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११ मोक्खाणुयोगद्दारं
महुवरमहुवरवाउलवियसियसियसुरहिगंधमल्लेहि ।
मल्लिजिणमच्चियूण य मोक्खणुयोगो परूवेमो ॥ १ ॥ मोक्खो त्ति अणुयोगद्दारे मोक्खो णिक्खिवियवो--णाममोक्खो दवणमोक्खो दव्वमोक्खो भावमोक्खो चेदि मोक्खो चउन्विहो । णाममोक्खो ढवणमोक्खो आगमदो दव्वमोक्खो आगम-णोआगमभावमोक्खो च सुगमो। जो सो णोआगमदो दव्वमोक्खो सो दुविहो कम्ममोक्खो णोकम्ममोक्खो चेदि । णोकम्ममोक्खो सुगमो। कम्मदव्वमोक्खो चउन्विहो पयडिमोक्खो टिदिमोक्खो अणुभागमोक्खो पदेसमोक्खो चेदि । पयडिमोक्खो दुविहो मूलपयडिमोक्खो उत्तरपयडिमोक्खो चेदि । तत्थ एक्केक्को दुविहो देसमोक्खो सव्वमोक्खो चेदि । तत्व अट्ठपदं-- जा पयडी णिज्जरिज्जदि अण्णपडि वा संकामिज्जदि एसो पयडिमोक्खो णाम । एसो पयडिमोक्खो सुगमो, पयडिउ*दय-पयडिसंकमेसु अंतब्भावादो। ठिदिमोक्खो दुविहो उक्कस्सो जहण्णो चेदि । एत्थ अट्टपदं । तं जहा-- ओकड्डिदा वि उक्कड्डिदा वि अण्णपडि संकामिदा
मधुको करनेवाले भ्रमरोंसे व्याकुल ऐसे विकसित, धवल और सुगन्धित पुष्पमालाओंके द्वारा मल्लि जिनेन्द्रकी पूजा करके मोक्ष-अनुयोगद्वारकी प्ररूपणा करते हैं ।। १ ।।
मोक्ष इस अनयोगद्वार में मोक्षका निक्षेप करना चाहिये-- वह मोक्ष नाममोक्ष, स्थापनामोक्ष, द्रव्यमोक्ष और भावमोक्षके भदसे चार प्रकारका है। इनमें नाममोक्ष, स्थापनामोक्ष आगमद्रव्यमोक्ष, आगमभावमोक्ष और नोआगमभावमोक्ष; य सुगम हैं। जो नोआगमद्रव्यमोक्ष है वह दो प्रकारका है-- कर्ममोक्ष और नोकर्ममोक्ष । इनमें नोकर्ममोक्ष सुगम है। कर्मद्रव्यमोक्ष चार प्रकारका है.- प्रकतिमोक्ष, स्थितिमोक्ष, अनभागमोक्ष और प्रदेशमोक्ष। प्रकतिमोक्ष दो प्रकारका है-- मलप्रकतिमोक्ष और उत्तरप्रकतिमोक्ष । उनमें प्रत्येक देशमोक्ष और सवमोक्षके भेदसे दो प्रकारका है । उनमें अर्थपद बतलाते हैं-- जो प्रकृति निर्जराको प्राप्त होती है अथवा अन्य प्रकृति में सक्रान्त होती है, यह प्रकृतिमोक्ष कहलाता है। यह प्रकृतिमोक्ष सुगम है, क्योंकि, उसका अन्तर्भाव प्रकृति-उदय और प्रकृतिसंक्रममें होता है । स्थितिमोक्ष उत्कृष्ट और जघन्यके भेदसे दो प्रकारका है। यहां अर्थपद बतलाते हैं । वह इस प्रकार है-- अपकर्षणको प्राप्त हुई,
. मप्रतिपाठोऽयम् । अ-का-ताप्रतिषु णोआगमदव्वमोक्तो' इति पाठः । *मतिपासोऽयम । अप्रतौ 'णाम सो सुगमो पपडि', का रतौ 'णान पयडि, ' तातो 'णान एसो सुगमो, पयडि ' इति पाठः ।
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