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________________ उदयाणुयोगद्दारे पदेसोदयपरूवणा ( ३३३ समयछदुमत्थस्स पढमसमयओहिलद्धिस्स उक्क० मदिआवरणस्स पदेसुदयवड्ढी। कुदो? ओहिणाणवुड्ढीए अणहिमुहस्स* गुणसे डिपदेसगुणगारादो तदहिमुहगुणसेडिपदेसगुणगारस्स असंखे० गुणत्तादो। कधमेदं णव्वदे? सुत्तण्णहाणुववत्तीदो। ओहिणाणओहिदसणावरणाणं पुण झीयमाणोहिक्खओवसमाणं*तत्तो तग्गुणयारवड्ढी असंखे० गुणा । एवं सुद-मणपज्जव-केवलणाणावरण-चक्खु-अचक्खु-केवलदंसणावरणाणं च वत्तव्वं । ओहिणाण-ओहिदसणावरणाणं उक्क० वड्ढी कस्स? चरिमसमयछदुमत्थस्स, जस्स पढमसमयणट्ठा ओही, तस्स । णिद्दा-पयलाणमुक्कस्सिया वड्ढी कस्स? उवसंतकसायस्स जाधे सगपढमसमयगुणसेडिसीसयं पवेदेदि* तस्स उक्कस्सिया वड्ढी । णिद्दाणिद्दा-पयलापयला--थीणगिद्धीणमुक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? जो अधापवत्तसंजदो तप्पाओग्गसंकिलिट्ठो होदूण से काले सव्वविसुद्धो जादो तस्स सव्वविसुद्धस्स जं गुणसेडिसीसयं तम्हि उदयमागदे जो थीणगिद्धितियस्स अण्णदरिस्से पयडीए पढमसमयवेदगो तस्स समयवर्ती छद्मस्थ हुआ है उस समय प्रथम समयवर्ती अवधिलब्धियुक्त अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थके मतिज्ञानावरण सम्बन्धी उत्कृष्ट प्रदेशोदयवृद्धि होती है । इसका कारण यह है कि जो जीव अवधिज्ञानकी वृद्धिके अभिमुख नहीं है उसके गुणश्रेणि रूप प्रदेशगुणकारकी अपेक्षा तदभिमुख जीवका गुणश्रेणि रूप प्रदेशगुणकार असंख्यातगुणा होता है । शंका- यह कैसे जाना जाता है ? समाधान- वह सूत्रकी अन्यथानुपत्तिसे जाना जाता है। परन्तु हीयमान अवधिक्षयोपशम युक्त अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी उक्त गुणकारवृद्धि उससे असंख्यातगुणी है। इसी प्रकार ( मतिज्ञानावरणके समान ) श्रुतज्ञानावरण, मनःपर्ययज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और केवलदर्शनावरणकी उत्कृष्ट वद्धिके स्वामीका कथन करना चाहिये। ___ अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? उस अन्तिम समयवर्ती छद्मस्थके जिसकी अवधिलब्धि प्रथम समयमें नष्ट हुई है, उसको होती है । द्रा और प्रचलाकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है? वह उपशान्तकषाय जीवके होती है, जब वह अपने प्रथम समय संबंधी गुणश्रणिशीषका वेदन करता है, तब उसके उन दोनों प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला और स्त्यानगृद्धि की उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है? जो अधःप्रवृत्तसंयत जीव तत्प्रायोग्य संक्लेशसे संयुक्त होकर अनन्तर काल में सर्वविशुद्धिको प्राप्त होता है उस सर्वविशुद्ध जीवका जो गुणश्रेणिशीर्ष है उसके उदयको प्राप्त होनेपर जो स्त्यानगृद्धि आदि तीनमेंसे अन्यतर प्रकृतिका प्रथम समयवर्ती वेदक होता है उसके उनकी उत्कृष्ट * अप्रतौ ' अहिमाहस्स', काप्रती 'अणहिप्पायस्स', ताप्रतौ ' अणहिमा (म) हस्स' इति पाठः । * ताप्रतौ ‘ओहिणाणोहिदसणावर (णा०) णं पुण ज्झीयमाणेहि खओवसमाणं' इति पाठः । ४ ताप्रती 'केवलणाणावर (णा) णं चक्बु' इति पाठः । ताप्रती 'वेदेदि ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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