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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा ( २४३ थावरणामाए उक्क ० वड्ढी कस्स ? जो बादरो तप्पा ओग्गजहण्णसंकिलेसादो Teraiकिलेसं गदो तस्स उक्कस्सिया वड्ढी । सो चेव मदो तप्पा ओग्गजहण्णसंकिलेसे पदिदो तस्स उक्कस्सिया हाणी । तस्सेव से काले उक्कस्सयमवद्वाणं । एदिय-विगलदिय- सुहुम-साहारणणामाणं थावरभंगो | णवरि वेदओ कायव्वो । साहारणणामाए बादरसाहारणकाइओ कायव्वो । अपज्जत्तणामाए उक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? मणुस्सस्स अपज्जत्तयस्स उक्कस्सियाए अपज्जत्तणिव्वत्तीए उप्पज्जिय चरिमसमयतन्भवत्थस्स । सो चेव मदो सुहुमेइंदियअपज्जत्तएसु उववण्णो तस्स उक्कस्सिया हाणी । तस्सेव से काले उक्कस्समवद्वाणं । अप्पसत्थविहायगदि-दुस्सरणीचागोदाणं णिरयगइभंगो । पंचणमंत रायाण मुक्कस्सिया वड्ढी कस्स ? जो सष्णिपंचिदिओ तप्पा ओग्गुस्सियाए लद्धीए संजुत्तो मदो सुहुमेइंदिएसु जहण्णलद्धिसंजुत्तो जादो तस्स उक्कस्सिया वड्ढी । तस्सेव उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स सागारक्खएण तप्पा ओग्गजहण्णसं किलेसे पदिदस्स तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्कस्समवद्वाणं । आदावणामाए उक्कस्सवड्ढि - हाणि-अवट्ठाणाणं थावरभंगो । णवरि बादरपुढविकाइएसु विसोहीए वत्तव्वं । तित्थयरणामाए उक्क ० वड्ढी कस्स ? चरिमसमयजोगिस्स एवं उक्कस्स सामित्तं समत्तं । स्थावर नामकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो बादर जीव तत्प्रायोग्य जघन्य संक्लेश से उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ है उसके स्थावर नामकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । वही मरकर सब तत्प्रायोग्य जघन्य संक्लेशमें आता है तब उसके उसकी उत्कृष्ट हानि होती है । उसीके अनन्तर कालमें उसका उत्कृष्ट अवस्थान होता है । एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, सूक्ष्म और साधारण नामकर्मोंकी प्ररूपणा स्थावर नामकर्मके समान है । विशेष इतना है कि विवक्षित प्रकृतिका वेदक कहना चाहिये । साधारण नामकर्मकी प्ररूपणामें बादर साधारणकायिक कहना चाहिये । अपर्याप्त नामकर्मकी उकृष्ट वृद्धि किसके होती है ? वह मनुष्य अपर्याप्त के होती है जो उत्कृष्ट अपर्याप्त निर्वृत्तिसे उत्पन्न होकर चरम समयवर्ती तद्भवस्थ होता है । वही मरकर जब सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तोंमें उत्पन्न होता है तब उसके उसकी उत्कृष्ट हानि होती है । उसीके अनन्तर कालमें उसका उत्कृष्ट अवस्थान होता है । अप्रशस्त विहायोगति, दुस्वर और नीचगोत्रकी प्ररूपणा नरकगतिके समान है । पांच अन्तराय कर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? जो संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट क्षयोपशमसे संयुक्त होता हुआ मृत्युको प्राप्त होकर सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीवोंमें जघन्य क्षयोपशम से संयुक्त होता है उसके उनकी उत्कृष्ट वृद्धि होती है । उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त वही जब साकार उपयोगके क्षयसे तत्प्रायोग्य जघन्य संक्लेशमें आता है तब उसके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है । उसीके अनन्तर काल में उनका उत्कृष्ट अवस्थान होता है । आतप नामकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि, हानि और अवस्थानकी प्ररूपणा स्थावर नामकर्मके समान है । विशेष इतना है कि बादर पृथिवीकायिकों में विशुद्धिके द्वारा स्वामित्व कहना चाहिये । तीर्थंकर नामकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि किसके होती है ? वह चरम समयवर्ती सयोगीके होती है । प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ इस । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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