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________________ ५८४ ) छक्खंडागमे संतकम्म विसे । अचक्खु० विसे० । कोहसंजल. विसे० । माणसंज. विसे० । मायासंज विसे । जसकित्ति० विसे० । णीचागोद० विसे० । उच्चागोद० विसे० । लोहसंजणण. विसेसाहियं । एवमोघदंडओ समत्तो।। णिरयगदीए उक्कस्से सम्मामिच्छत्ते० पदेसग्गं थोवं । अपच्चक्खाणमाणे असंखे० गुणं । कोहे. विसे०। मायाए विसे०। लोहे विसे०। पच्चक्खाणमाणे बिसे। कोहे विसे० । मायाए विसे० । लोहे विसे० । अणंताणुबंधिमाणे विसे०। कोहे विसे। मायाए विसे० । लोहे विसे० । सम्मत्ते विसे० । मिच्छत्ते विसे० । केवलणाण० विसे० । पयला० विसे० । णिद्दा विसे । पयलापयला. विसे० । णिहाणिद्दा० विसे० । थीणगिद्धि० विसे । केवलदसण. विसे० । अण्णदरे आउए अगंतगुणं । णिरयगइ० असंखे०गुणं । आहार० असंखे०गुणं । जसकित्ति० संखे० गुणं । वेउविय० विसे। ओरालिय०* विसे। तेज. विसे। कम्मइय० विसे। अजसकित्ति० संखे० गुणं । देवगइ० विसे०। तिरिक्खगइ० विसे० । मणुसगइ० विसे०। हस्स० संखेज्जगुणं । रदि० विसे०। साद० संखे० गुणं । इत्थि० संखेज्जगुणं । सोग० संखे० गुणं । विशेष अधिक है। अचक्षुदर्शनावरण में विशेष अधिक है। संज्वलन क्रोधमें विशेष अधिक है । संज्वलन मानमें विशेष अधिक है। संज्वलन मायामें विशेष अधिक है। यशकीर्तिमें विशेष अधिक है। नीचगोत्रमें विशेष अधिक है। उच्चगोत्रमें विशेष अधिक है। संज्वलन लोभम विशेष अधिक है। इस प्रकार ओघदण्डक समाप्त हुआ। नरकगतिके उत्कर्षसे सम्यग्मिथ्यात्व में स्तोक प्रदेशाग्र है। अप्रत्याख्यानावरण मान में असंख्यातगुणा है । क्रोध में विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है। प्रत्याख्यानावरण मानमें विशेष अधिक है। क्रोधमें विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है। लोभ में विशेष अधिक है . अनन्तानुबन्धी मानमें विशेष अधिक है । क्रोधमें विशेष अधिक है। मायामें विशेष अधिक है। लोभमें विशेष अधिक है । सम्यक्त्वमें विशेष अधिक है। मिथ्यात्वमें विशेष अधिक है। केवलज्ञानावरणमें विशेष अधिक है । प्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रामें विशेष अधिक है। प्रचलाप्रचलामें विशेष अधिक है। निद्रानिद्रामें विशेष अधिक है। स्त्यानगृद्धि में विशेष अधिक है। केवलदर्शनावरणमें विशेष अधिक है। अन्यतर आयुकर्ममें अनन्तगुणा है। नरकगति नामकर्ममें असंख्यातगुणा है। आहारकशरीरमें असंख्यातगुणा है। यशकीति में संख्यातगुणा है। वैक्रियिकशरीरमें विशेष अधिक है। औदारिकशरीरमें विशेष अधिक है। तेजसशरीरमें विशेष अधिक है। कार्मणशरीरमें विशेष अधिक है। अयशकीर्तिमं संख्यातगुगा है। देवगतिमें विशेष अधिक है। तिर्यग्गतिमें विशेष अधिक है। मनुष्यगतिमें विशेष अधिक है। हास्यमें संख्यातगुणा है। रतिमें विशेष अधिक है। सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है। स्त्रीवेदमें ४ प्रतिषु 'सम्मामिच्छते' इति पाठः । ताप्रतौ ' अणंतगणा' इति पाठः । अप्रढो विदिय',का-मप्रत्योः 'बादिय०',ताप्रतौ ' वेदिय' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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