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________________ अप्पाबहुअणुयोगद्दारे परत्थाणप्पाबहुअं ( ५३७ जसकित्तीणं जाओ द्विदीओ जल द्विदिसंतकम्मं च तत्तियं चेव । णिरयगइ-तिरिक्खगइओरालियसरीराणं जाओ द्विदीओ ताओ विसेसाहियाओ। एदेसि चेव कम्माणं जं द्विदिसंतकम्मं तेजा-कम्मइय-अजसगित्ति-णीचागोदाणं जाओ द्विदीओ जं टिदिसंतकम्म च विसे । सादस्स जाओ द्विदीओ जं दिदिसंतकम्मं च दो वि तुल्लाणि विसेसाहियणि। पंचण्हं दसणावरणीयाणं जाओ द्विदीओ ताओ विसेसाहियाओ। एदेसि जं टिदिसंतकम्म सेसाणं तीसियाणं जाओ द्विदीओ जं टिदिसंतकम्मं च तुल्लं विसेसाहियं । णोकसायाणं जाओ द्विदीओ जं दिदिसंतकम्मं च विसे० । सोलसकसायाणं जाओ द्विदीओ जं दिदिसंतकम्मं च तुल्लं विसे० । सम्मामिच्छत्तस्स जाओ द्विदीओ ताओ विसे० । एदस्स चेव जं ट्रिदिसंतकम्मं सम्मत्तस्स जाओ द्विदीओ जं द्विदिसंतकम्म विसे० । मिच्छत्तस्स जाओ द्विदीओ जं टिदिसंतकम्मं विसेसाहियं । एवमोघक्कस्सट्ठिदिसंतकम्मदंडओ समतो । एदमणुमाणियगदीसु णेयव्वं । जहण्णए पयदं । तं जहा-पंचणाणावरण-चउदंसणावरण-सादासाद-सम्मत्त-लोहसंजलण-इत्थि-णqसयवेद-आउचउक्क-मणुसगइ-जसकित्ति-उच्चागोद-पंचंतराइयाणं च जहणियाओ जाओ द्विदीओ जं द्विदिसंतकम्मं तुल्लं थोवं । पंचदंसणावरणीय-मिच्छत्तसम्मामिच्छत्त-बारसकसाय-तिण्णिगइ-पंचसरीर--अजसकित्ति--णीचागोदाणं जाओ यशकीर्तिकी जस्थितियां और जस्थितिसत्कर्म उतना मात्र ही है। नरकगति, तिर्यग्गति और औदारिकशरीरकी जो स्थितियां हैं वे विशेष अधिक हैं। इन्हीं कर्मोका जस्थितिसत्कर्म तथा तैजसशरीर, कार्मणशरीर, अयशकीर्ति और नीचगोत्रकी जस्थितियां एवं जस्थितिसत्कर्म विशेष अधिक हैं। सातावेदनीयकी जस्थितियां और जस्थितिसत्कर्म दोनों ही तुल्य व विशेष अधिक हैं। पांच दर्शनावरणीय प्रकृतियों को जो स्थितियां हैं वे विशेष अधिक हैं। इनका जस्थितिसत्कर्म तथा शेष तीस कोडाकोडि सागरोपम स्थितिवाले कर्मोंकी जस्थितियां और जस्थितिसत्कर्म तुल्य व विशेष अधिक हैं। नोकषायोंकी जस्थितियां और जस्थितिसत्कर्म विशेष अधिक हैं। सोलह कषायोंकी जस्थितियां और जस्थितिसत्कर्म तुल्य व विशेष अधिक हैं। सम्यग्मिथ्यात्वकी जो स्थितियां हैं वे विशेष अधिक हैं। इसीका जस्थितिसत्कर्म और सम्यक्त्व प्रकृतिकी जस्थितियां व जस्थितिसत्कम विशेष अधिक हैं। मिथ्यात्वकी जस्थितियां और जस्थितिसत्कर्म विशेष अधिक हैं। इस प्रकार ओघ उत्कृष्ट स्थितिसत्कर्मदण्डक समाप्त हुआ। इसी प्रकारसे अनुमानित गतियोंमें ले जाना चाहिये । अब जघन्य अल्पबहुत्वका प्रकरण है। यथा- पांच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, साता व असाता वेदनीय, सम्यक्त्व, संज्वलन लोभ, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, चार आयु, मनुष्यगति, यशकीर्ति, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय; इनकी जघन्य जस्थितियां और जस्थितित्सकर्म तुल्य व स्तोक हैं। पांच दर्शनावरणीय, मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय, तीन गति, पांच शरीर, अयशकीर्ति और नीचगोत्रकी जस्थितियां उतनी मात्र ही हैं। इनका जस्थितिसत्कर्म Jain Education का-ताप्रत्योः 'जसकतीणं जं' इति पाठ: d & Personal use Only www.jainelibrary.org
SR No.001815
Book TitleShatkhandagama Pustak 16
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1995
Total Pages348
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size8 MB
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