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________________ २२४ ) छक्खंडागमे संतकम्म चउक्क० अण्णदर० अ० गु० हीणा। मदिआवरण० अ० गु० हीणा । सुद० अ० गु० हीणा । मणपज्जव० अ० गु० हीणा । णिद्दा० अ० गु० हीणा। पयला० अणंतगुणहीणा । साद० अ० गु० हीणा । उच्चागोद० अ० गु० होणा । जसगित्ति० अ० गु० हीणा । रदि० अ० गु० हीणा । हस्त अ. गु० होणा। कम्मइय० अ० गु० हीणा । तेजइय० अ० गु० होणा। वेउ० अ० गु० हीणा । देवांउ० अ० गु० हीणा। असाद० अ० गु० होणा। इत्यि अ० गु० हीणा । पुरिस अ० गु० होणा। अरदि० अ० गु० होणा। सोग अ० गु० होणा। भय० अ० गु० हीणा । दुगुंछा० अ० गु० होणा। अजस० अ० गु० हीणा । ओहिणाणा० अ० गु० होणा। ओहिदं अ० गु० हीणा । सम्मामिच्छत्त अ० गु० होणा । दाणंतराइय० अ० गु० हीणा । लाहंतराइय० अ० गु० हीणा । भोगंतराइय० अ० गु० होगा । परिभोगंतराइय० अ० गु० होणा। अचक्खु अ० गु० हीणा । चक्खु० अ० गु० हीणा। वोरियंतराइय० अ० गु० हीणा। सम्मत्त० अ० गु० हीणा । एइंदिएसु सव्वतिव्वाणभागं मिच्छत्तं केवलणाण• केवलदसण० अ० गु० होणा। अणंताणुबंधिचउवकम्मि अण्णदर० अ० गु० होणा। संजलणचउवक० अण्ण० अ० गु० अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। मतिज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । श्रुतज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। मनःपर्ययज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। निद्राकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। प्रचलाकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। सातावेदनीयकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। उच्चगोत्रको उदोरणा अनन्तगुणी हीत है । यशकीर्तिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। रतिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। हास्यकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। कार्मणशरीरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। तैजसशरीरकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । वैक्रियिकशरीरकी उदीरणा अनन्तगणी हीन है । देवायुकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । असातावेदनीयकी उदीरणा अनन्त गुणी हीन है । स्त्रीवेदकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। पुरुषवेदकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अरतिको उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। शोककी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। भयकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। जुगुप्साकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । अयशकीर्तिकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । अवधिज्ञानावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । अवधिदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगणी हीन है । सम्यग्मिथ्यात्वकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । दानान्तरायकी उदीरा अनन्तगुणी हं न है। लाभान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । भोगान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। परिभोगान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अचक्षुदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुगी हीन है। चक्षुदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। वीर्यान्तरायकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है । सम्यक्त्वकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। एकेन्द्रिय जीवोंमें मिथ्यात्व प्रकृति सबसे तीव्र अनुभागवाली है। केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरणकी उदीरणा अनन्तगुणी हीन है। अनन्तानुबन्धिचतुष्कमें अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगणी हीन है। संज्वलनचतुष्को अन्यतरकी उदीरणा अनन्तगणी हीन है। प्रत्याख्यानाFor Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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