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________________ १०८ गो० जीवकाण्डे मत्तमधःप्रवृत्तकरणकालदोळ संभविसुवसमस्तपरिणामंगळुमसंख्यातलोकमात्रंगळि = । वक्कंकसंदृष्टि ३०७२ इल्लि प्रथमादिसमयंगळोळु विन्यस्तविशुद्धिकषायपरिणामंगळे प्रमाणावधारणहेतुभूतसूत्रंगळगे गोपाळियिदं बीजगणितविन्यासमुं पेळल्पडुगुमेकेंदोडे पूर्वोक्तार्थसंदेहाभावमक्कुमप्पुरिदं इल्लियधःप्रवृत्तकरणकालं संख्यातावलिसमयमात्रांतर्मुहूर्त्तमक्कुमदवुमनिवृत्यपूर्वकरणकालंगळं नोडलु संख्यातगुणिमितुटक्कु ( २ १ १ १ ) मिदक्के अंकसंदृष्टि १६ अनुकृष्टिपदमिदं नोडलु संख्यातगुणहीनमप्पंतर्मुहूर्तसमयंगळ प्रमाणमेनिक्कु २ १ १ १ मिदक्क संदृष्टि ४ संख्यातक्कु संदृष्टि ३ अंनेवरमंकसंदृष्टि = ५ इदर तात्पर्यमेनेंदोडे अधःप्रवृत्तकरण असंख्यातसमयंगळोळोदानोंदु समयदोळ केलवु जीवंगळु वत्तिसुत्तिरला समयदोळे केलवु जीवंगळधःप्रवृत्तमं प्रारंभिसुवुदं कुर्ता समयं प्रथमं पितणसमयदोळप्रारंभिसिदवं कूर्तु द्वितीयंलर पितणसमयजोवंगळं कूतु तृतीयं। यितु पितण पितण विवक्षेयिं चतुर्थपंचमादिकनिकोंडु नूरेंटनेय पितण समयद जीवंगळ कूर्तु नूरेटनेयदादोडं अधःप्रवृत्तमं कर्तुं नूरेंटुसमयंगळेनिसि कोडित्तु इंतु नूरेंटादोडं संग्रहनदिदिनककालमेंबुदु । मत्ते केलवु जीवंगळं कूर्तु ई विवक्षितसमयमे ए , जो ए , जी ना , जी ना , जी ए, का ना, का ए , का ना , का १ २११११०८ a तथास्यायमभिप्रायः-एकजीव एककाल इत्युक्ते विवक्षिताधःप्रवृत्तकरणपरिणामपरिणतैकजीवस्य परमार्थवृत्त्या कालः एकसमय एव भवति । एकजीवनानाकाल इत्युक्तेऽधःप्रवृत्तकरणनानाकालान्तर्मुहूर्तमात्रसमयाः क्रमेणैकजीवेनारुह्यन्ते इति तावन्त एव समयाः स्यः २११नानाजीवैककाल इत्यक्ते विवाह प्रवृत्तकरणकालासंख्यातसमयेष्वपि यथासंभवमष्टोत्तरशतसमयस्थाने संगहीतजीवानां विवेक्षयककाल इत्यष्टोत्तरशतसमया ज्ञातव्याः । नानाजीवनानाकाल इत्युक्ते अधःप्रवृत्तकरणपरिणामा असंख्यातलोकमात्रास्त्रिकालगोचरनानाजीवसंबन्धिनः अपुनरुक्तरूपाः तान् नानाजीवा नानाकाले समाश्रयन्तीति विवक्षया नानाकालोऽसंख्यातलोकमात्रसमया एव भवन्तीति ज्ञातव्यं । अथाधःप्रवृत्तकरणकाले प्रथमादिसमयविन्यस्तविशुद्धकषाय समयकी अपेक्षा यद्यपि अधःप्रवृत्तकरणका काल असंख्यात समय है तथापि उनमें यथा सम्भव एक सौ आठ समय रूप स्थानोंमें संगृहीत जीवोंका विवक्षित एक काल होनेसे नाना २५ जीवोंका एक काल एक सौ आठ समय जानना। क्योंकि वर्तमान किसी एक समयमें जो अनेक जीव हैं,वे अधःकरणके प्रथम , दूसरा,तीसरा आदि असंख्यात समयोंमें यथासम्भव एक सौ आठ समयमें ही होते हैं। 'नाना जीव नाना काल' ऐसा कहनेपर अधःप्रवृत्त करणके परिणाम असंख्यात लोक मात्र कहे हैं। वे त्रिकालवर्ती नाना जीवोंके होनेवाले अपुनरुक्त परिणाम हैं । वे परिणाम नाना जीवोंके नाना कालमें होते हैं। सो एक-एक परिणामका एक२. एक समयकी विवक्षासे नाना जीवोंका नाना काल असंख्यात लोकमात्र समय प्रमाण ही होता है। ऐसा जानना। अब अधःप्रवृत्तकरणके कालके प्रथम आदि समयोंमें स्थापित विशुद्धता रूप कषाय १. ब शतमात्राणां स । २. विवक्षित-मु.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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