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________________ उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभाग उदीरणा ( १७१ अंतरं, भावो, अप्पाबहुअं, सण्णियासो चेदि। एदाणि भणिदूण पुणो भुजगारो पदणिक्खेवो वड्ढी ठाणं च? वत्तव्वं । तत्थ ताव सण्णा वुच्चदे। सा दुविहा घादिसण्णा टाणसण्णा चेदि । तत्थ घादिसण्णा उच्चदे। तं जहा-आभिणिबोहिय-सुदणाणावरणीयाणमुक्कस्सा सव्वघादी, अणुक्कस्सा सव्वघादी वा देसघादी वा। ओहि-मणपज्जवणाणावरणीयाणमुक्कस्सा सव्वघादी, अणुक्कस्सा सव्वघादी वा देसघादी वा। केवलणाणावरणीयस्स उक्कस्सा अणुक्कस्सा च उदीरणा सव्वघादी। अचक्खुदंसणावरणीयस्स उक्कस्सा अणुक्कस्सा च देसघादी। चक्खु-ओहिदसणावरणीयाणमुक्कस्सा सव्वघादी, अणुक्कस्सा सव्वघादी वा देसघादी वा। केवलदसणावरण-णिद्दाणिद्दा-पयलापयला-थोणगिद्धि-णिद्दा-पयलाणमुक्कस्सा अणुक्कस्सा च सव्वघादी। सादासादाउचउक्कस्स सव्व णामपयडीणं उच्चाणीचागोदाणं उक्कस्सा अणुक्कस्सा च उदीरणा अघादी सव्वघादिपडिभागो। मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्त-बारसकसायाणमुक्कस्सा अणुक्कस्सा च सव्वघादी। सम्मत्तस्स पंचंतराइयाणं उदीरणा उक्कस्सा अणुवकस्सा च देसघादी। चदुसंजलण-णव-णोकसायाणमुदीरणा उक्कस्सा सव्वघादी, अणुक्कस्सा सव्वघादी वा देसघादी वा। जेसिकम्माणमुदीरणाए देसघादित्तं सव्वघादित्तं च संभवदि तेसिं नाना जीवोंकी अपेक्षा काल, नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर, भाव, अल्पबहुत्व और संनिकर्ष । इनकी प्ररूपणा करके पश्चात् भुजाकार, पदनिक्षेप, वृद्धि और स्थानका कथन करना चाहिए। उनमें पहिले संज्ञाका कथन करते हैं । वह दो प्रकारकी है- घातिसंज्ञा और स्थानसंज्ञा। उनमें घातिसंज्ञाकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकार है- आभिनिबोधिकज्ञानावरण और श्रुतज्ञानावरणकी उत्कृष्ट अनुभागउदीरणा सर्वघाती तथा अनुत्कृष्ट अणुभागउदीरणा सर्वघाती और देशघाती है। अवधिज्ञानावरण और मनःपर्ययज्ञानावरणकी उत्कृष्ट उदीरणा सर्वघाती तथा अनुत्कृष्ट उदीरणा सर्वघाती और देशघाती है। केवलज्ञानावरणकी उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट उदीरणा सर्वघाती है। अचक्षुदर्शनावरणकी उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट उदीरणा देशघाती है। चक्षुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरणकी उत्कृष्ट उदीरणा सर्वघाती तथा अनुत्कृष्ट उदीरणा सर्वघाति और देशघाति है । केवलदर्शनावरण, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगद्धि निद्रा और प्रचलाकी उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट उदीरणा सर्वघाति है। साता व असाता वेदनीय, आयु चार, सब नामप्रकृतियों, तथा ऊंच व नीच गोत्रको उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट उदीरणा अघाती है जो सर्वघातिके प्रतिभाग स्वरूप है। मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और बारह कषायोंकी उत्कृष्ट व अनुत्कृष्ट उदीरणा सर्वघाती है । सम्यक्त्व व पांच अन्तराय प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट एवं अनुत्कृष्ट उदीरणा देशघाती है। चार संज्वलन और नौ नोकषायोंकी उत्कृष्ट उदीरणा सर्वघाती तथा अनुत्कृष्ट उदीरणा सर्वघाती और देशघाती है। जिन कर्मोंकी उदीरणामें देशघातीपना और सर्वघातीपना सम्भव है उन कर्मोंकी जघन्य उदीरणा नियमसे . तापतो ' पुणो पदणिक्खेवो' इति पाठः। 8 काप्रती ' व ' इति पाठः । * काप्रती चउक्कसन्न ' इति पामः। काप्रती । तेसिं 'इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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