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________________ संकमाणुयोगद्दारे अणुभागसंकमो ( ३८५ अजहण्णाणुभागसंकामओ चदुसंजलण-पुरिसवेदाणं अणादिओ अपज्जवसिदो, अणादिओ सपज्जवसिदो, सादिओ सपज्जवसिदो वा। तत्थ जो सो सादिओ सपज्जवसिदो तस्स जह० अंतोमुत्तं, उक्क० उवड्ढपोग्गलपरियढें । सम्मत्तस्स जह० अंतोमु०, उक्क० बेछावट्टिसागरो० सादिरेयाणि । अणंताणुबंधीणं जहण्णाणुभागसंकामा जह० एगसमओ, उक्क० चत्तारि समया। अजहण्णअणुभागसंकामओ अणाविओ अपज्जवसिदो, अणादिओ सपज्जवसिदो, सादिओ सपज्जवसिदो च । तत्थ जो सो सादिओ सपज्जवसिदो तस्स जह० अंतोमु०, उक्कस्समुवड्ढपोग्गलपरियट्टं । अटुण्णं णोकसायाणं जहण्णाणुभागसंकामओ जहण्णुक्क० अंतोमुहुत्तं । अजहण्ण० अणादिओ अपज्जवसिदो, अणादिओ सपज्जवसिदो, सादिओ सपज्जवसिदो च । तत्थ जो सो सादिओ सपज्जवसिदो तस्स जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० उवड्ढपोग्गलपरियढें । सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागसंकामओ केव ०? जहण्णुक्क० अंतोमु० । अजहण्णस्स जह० अंतोमु०, उक्क० बेछावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । आउआणं जहण्णाणुभागसंकामओ जह० एगसमओ, उक्क० चत्तारि समया। अजहण्ण० जह० अंतोमुहुत्तं । देव-णिरयाउआणं अजहण्णाणुभागसंकमकालस्स कुदो मात्र है। चार संज्वलन और पुरुषवेदके अजघन्य अनुभागके संक्रामकका काल अनादिअपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित भी हैं। उनमें जो सादि-पपर्यवसित है उसका प्रमाण जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन है । सम्यक्त्वके अजघन्य अनुभागके संक्रमकका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे साधिक दो छयासठ सागरोपम मात्र है। अनन्तानुबन्धी कषायोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय मात्र है। उनके अजघन्य अनुभागके संक्रामकका काल अनादिअपर्यवसित, अनादि-पर्यवसित और सादि-सपर्यवसित भी है। उनमें जो सादि-सपर्यवसित है उसका प्रमाण जघन्यसे अन्तर्मुहुर्त और उत्कर्षसे उपार्थ पुद्गलपरिवर्तन है। पुरुषवेदको छोडकर शेष आठ नोकषायोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकका काल जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहुर्त मात्र है। उनके अजघन्य अनुभागके संक्रामकका काल अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित भी है। उनमें जो सादि-सपर्यवसित है उसका प्रमाण जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन है। सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागके संक्रामकका काल कितना है ? वह जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहुर्त मात्र है। उसके अजघन्य अनुभागके संक्रामकका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे साधिक दो छयासठ सागरोपम मात्र है। आयुकर्मोंके जघन्य अनुभागके संक्रामकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय मात्र है । उनके अजघन्य अनुभागके संक्रामकका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है। Jain Education i ताप्रतावतोऽग्रे 'उक्क० वेछावट्टिसागरो! इत्याधिकः पाठः । www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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