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________________ ५८६ ) छक्खंडागमे संतकम्म विसे० । ओहिणाण. असंखे० गुणं । ओहिदंसण. विसे० । जिरयगइ० असंखे० गुणं । देवगइ० असंखे० गुणं । वेउध्विय० संखे० गुणं । आहार० असंखे० गुणं । मणुसगइ० संखे० गुणं । उच्चागोद० संखे० गुणं । णिरयाउअम्मि असंखे० गुणं । देवाउअम्मि विसेसाहियं । तिरिक्खाउअम्मि विसे० । मणुस्साउअम्मि विसे० । कोहसंजलण असंख० गुणं । माणसंजल० विसे० । पुरिस० विसे० । मायासांजल० विसे० । तिरिवख गइ० असंखे० गुणा । इत्थि० अखे० गुणा। णवूस० विसे० । णीचागोद० असंखेज्जगुणं । ओरालिय० असंखे० गुणं । जसकित्ति० असंखे० गुणं । तेज० विसे० । कम्मइय० विसे० । अजसकित्ति० खेज्जगुणं । हस्स० संखे० गुणं । रदि० विसे०। सादे संखे० गुणं । सोगे संखे० गुणं । अरदि० विसे०। दुगुंछ० विसे०। भय० विसे० । लोहसंजलणं विसेसाहियं । एवं विसेसाहियकमेण णेदव्वं जाव विरियंतराइयं ति । मणपज्जव० विसेसाहियं । सुद० विसे०। मदि० विसे० । अचक्खु० विसे० । चक्खु विसे० । असादे संखेज्जगुणं । एवमोघदंडओ समत्तो। णिरयगदीए सव्वत्थोवं सम्मत्ते जहण्णयं पदेसगं संतकम्मं । सम्मामिच्छत्ते असंखेज्जगुणं । अणंताणुबंधिमाणे असंखे० गुणं । कोहे विसे० । मायाए विसे०। लोहे केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। अवधिज्ञानावरणमें असंख्यातगुणा है। अवधिदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। नरकगतिमें असंख्यातगुणा है। देवगतिमें असंख्यातगुणा है । वैक्रियिकशरीर में असंख्यातगुणा है । आहारकशरीरमें असंख्यातगुणा है । मनुष्यगतिमें संख्यातगुणा है। उच्चगोत्रमें संख्यातगुणा है। नारकायुमें असंख्यातगुणा है। देवायुमें विशेष अधिक है। तिर्यगायुमें विशेष अधिक है। मनुष्यायुमें विशेष अधिक है। संज्वलन क्रोधमें असंख्यातगुणा है। संज्वलन मानमें विशेष अधिक है। पुरुषवेदमें विशेष अधिक है। संज्वलन मायामें विशेष अधिक है । तिर्यग्गति में असंख्यातगुणा है। स्त्रीवेदमें असंख्यातगुणा है। नपुंसकवेदमें विशेष अधिक है। नीचगोत्रमें असंख्यातगुणा है। औदारिकशरीरम असंख्यातगुणा है। यशकीतिमें असंख्यातगुणा है। तेजसशरीरमें विशेष अधिक है। कार्मणशरीरमें विशेष अधिक है। अयशकीर्तिमें संख्यातगुणा है। हास्यमें संख्यातगुणा है । रतिमें विशेष अधिक है। सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। शोकमें संख्यातगुणा है। अरतिमें विशेष अधिक है। जुगुप्सामें विशेष अधिक है। भयमें विशेष अधिक है। संज्वलन लोभमें विशेष अधिक है। इस प्रकार विशेषाधिक क्रमसे वीर्यान्तराय तक ले जाना चाहिये। आगे मनःपर्ययज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। श्रुतज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। मतिज्ञानावरणमें विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। चक्षुदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। असातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। इस प्रकार ओघदण्डक समाप्त हुआ। नरकगतिमें जघन्य प्रदेशसत्कर्म सम्यक्त्व प्रकृतिमें सबसे स्तोक है। सम्यग्मिथ्यात्वमें असंख्यातगुणा है। अनन्तानुबन्धी मानमें असंख्यातगुणा है। क्रोध में विशेष अधिक है। 3 ताप्रती 'अणंतगुणा' इति पाठः । - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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