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________________ गो० जीवकाण्डे २ १११ । २१११ । १२ प्रथमसमयपरिणामपुंजदोळंकसादृश्यम तोरि तोरलिल्लद मुंदणगुणकारदोल १२ तत्रत्य ऋणमं शोधिसि शेषकरूपमं माडि १ २ मुन्न तेगेदु वेरिरिसिद ऋणरूपद्वयमं धनस्य ऋणं राशिऋणं भवति एंबो न्यायदिदमसंख्यातलोकमंदण गुणाकारंगळो५ लिई घनरूपं शोषिसि कळदुळिद रूपनोंदना स्थानदोळु होनं माडुवुदितु माडुत्तिरलु चरमसमय =a२११११२ समस्त परिणाम पुंजमक्कु २१११। २१११।२ मिल्लियोंदु चयमं समच्छेदमं माडि कळियुत्तिरलु द्विचरमसमयत्तिनानाजीवसंबधि समस्तविशुद्धिपरिणामजप्रमाणमक्कु = २ ११११२ १० २१११।२१११।१।२ ई यधःप्रवृत्तकरणकालप्रथमादिसमयपरिणाममंगळोळगे __ aa२ संस्थाप्य २१११।२१११।१।२ प्रथमसमयपरिणामपुञ्ज सादृश्यरहिताग्रतनगुणकारे १ २ स्थितऋणं शोधयित्वा शेषकरूपं प्रक्षिप्य १ २ पृथक् संस्थाप्य तत् ऋणरूपद्वयं धनस्य ऋणं राशेः ऋणं भवतीति न्यायेन असंख्यातलोकस्याग्रतनगुणकारस्य धनरूपं शोधयित्वा शेषरूपं तत्रोनयेत । एवंकृते = a|२१११ ।२ १५ चरमसमयसमस्तपरिणामपुञ्जो भवति २१११। २१११।१। २ अत्रकचये समच्छेदेन अपनीते Ea1 २१३१२ द्विचरमसमयवर्तिनानाजीवसंबम्धिसमस्तविशुद्धिपरिणामपुञ्जप्रमाणं भवति २ १११।२१११।१। २ पुंज कहा,उसके. अधःप्रवृत्त करण कालके जितने समय हैं उनको संख्यातका भाग देनेपर जितना प्रमाण आवे,उतने खण्ड करो। वे खण्ड निर्वर्गणाकाण्डकके जितने समय हैं, उतने. १. होते हैं। वर्गणा अर्थात समयोंकी समानता। उससे रहित जो ऊपर-ऊपर समयवर्ती परिणाम खण्ड हैं, उनका काण्डक अर्थात् सर्वप्रमाण, उसीको निर्वर्गणाकाण्डक कहते हैं। उसके समयोंका प्रमाण अधःप्रवृत्तकरण कालरूप ऊर्ध्वगच्छके संख्यातवें भाग मात्र है। सो यही प्रमाण अनुकृष्टिके गच्छका है। एक-एक समय सम्बन्धी परिणामोंमें अनुकृष्टिके गच्छ प्रमाण खण्ड होते हैं। वे खण्ड एक-एक अनुकृष्टिचयप्रमाण अधिक हैं। ऊर्ध्वरचनामें जो २५ चयका प्रमाण कहा है, उसको अनुकृष्टि गच्छका भाग देनेसे जो लब्ध आता है, वही अनु कृष्टिचयका प्रमाण है । तथा 'व्येकपदार्धघ्नचयगुणो गच्छ उत्तरधनम् ।' इस सूत्रके अनुसार एक कम अनुकृष्टिके गच्छके आधे प्रमाणमें अनुकृष्टिचयसे गुणा करनेपर तथा अनकृष्टि गच्छसे गुणा करनेपर जो प्रमाण होता है, वही अनुकृष्टिका चयधन होता है। इसको,ऊर्ध्वरचनामें जो प्रथम समय सम्बन्धी समस्त परिणामपुंजका प्रमाणरूप सर्वधनका ३. १. क लोकद्वयमुं । २. संस्थापित-प.। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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