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________________ ( ०. छक्खंडागमे संतकम्मं एवं यव्वं जाव उक्कस्वग्गणेति । एयगुणहाणिट्ठाणंतरे फद्दयाणि थोवाणि । णाणागुणहाणिद्वाणंतराणि अनंतगुणाणि । ४० एत्थ अप्पा बहुअं वुच्चदे । तं जहा - सव्वत्थोवमुक्कस्सियाए वग्गणाए पक्कमिददव्वं । जहणियाए वग्गणाए अनंतगुणं । अजहण्ण-अणुक्कस्सियासु वग्गणासु पक्कदिव्वमतगुणं । अजहण्णियासु विसेसाहियं । अणुक्कस्सियासु विसेसाहियं । सव्वासु विसेसाहियं । संपहि ट्ठिदीसु पक्कमिदअणुभागस्स अप्पाबहुअं उच्चदे - सव्वत्थोवो जहणियाए ट्ठदीए पक्कमिदअणुभागो । अपढम अचरिमासु ट्ठिदीसु अणुभागो अनंतगुणो | अचरिमासु ट्ठिदीसु अणुभागो विसेसाहिओ । चरिमाए ट्ठिदीए अणुभागो अनंतगुणो । अपढमासु ट्ठिदीसु अणुभागो विसेसाहिओ । सव्वासु ट्ठिदीसु अणुभागो विसेसाहिओ । एसो णिक्खेवाइरियउवएसो । एवं पक्कमेत समत्तणुओगद्दारं । एकगुणहानिस्थानान्तर में स्पर्द्धक स्तोक हैं । नानागुणहानिस्थानान्तर ( में स्पर्धक ) अनन्त - हैं। यहां अल्पबहुत्वका कथन करते हैं । वह इस प्रकार है- उत्कृष्ट वर्गणा में - प्रक्रमप्राप्त द्रव्य सबसे स्तोक है । जघन्य वर्गणा में अनन्तगुणा है । अजघन्य - अनुष्कृष्ट वर्गणाओंमें प्रक्रमप्राप्त द्रव्य अनन्तगुणा है । अजघन्य वर्गणाओंमें विशेष अधिक है । अनुत्कृष्ट वर्गणाओं में विशेष अधिक है । सब वर्गणाओंमें विशेष अधिक है । अब स्थितियों में प्रक्रमप्राप्त अनुभागके अल्पबहुत्वका कथन करते हैं-- जघन्य स्थितिमें प्रक्रमप्राप्त अनुभाग सबसे स्तोक है । अप्रथम - अचरम स्थितियोंमें प्रक्रमप्राप्त अनुभाग अनन्तगुणा है । अचरम स्थितियों में अनुभाग विशेष अधिक है । चरम स्थिति में अनुभाग अनन्तगुणा है । अप्रथम स्थितियोंमें अनुभाग विशेष अधिक है । सब स्थितियों में अनुभाग विशेष अधिक है । यह निक्षेपाचार्यका उपदेश है । इस प्रकार प्रक्रम अनुयोगद्वार समाप्त हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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