं ॥३५८।। असहाय जिणवरिंद असहायपरक्कम महावीरे ॥३६॥ मिऊण मिणाहे सज्जजुहिट्टिणमंसियंधिजुगं ॥४५१॥ असहाय पराक्रम, देवराज, सत्ययुधिष्ठिर, ये सब चामुण्डराय की उपाधियां है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy