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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे उत्तरपयडिउदीरणाए एगजीयेण कालो (६३ एयसमओ उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । कधं भय-दुगुंछाणमुदीरणकालो एगसमओ ? अपुव्वकरणचरिमसमयम्मि पढमसमयवेदगो होदूण से काले अणियट्टिगुणं गदस्स उदीरणवोच्छेददसणादो। णवंसयवेदस्स जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण असंखेज्जपोग्गलपरियट्टं। इथिवेदस्स जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण पलिदोवमसदपुधत्तं । पुरिसवेदस्स जहण्णण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण सागरोवमसदपुधत्तं । णिरयाउअस्स जहण्णेण दसवाससहस्साणि आवलियाए ऊणाणि, उक्कस्सेण तेत्तीसं सागरोवमाणि आवलियाए ऊणाणि । एवं देवाउअस्स वि वत्तव्वं । मणुसाउअस्स जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण तिण्णिपलिदोवमाणि आवलियाए ऊणाणि । तिरिक्खाउअस्स जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणमावलियाए ऊणं, उक्कस्सेण तिण्णि पलिदोवमाणि आवलियाए ऊणाणि । णिरयगदिणामाए उदीरणा केवचिरं कालादो होदि ? जहण्णेण दसवाससहस्साणि, उक्कस्सेण तेत्तीससागरोवमाणि । एवं देवगदीए वि वत्तव्वं । तिरिक्खगदिणामाए मणुसगदिणामाए च जहण्णण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण परिवाडीए अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियÉ तिण्ण पलिदोवमाणि पुवकोडियुधत्तेणब्भहियाणि । अजोगिवज्जा मणुसगदीए उदीरणाकाल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहुर्त प्रमाण है।। शंका-- भय और जुगुप्साका उदीरणाकाल एक समय कैसे है ? समाधान-- कारण कि अपूर्वकरणके अन्तिम समयमें उनका एक समयके लिये वेदक होकर अनन्तर समयमें अनिवृत्तिकरण गुणस्थानको प्राप्त होनेपर उक्त प्रकृतियोंकी उदीरणाकी व्युच्छित्ति देखी जाती है । नपुंसकवेदका उदीरणाकाल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है। स्त्रीवेदका जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमशतपृथक्त्व प्रमाण है । पुरुषवेदका उदीरणाकाल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे सागरोपमशतपृथक्त्व प्रमाण है। नारकायुका उदीरणाकाल जघन्यसे एक आवली कम दस हजार वर्ष और उत्कर्षसे आवली कम तेतीस सागरोपम प्रमाण है। इसी प्रकार देवायुके उदीरणाकालका भी कथन करना चाहिये । मनुष्यायुका उदीरणाकाल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे आवली कम तीन पल्योपम प्रमाण है । तिर्यंच आयुका उदीरणाकाल जघन्यसे आवली कम क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे आवली कम तीन पल्योपम प्रमाण है। नरकगति नामकर्मकी उदीरणा कितने काल होती है ? उसकी उदीरणा जघन्यसे दस हजार वर्ष और उत्कर्षसे तेतीस सागरोपम काल तक होती है। इसी प्रकारसे देवगतिके भी उदीरणाकालका कथन करना चाहिये। तिर्यंचगति नामकर्म और मनुष्यगति नामकर्मका उदीरणाकाल जघन्यसे क्षुद्रभवग्रहण और उत्कर्षसे क्रमशः असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन रूप अनन्त काल तथा पूर्वकोटिपृथक्त्वसे अधिक तीन पल्योपम प्रमाण है । अयोगकेवलिको छोडकर शेष ( सब मनुष्य व मनुष्यनी ) मनुष्यगति नामकर्मके उदीरक हैं। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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