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________________ ( १७ ) पृष्ठ | विषय विषय पृष्ठ ५१९ ५१४ ५२२ स्थितिदीर्घका विचार ५०८ पश्चिमस्कन्ध-अनुयोगद्वार ५१९-५२० अनुभागदीर्घ और प्रदेशदीर्घका विचार भवके तीन भेद करके भवग्रहणभव ह,स्वके चार भेद ५०९ प्रकृत है इसका निर्देश प्रकृतिह स्वका विचार पश्चिमस्कन्धमें बन्धमार्गणा आदि पाँच स्थितिह स्वका विचार मार्गणाओंका विचार किया जाता है अनुभागह स्वका विचार ५११ | इस बातका निर्देश प्रदेशह स्वका विचार ५११ सिद्ध होनेवाले जीवकी अन्य प्ररूपणा ५१९ भवधारणीय-अनुयोगद्वार ५१२-५१३ आवजितकरणके बाद केवलिसमुद्घातमें सुमतिजिनकी स्तुति ५१२ होनेवाले कार्य विशेषका निर्देश भवके तीन भेदोंका स्वरूपनिर्देश __५१२ योगनिरोध आदि कार्य विशेषोंका निर्देश ५२० अमूर्त जीवका मर्त पुद्गल के साथ कैसे अपूर्वस्पर्धक करने की प्रक्रिया ५२० सम्बन्ध होता है इसका विचार ५१३ कृष्टिकरणकी प्रक्रिया और क्षपणका प्रकार ५२१ भवग्रहणभवका विशेष विचार ५१३ अल्पबहुत्व-अनुयोगद्वार ५२२-५९३ पुद्गलात्त-अनुयोगद्वार ५१४-५१५ पदमप्रभजिनकी स्तुति । नागहस्तिभट्टारकके अनुसार सत्कर्मका विचार ५२२ पूदगलात्तका चार प्रकारका निक्षेप और उनका विशेष विचार सत्कर्मके चार भेद पूदगलात्तका स्पष्टीकरण और उसका पाँच प्रकृतिसत्कर्म के भेद करके उनमें प्रकारसे विचार स्वामित्वका विचार पुद्गलात्तका दूसरा अर्थ पुद्गलामा शेष अनुयोगद्वारोंकी सूचना करके ५२४ करके विचार अल्पबहुत्वका विचार ५१४ निधत्त-अनिधत्त अनुयोगद्वार प्रकृतिसत्कर्मके भेद करके उत्तरप्रकृति सत्कर्मके अद्धाच्छेदका विचार सुपार्वजिनकी स्तुति ५२८ ५१६ निधत्तके चार भेद स्वामित्वविचार ५३१ ५१६ अर्थपद अल्पबहुत्वविचार निधत्त और अनिधत्तका विशेष विचार ५१६ अनुभागसत्कर्ममं आदिस्पर्धकका विचार ५३८ निकाचित-अनिकाचित अनुयोगद्वार ५१७ घातिसंज्ञा और स्थानसंज्ञाका विचार ५३९ चन्द्रजिनकी स्तुति ५१७ स्वामित्वविचार ५४० निकाचितके चार भेद ५१७ | अल्पबहुत्व ५४४ अर्थपद ५१७ | प्रदेश उदीरणामें मूलप्रकृतिदण्डक व अन्य निकाचित-अनिकाचितका विशेष विचार ५१७ | प्रकृतियोंका अल्पबहुत्व ५५२ अल्पबहुत्व ५१७ | उत्तरप्रकृतिसंक्रममें अल्पबहुत्व ५५५ कर्मस्थिति-अनुयोगद्वार ५१८ मोहनीय प्रकृतिस्थानसंक्रमका अल्पबहुत्व ५५६ पुष्पदन्तजिनकी स्तुति ५१८ | जघन्य स्थितिसंक्रम अल्पबहुत्व ५५६ दो उपदेशोंका निर्देश ५१८ | जघन्य अनुभागसंक्रम अल्पबहुत्व ५५७ ५२२ ५१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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