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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अनंतरमी अधःप्रवृत्तकरणपरिणामंगळर्थसंदृष्टिीयदं विन्यासं तोरल्पड' अदेने :त्रिकालगोचरनानाजोवसंबंधिगळप्पधःप्रवृत्तकरणपरिणामंगळतत्कालसमस्तसमयसंभविगळप्प परिणामंगळनितुमसंख्यातलोकमात्रमक्कु । मिल्लियधःप्रवृत्तकरणकालमे गच्छमक्कं २१११ मत्ते पदकदिसंखेण भाजिदे पचयमेंदी 'सूत्रेष्टदिदमी समस्तधनम = a पदकृतियिंदम संख्येयरूपुर्गाळदम भागिसुत्तिरलिदू २१११।२१११ । १ वचयमक्कुं। व्येकपदालुघ्नचयगुणो गच्छ उत्सरधनमेंदी सूत्राविधानदिदं रूपोनगच्छादिदं २१११।२ प्रचयमं गुणियिसि =२११।२१११ २११२१११।।२ मत्तं गच्छदिदं णियिसि २११।२११।।२ बळिक्किदं १० = २१११ २१११।१।२ चरयण (चयधण) होणं दव्वं पदभजिदे होदि आदिपरिमाण मेंबी सूत्रेष्ट अथ अर्थसंदृष्टया विन्यासो दर्श्यते-तद्यथा त्रिकालगोचरनानाजीवसंबन्धिनः अधःप्रवृत्तकरणकालसमस्तसमयसंभविनः सर्वपरिणामा असंख्यातलोकमात्राः संति = अं वृत्तकरणकालो गच्छ. २ १११ समस्तधने = a पदकृत्या २१११४२१११ संख्यातेन च १ भक्ते सति ऊर्ध्वप्रचयो भवति । = a = a २१११।२१११।३। रूपोनगच्छाधैंन २ १११ प्रचयं गुणित्वा २ १११, २ १११। १ २ ४२१११ गच्छेन गुणिते २ १११, २१११, १, २१११ ४२१११ अपवर्तितं चयधन. २ विशेषार्थ-केशववर्णीकी इस टीकामें यह तो सर्वधन आदिका प्रमाण कल्पना करके समझानेके लिए किया है. उसी में अर्थ संदष्टिके द्वारा विस्तारसे यथार्थ वर्णन भी है। किन्तु उसका अर्थ एक तो कठिन है, दूसरे बहुत विस्तार होनेसे ग्रन्थका विस्तार होनेके साथ २५ पाठकोंको भी कठिनाई हो सकती है।अतः जैसे पं. टोडरमलजी साहबने अर्थ संदृष्टिअधिकार अलग लिखा है तदनुसार सम्भव हुआ तो अलगसे लिखेंगे। यहाँ हम पं. जी साहबके अनुसार मूल टीकाका औशय मात्र दे रहे हैं। आगे भी अर्थसंदृष्टियोंके सम्बन्धमें हम ऐसा ही करेंगे। त्रिकालवर्ती नाना जोव सम्बन्धी समस्त अधःप्रवृत्तकरणके परिणाम असंख्यात लोक मात्र है सो यहाँ सर्वधन जानना। इसीके स्थानमें अंक संदृष्टि में ३०७२ कल्पना किया , है। अधःप्रवृत्तकरणका काल अन्तर्मुहूर्त मात्र, उसके जितने समय हों मो यहाँ गच्छ जानना । इसीके स्थानमें १६ संख्या कल्पित की है सिर्वधनमें गच्छके वर्गसे भाग देवें। फिर यथासम्भव संख्यातका भाग देवें। जो प्रमाण आवे सो ऊ वंचय जानना । एक कम गच्छको आधा करके उसे चयसे तथा गच्छके प्रमाणसे गुणा करने पर जो प्रमाण आवे सो उत्तर धन जानना । इस उत्तर धनको सर्वधनमें-से घटाकर जो शेष रहे उसे ऊर्ध्व१. म सूत्रदिंदभी । २. म अपवतिसुतविरलुबदचयघनमिदुबलि । ३. ब°नः समस्ता अधःप्रवृत्तकरणपरिणामा असं । ४. व तेषु च अधः प्रवृत्तकरणकालस्य २१११ कृत्या । ५. व भक्तेषु सत्सु । ६. व गुणयित्वा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001816
Book TitleGommatasara Jiva kanda Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages564
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Karma
File Size13 MB
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