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________________ ३७० ) छक्खंडागमे संतकम्मं एयजीवेण कालो- पंचणाणावरणाणं भुजगारस्स कालो जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जाणि समय सहस्साणि । अप्पदरस्त जह० एगसमओ, उक्क० , बेछावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि । अवट्ठियस्स जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । णवदंसणावरणाणं तिविहो जह० एगसमओ । उक्क० भुजगारस्स एक्कारस समया, सेसाणं णाणावरणभंगो । सादासाद-मिच्छत्ताणं भुजगारसंकमस्स जह० एगसमओ, उक्क० बे समया; अद्धासंकिलेसखयप्पणादो । अप्पदर - अवट्ठियाणं णाणावरणभंगो सोलसकसाय-णवणोकसायाणं भुजगारसंकमस्स जह० एगसमओ, उक्क० सत्तारस समया । सोलसकसाय-णवणोकसायाणमप्पदर अवट्टिदाणं णाणावरणभंगो । सम्मत्तसम्मामिच्छत्ताणं भुजगार अवट्ठिय- (अवत्तव्व) संकमाणं कालो जहष्णुक्क० एगसमओ । एदेसिमप्पदरस्स जह० अंतोमुहुत्तं, उक्क० बेछावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि * । चदुण्णमाउआणमवदि-भुजगार संकमाणं कालो जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । पुव्व एक जीवको अपेक्षा कथन करते हैं- पांच ज्ञानावरण प्रकतियोंके भुजाकार संक्रमका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से संख्यात हजार पमय है । अल्पतरका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से साधिक दो छ्यासठ सागरोपम मात्र है । अवस्थितका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अईर्मुहूर्त मात्र है। नौ दर्शनावरण प्रकृतियोंके तीन प्रकारके संक्रमका काल जघन्यसे एक समय मात्र है । उत्कर्षसे वह भुजाकारका ग्यारह समय और शेष दोका ज्ञानावरणके समान है । सातावेदनीय, असातावेदनीय और मिथ्यात्वके भुजाकार संक्रमका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से दो समय मात्र है; क्योंकि, अद्धाक्षय और संक्लेशक्षयकी प्रधानता है । इनके अल्पतर और अवस्थित संक्रमके कालकी प्ररूपणा ज्ञानावरणके समान है । सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके भुजाकारसंक्रमका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से सत्रह समय मात्र है । सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके अल्पतर और अवस्थित संक्रमके कालकी प्ररूपणा ज्ञानावरणके समान है । सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के भुजाकार, अवस्थित और अवक्तव्य संक्रमका काल जघन्य व उत्कर्षसे एक समय मात्र है । इनके अल्पतरसंक्रमका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे साधिक दो छ्यासठ सागरोपम मात्र है । चार आयुकर्मोंके अवस्थित और भुजाकार संक्रमोंका काल जघन्य व उत्कर्षसे एक समय मिच्छत्तस्स भुजगार संकामगो केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण एयसमओ । उक्कस्सेण चतारिसमया । अप्पदरसंकामगो केवचिरं कालादो होदि ? जहणेणेयसमओ । उक्कस्सेण तेवद्विसागरोवमसत्रं सादिरेयं अवद्विदसंकामओ केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेणसमओ । उक्कस्सेणंतोमहुतं । क. पा. सु. पृ. ३२९, १५६-६४. * सम्मत्त - सम्मामिच्छत्ताणं भुजगार अवद्विद अवत्तव्वसंकामया केवचिरं कालादो होंति ? -- हक्क सेयसमओ । अप्पदरसंकामओ केवचिरं कालादो होदि ? जहणेण अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण बे छावसागरीवमाणि सादिरेयाणि । सेसाणं कम्माणं भुजगारसंकामओ केवचिरं कालादो होदि ? जहणेणेय - समओ । उक्कस्सेण एगूणवीस समया । सेसपदाणि मिच्छतभंगो । णवरि अवत्तव्वसंकामया जहष्णुक्कस्सेण एगसमओ । क. पा. सु. पृ. ३३०, १६५-७४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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