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________________ ५८८) छक्खंडागमे संतकम्म ओहिणाण० विसे० ।सुद० विसे । मदि० विसे० । ओहिदसण० विसे० । अचक्खु० विसे० । चक्खु० विसे० । असादे० संखेज्जगुणा । एवं णिरयगइदंडओ समत्तो । तिरिक्खगदीए सव्वत्थोवं सम्मत्ते जहण्णपदेससंतकम्मं । सम्मामिच्छत्ते असंखेज्जगुणं । अणंताणुबंधिमाणे असंखेज्जगुणं । कोहे विसे । मायाए विसे । लोहे विसे० । मिच्छत्ते असं० गुणं । पयलापयला० असंखे० गुणं । णिहाणिद्दा० संखे० गुणं । थीण-- गिद्धि० विसे० । अपच्चक्खाणमाणे० असंखे० गुणं । कोहे. विसे० । मायाए विसे० । लोहे विसे । पच्चक्खाणमाणे विसे० । कोहे विसे । मायाए विसे० । लोहे. विसे। ओहिणाण. विसे० । केवलणाण० विसे० । पयला० विसे । णिद्दा० विसे० । केवलदसण. विसे०। णिरयगदीए अणंतगुणं । देवगदीए असंखे० गुणं । वेउब्विय० संखे० गुणं । आहार० असंखे० गुणं । मणुसगदीए संखेज्जगणं । उच्चागोद० संखे० गुणं । तिरिक्खाउअम्मि असंखे० गुणं । मणुस्साउअम्मि असंखे० गुणं । देवणिरयाउअम्मि असंखे० गुणं । ओरालिय० असंखे० गुणं । तिरिक्खगदीए संखे० गुणं । इत्थि० संखे० गुणं । णवंसय० संखे० गुणं । पुरिस० विसे० । जसकित्ति० असंखे० गुणं । तेज० संखे० गुणं । कम्मइय० विसे० । अजसकित्ति० संख० गुणं । हस्स० विसे० । रदि० विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। श्रतज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। मतिज्ञातावरण में विशेष अधिक है। अवधिदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरण में विशेष अधिक है। असातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। इस प्रकार नरकगतिदण्डक समाप्त हुआ। तिर्यग्गतिमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म सम्यक्त्व में सबसे स्तोक है। सम्यग्मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है । अनन्तानुबन्धी मानमें असंख्यातगुणा है। क्रोधमें विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है। मिथ्यात्वमें असंख्यात गुणा है। प्रचलाप्रचलामें असंख्यातगुणा है । निद्रानिद्रामें संख्यातगुणा है । स्त्यानगृद्धि में विशेष अधिक है। अप्रत्याख्यानावरण मानमें असंख्यातगुणा है। क्रोधमें विशेष अधिक है। माया में विशेष अधिक है। लोभ में विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मानमें विशेष अधिक है। क्रोध में विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरण में विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। प्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रामें विशेष अधिक है। केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। नरकगति में अनन्तगुणा है। देवगतिमें असंख्यातगुणा है। वैक्रियिकशरीरमें संख्यातगुणा है। आहारकशरीरमें असंख्यातगुणा है। मनुष्यगतिमें संख्यातगणा है। उच्चगोत्रमें संख्यातगुणा है। तिर्यगायुमें असंख्यातगुणा है। मनुष्यायुम असंख्यातगुणा है। देवायु और नारकायुमें असंख्यातगुणा है। औदारिकशरीरमें असंख्यातगुणा है । तिर्यग्गतिमें संख्यातगुणा है। स्त्रीवेदमें संख्यातगुणा है । नपुंसकवेदमें संख्यातगुणा है । पुरुषवेदमें विशेष अधिक है। यशकीर्तिमें संख्यातगुणा है। तेजसशरीरमें संख्यातगुणा है। कार्मणशरीरमें विशेष अधिक है। अयशकीति में संख्यातगुणा है। हास्यमें विशेष अधिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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