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संमाणुयोगद्दारे पदेस संकमो
( ४५१
अचक्खु ० विसे० । चक्खु विसे० | असादे संखे० गुणो । एवं णिरयगदीए संकमदंडओ समत्तो ।
तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु जावुच्चागोदं ति मूलोघं । तदो उच्चागोदादो ओरालिय० असंखे० गुणो । तिरिक्खगइ० संखे गुणो । इत्थि० संखे० गुणो । णवंस० संखे० गुणो । णीचागोद० संखे० गुणो । जसकित्ति० असंखे० गुणो । तेजा० संखे० गुणो । कम्मइय० विसे० । अजसकित्ति संखे० गुणो । पुरिस० संखे० गुणो । हस्से संखे० गुणो । रदि विसे० | सादे संखे० गुणो । सोगे संखे० गुणो । अरदि० विसे० । दुगंछा विसे० । भय विसे० । एत्तो उवरि णेरइयभंगो जाव असादं ति । एवं गिदीए जहण्णसंकमदंडओ समत्तो ।
एवं तिरिक्खजोणिणीसु । मणुसगदीए मणुस्सेसु जाव आहारसरीरं ति मूलोघो । तदो तिरिक्खगदीए असंखे० गुणो । णवंस० असंखे० गुणो । णीचागोदे संखे० गुणो । इत्थवेदे असंखे० गुणो । मणुसगई. असंखे० गुणो । ओरालिय० असंखे० गुणो । कोधसंजलण० असंखे० गुणो । माणे विसे० । पुरिस० विसे० । माया० विसे० । उच्चागोद० असंखे० गुणो । जसकित्ति० असंखे० गुणो । सेसाणि
।
है । मतिज्ञानावरण में विशेष अधिक है । अवधिदर्शनावरण में विशेष अधिक है । अचक्षु - दर्शनावरण में विशेष अधिक है । चक्षुदर्शनावरण में विशेष अधिक है । असातावेदनीय में संख्यातगुणा है । इस प्रकार नरकगति में जघन्य प्रदेश संक्रमदण्डक समाप्त हुआ ।
तिर्यंचगति में तिर्यंचों में प्रकृत अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा उच्चगोत्र तक मूल- ओघके समान है । तत्पश्चात् उक्त जघन्य प्रदेश संक्रम उच्चगोत्रकी अपेक्षा औदारिकशरीरमें असंख्यागुणा है । तिर्यंचगति में संख्यातगुणा है । स्त्रीवेद में संख्यातगुणा है । नपुंसकवेदमें संख्यातगुणा है । नीच गोत्र में संख्यातगुणा है । यशकीर्ति में असंख्यातगुणा है । तैजसशरीरमें संख्यातगृणा है । कार्मणशरीर में विशेष अधिक है । अयशकीर्ति में संख्यातगुणा है । पुरुषवेद में संख्यातगुणा है । हास्य में संख्यातगुणा है । रतिमें विशेष अधिक है । सातावेदनीयमें संख्यातगुणा है । शोक में संख्यातगुणा है । अरतिमें विशेष अधिक है । जुगुप्सामें विशेष अधिक है । भयमें विशेष अधिक है । इसके आगे असातावेदनीय तक उक्त प्ररूपणा नारकियोंके समान है । इस प्रकार तिर्यंचगति में जघन्य प्रदेश संक्रमदण्डक समाप्त हुआ ।
इसी प्रकार तिर्यंच योनिमतियों में भी प्रकृत संक्रमदण्डककी प्ररूपणा है । मनुष्यगति में मनुष्यों में यह प्ररूपणा आहारकशरीर तक मूल-ओघके समान है । तत्पश्चात् वह जघन्य प्रदेश संक्रम आहारकशरीरकी अपेक्षा तिर्यंचगतिमें असंख्यातगुणा है । नपुंसक वेदमें गुणा है । नीचगोत्र में संख्यातगुणा है । स्त्रीवेदमें असंख्यातगुणा है । मनुष्यगति में गुणा है । औदारिकशरीरमें असंख्यातगुणा है । संज्वलन क्रोधमें असंख्यातगुणा विशेष अधिक है । पुरुषवेद में विशेष अधिक है । मायामें विशेष अधिक है । उच्चगोत्रम
असंख्यात - असंख्यात - है । मानम
अप्रनो, ' कोधसंखे', काप्रती ' कोधमं० असंखे० ' इति पाठः ।
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